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सऊदी अरब और इसराइल के बीच अगर ये डील हुई तो ईरान क्या करेगा
27-Sep-2023 4:23 PM
सऊदी अरब और इसराइल के बीच  अगर ये डील हुई तो ईरान क्या करेगा

 स्नेहा

इस साल जून में ईरान ने सऊदी अरब में जब अपना दूतावास खोला तो इसे मध्य-पूर्व के लिए एक नए युग की शुरुआत बताया गया।

अब सऊदी अरब और इसराइल के बीच अमेरिका की मध्यस्थता में एक समझौता होने की संभावना जताई जा रही है, जिसके बारे में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू कहते हैं कि ये मध्य-पूर्व के भू राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा-हमेशा के लिए बदल देगा।

दूसरी तरफ, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा है कि सऊदी अरब के साथ संबंध सामान्य करने की इसराइल की कोशिशें सफल नहीं होंगी।

पूरे घटनाक्रम को समझने से पहले ये जानते हैं कि इसराइल और सऊदी अरब के बीच होने जा रहा ये समझौता क्या है?

अमेरिका पिछले साल से ही ये कोशिशें कर रहा है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दौरान जो अब्राहम समझौता हुआ था, उससे आगे का रास्ता तैयार किया जाए और इसके लिए इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्तों को सामान्य करना बेहद अहम है।

साल 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ ऐतिहासिक समझौता किया था जिसे ‘अब्राहम अकॉर्ड’ कहा जाता है। इस समझौते के तहत यूएई और बहरीन ने इसराइल के साथ अपने रिश्तों को सामान्य किया था और राजनयिक रिश्तों को बहाल कर लिया था।

सऊदी अरब फिलस्तीन के प्रति एकजुटता दिखाते हुए इसराइल को मान्यता नहीं देता है और इसका इसराइल से किसी भी तरह का राजनयिक रिश्ता नहीं है।

ऐसी रिपोर्ट्स आ रही हैं कि इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के बदले में, सऊदी अरब अमेरिका से बड़ा सैन्य समर्थन, असैन्य परमाणु कार्यक्रम की स्थापना और फिलस्तीन के लिए कई तरह की मांग कर रहा है। इस डील पर अमेरिका, इसराइल, सऊदी अरब और फलस्तीन के अलावा ईरान की भी नजर है।

ईरान के राष्ट्रपति इस बारे में क्या कह रहे हैं?

हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था। इस संबोधन के अलावा उन्होंने अमेरिकी न्यूज नेटवर्क के जाने-माने भारतीय मूल के पत्रकार फरीद जकारिया को इंटरव्यू दिया था।

ईरानी राष्ट्रपति ने मध्य-पूर्व के दूसरे देशों को इसराइल के साथ करीबी संबंध बहाल करने को लेकर आगाह भी किया। उन्होंने कहा था कि इसराइल के साथ रिश्ते सामान्य करने से सुरक्षा नहीं आएगी। ईरान और इसराइल के बीच तल्खी लंबे समय से चली आ रही है।

ईरान इसराइल को मान्यता नहीं देता है जबकि इसराइल भी कई बार कह चुका है कि वो परमाणु शक्ति संपन्न ईरान को बर्दाश्त नहीं करेगा।

क्या आरोप लगा रहा है ईरान?

ईरान कई बार ये आरोप लगा चुका है कि इसराइल ने उसके परमाणु ठिकानों पर हमला किया है और ईरान के न्यूक्लियर वैज्ञानिकों की हत्या कराई है। इसराइल इन आरोपों को न तो नकारता है और न ही इसकी पुष्टि करता है।

रईसी फिलस्तीन का मुद्दा उठाते हुए सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहते हैं, ‘रिश्ते सामान्य करने की कोशिशें पहले भी हुई हैं लेकिन सफलता नहीं मिली। 75 साल बाद ये समाधान है भी नहीं। उन्हें (इसराइल) फिलस्तीनी लोगों को उनके अधिकार देने के सिद्धांत की तरफ वापस जाना चाहिए, जो कि उनका हक़ है। मूल मुद्दों का हल निकालने की जगह वे थोपा हुआ सामान्य माहौल बनाना चाहते हैं।’

इसराइल और फिलस्तीन के बीच विवाद में अब तक सऊदी अरब खुलकर फिलस्तीन का समर्थन करता आया है। ऐसे कयास लगाया जा रहे हैं कि अगर ये समझौता होता है तो राजनयिक संबंध भी बहाल हो सकते हैं।

समझौते का ईरान पर इसका क्या असर होगा?

सऊदी अरब में एक जाने-माने शिया धर्म गुरु को फांसी दिए जाने के बाद ईरान से 2016 में राजनयिक संबंध टूट गए थे।

लेकिन इस साल दोनों देशों के बीच चीन की कोशिशों के बाद राजनयिक संबंध फिर से बहाल हो गया। लेकिन रिश्ते बहाल होने का मतलब यह कतई नहीं है कि दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दे कम हो गए हैं।

सऊदी अरब अब भी अमेरिका का अहम सहयोगी है और ईरान की अमेरिका से अब भी नहीं बनती है।

अब अमेरिका की मध्यस्थता में इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए समझौता होने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन ईरान नहीं चाहता है कि मध्य-पूर्व में या इस्लामिक देशों की सरकारें इसराइल को स्वीकार करें।

दूसरी तरफ सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा था कि इसराइल से रिश्ते सामान्य करने की दिशा में हर दिन करीब आ रहे हैं।

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर के फ़ेलो और मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं, ‘दोनों देशों के बीच कई जटिल मुद्दे हैं और अलग-अलग बयान भी आ रहे हैं। इसराइल ये कहता है कि वो समझौता करने के बेहद करीब है लेकिन सऊदी अरब का कहना है कि उनकी कुछ बुनियादी शर्तें हैं और वो उससे पीछे नहीं हटेंगे।’

डील के बारे में क्या कहते हैं सउदी अरब के क्राउन प्रिंस

रहमान सिद्दीकी कहते हैं, ‘इस डील पर ईरान सऊदी अरब के बारे में नकारात्मक बयान नहीं दे रहा है। ईरान पर इस डील का असर भी नहीं पडऩे वाला है। इसलिए कि ईरान को भी ये पता है कि फिलस्तीन का मुद्दा अब केंद्र में नहीं है। फिलस्तीन नेतृत्व खुद ही बँटा हुआ है। इसराइल काफी आगे निकल चुका है।

सिद्दीकी का तर्क है कि ईरान अब इसका बड़ा विरोध नहीं कर सकता है क्योंकि सऊदी-ईरान के बीच संबंध बहाल करना ईरान के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। अब वो उस जोश के साथ फ़लस्तीन के मुद्दे को आगे नहीं बढ़ाएंगे, जैसा कि वो किया करते थे।

वो कहते हैं कि इस डील के बाद भी सऊदी और ईरान के बीच रिश्ता कायम रहेगा। ईरान पर प्रतिबंध लगे वर्षों हो गए, ईरान की अर्थव्यवस्था सही स्थिति में नहीं है।

ईरान भी अब धीरे-धीरे फ़लस्तीन मुद्दे से हट रहा है। इसमें ईरान ये सोच सकता है कि सऊदी अरब जो कदम उठा रहा है वो उसके (सऊदी अरब) के राष्ट्रीय हित में हो सकता है तो वो (ईरान) इस डील में बाधा डालने की कोशिश नहीं करेंगे।

सिद्दीकी कहते हैं कि ईरान इस कोशिश में भी है कि सऊदी अरब का जो संबंध अमेरिका से है, उसका फायदा भी उसे मिले।

रहमान सिद्दीकी कहते हैं कि सऊदी अरब और ईरान दोनों के लिए अब विचारधारा से ज्यादा अर्थव्यवस्था का मुद्दा कहीं बड़ा है और अब वे इसको लेकर पीछे नहीं जाना चाहते।

दरअसल फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने कहा था, ‘मेरे लिए फ़लस्तीन का मुद्दा बेहद अहम है। हमें उसे सुलझाने की जरूरत है। इस मामले में बातचीत जारी है। हम देखेंगे कि ये कहां पहुंचता है। हमें उम्मीद है कि ये ऐसी जगह पहुंचेगा जहां से फ़लस्तीनी लोगों का जीवन आसान हो सकेगा।’

ईरान और सऊदी अरब अब आपसी संबंध बिगाडऩा नहीं चाहते

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पश्चिम एशिया मामलों के अध्यापक प्रोफेसर एके पाशा कहते हैं कि इस डील पर अभी तो कयास ही लगाए जा रहे हैं। ईरान भी इसको करीब से देख रहा है।

अब सऊदी अरब और ईरान दोनों ही नहीं चाहते हैं कि उनके आपसी संबंध बिगड़ जाए। फिलस्तीन का मुद्दा अब ‘डेड हॉर्स’ हो गया है यानी अब वो इन दोनों देशों के लिए जीवंत मुद्दा नहीं है। ईरान पर पिछले कई सालों से प्रतिबंध है, तो अब वो इसका विरोध शायद ही करे।

पाशा कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि ईरान इस पर कोई क्रांतिकारी प्रतिक्रिया देगा जैसा कि संबंध तोड़ देना, अपने साथियों हिज्बुल्ला को जंग के लिए उकसाना, या इराक में शिया कम्युनिटी को उकसाना। ईरान के अंदर के हालात खराब होते जा रहे हैं। ईरान की अर्थव्यवस्था खराब है, महंगाई बढ़ रही है, लोगों में सरकार के प्रति विरोध बढ़ रहा है तो अब वो ऐसे कदम नहीं उठाना चाहते हैं कि जिससे देश में विरोध और बढ़े।’

‘ये हमेशा-हमेशा के लिए मध्य-पूर्व को बदल देगा’

सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में इसराइल के पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा, ‘मेरा मानना है कि ये संभव है। ऐसा हो सकता है क्योंकि इसराइल, सऊदी अरब और अमेरिका का एक साझा लक्ष्य है और वो है शांति के लिए बड़ा क़दम उठाना। इससे पहले अब्राहम अकॉर्ड (अब्राहम समझौता) था।

उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास अवसर है कि हम मिडिल-ईस्ट को हमेशा के लिए बदल दें। इससे न केवल ‘दुश्मनी की दीवारें’ गिरेंगी बल्कि इससे अरब, जॉर्डन, इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात के जरिए एशिया के बीच एनर्जी पाइपलाइन्स, रेल लाइन्स, फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स गलियारा बन सकेगा। ये बड़े बदलाव हैं। मैं हमेशा इन सारी चीजों को लेकर सावधानी बरतता हूं। मैं इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बता रहा हूं। ये ऐतिहासिक होगा।’

जब उनसे इस समझौते में फ़लस्तीन के मुद्दे को सुलझाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ये जोर देकर कहा कि सऊदी अरब के साथ शांति बहाल करने से फिलस्तीन-इसराइल के संघर्ष को भी सुलझाने में ये एक बड़ा कदम होगा।

फिलस्तीन का मुद्दा कहाँ है?

अमेरिकी मध्यस्थता में सऊदी अरब और इसराइल के बीच संबंध सामान्य करने को लेकर होने वाले एक ऐतिहासिक समझौते में फ़लस्तीनियों ने अरबों डॉलर और वेस्ट बैंक में इसराइल के पूर्ण कब्जे वाली जमीन पर नियंत्रण की मांग रखी है। मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं कि अगर ये डील हुई तो असल विक्टिम फ़लस्तीन होगा। उनका कहना है कि अब वैश्विक मंचों पर और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में फिलस्तीन मामले को लेकर वो उत्साह नहीं रहा।

फिलस्तीन का मुद्दा दब रहा है और इसराइल का ग्राफ बढ़ रहा है। इसराइल का संबंध अब बहरीन के साथ है, यूएई के साथ है, मोरक्को के साथ है, सूडान के साथ है। इसराइल अब इस क्षेत्र में एक सामान्य देश की तरह हो गया है। ईरान के लिए भी अर्थव्यवस्था का प्रश्न कहीं बड़ा है और इसको वो नजरअंदाज करके कोई कदम नहीं उठाएगा। (bbc.com/hindi)

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