विचार / लेख

सदाबहार देवानंद !
28-Sep-2023 1:02 PM
सदाबहार देवानंद !

-अशोक मिश्रा
अपने दौर के बेहतरीन रोमांटिक फ़िल्म स्टार गोल्डन जुबली देवानंद साहब ने अपनी जन्म शताब्दी पूरी की। लंबे समय तक वो हर घर, हर शख़्स, हर सिने प्रेमी के दिल में राज करते रहे। उनका मैनरिज्म और स्पीच पैटर्न बेहद ख़ास था। दिलीप कुमार साहब और राज कपूर साहब की अभिनय शैली का असर बाद के बहुत से अभिनेताओं पर देखा जा सकता है लेकिन देव साहब की एक्टिंग की नक़ल कोई न कर सका।

उनकी ज़ुल्फ़ों की स्टाइल को नौजवानों ने अपनाया। हेयर कटिंग सैलून में उनकी फ़ोटो टंगी रहती थी और युवा वैसे ही बाल बनाने को कहते। बाल काटते समय नाई और ग्राहक दोनों मानो देवानंदमय हो जाते।

‘ज्वेल थीफ’ जब आई तो देश में उनकी टोपी हिट हो गई। उसे लगाते ही लड़के देवानंद हो जाते और लड़कियों को लुभाने की कोशिश करते। अब बताने में थोड़ी शर्म आ रही है कि मैंने भी तब ‘ज्वेल थीफ कैप’ ख़रीदी थी।

एक रोज़ फ़ोन की घंटी बजी। मैंने उठाया तो आवाज़ आई, ‘हेलो अशोक मैं देवानंद बोल रहा हूँ।’ मैंने कहा, ’कौन देवानंद?’, जवाब आया, ‘एक्टर !’ मैं पहले तो अचकचाया। फिर आवाज़ पहचान गया तो हड़बड़ा गया, ‘ज ..ज..जी जी सर।सर!!”
‘ऑफ़िस आओ ! तुमसे कुछ काम है!’

मैं नियत समय पर “नवकेतन स्टूडियो” पहुँच गया। वहीं ऊपर उनका ऑफिस था।

“मैंने एक फ़िल्म लिखी है, “ब्यूटी क्वीन” चाहता हूँ तुम उसे देख लो और जो भी सुधार करना चाहते हो करो! मैं तस्करों के पैसों से फ़िल्म नहीं बनाता। अपनी जमा पूँजी लगाता हूँ, कुछ पैसे देश विदेश में मुझे चाहने वाले दे देते हैं इसलिए ज़्यादा पैसे तुम्हें नहीं दे पाऊँगा!”

“सर, पैसों की कोई चिंता न करें। आप मेरे आदर्श रहे हैं। आपने अनमोल मनोरंजन किया है उससे बड़ा मूल्य कुछ नहीं!“ मैंने कहा।

फिर भी उन्होंने एक छोटा सा कॉन्ट्रैक्ट लेटर बनवाया। जिसे मैंने बिना देखे साइन कर दिया।

“लेकिन तुम्हें काम रोज़ यहीं आकर करना होगा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी स्क्रिप्ट बाहर जाए।“

ऑफिस के ऊपर छत थी। वहीं एक AC कमरा था । कमरा क्या था देव साहब की यादों का ख़ज़ाना था। देश विदेश मिले सम्मान पत्र, मैडल, कई फ़िल्मी तारिकाओं के साथ देव साहब की तस्वीरें।

वहीं मैंने काम करना शुरू किया। दो बजे से शाम पाँच बजे तक देव साहब की स्क्रिप्ट पर काम करता। काट-छाँट करता। डायलॉग छोटे करता। रोचक बनाता और कंटेम्प्ररी बनाता। शाम को नीचे आकर सुनाता। वो सब कुछ स्वीकार कर लेते। कोई अहम, कोई अहंकार नहीं। फिर मैं उन्हें अतीत की यादों में ले जाने की कोशिश करता। वो कभी जाते, ज़्यादातर नहीं।

मैंने लगभग 15 दिन काम किया, लेकिन “ब्यूटी क्वीन” न बन सकी।

कुछ दिन बाद फिर फ़ोन आया। मैं पहुँचा। उन्होंने “चार्ज शीट” की स्क्रिप्ट थमाते हुए कहा, ”मैंने नया स्क्रीन प्ले लिखा है। इसे पढ़ो और इसे भी निखारो!”

मैं सहर्ष जुट गया। कभी वो छत पर आ जाते, बताते, “यहाँ हमारी कितनी ही म्यूज़िक सिटिंग्स हुई हैं। एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन, नीरज, किशोर सब यहाँ आते, बैठते, गीत और धुनें बनाते।

उनकी आँखों में अतीत झिलमिला उठता।

मैंने चार्जशीट पर काम करना शुरू किया। एक रोज़ शाम जब उन्हें सुनाकर जाने लगा तो उन्होंने कहा थोड़ा रुको शोएब (मशहूर क्रिकेट प्लेयर) आ रहा है। मिलकर जाना।
शोएब अख़्तर किसी …, -शायद मोटर सायकिल की- एड फ़िल्म करने भारत आये थे। कुछ ही देर में वो आ गए। कहने लगे, ”मेरे अब्बा आपके बहुत बड़े फैन हैं। उन्होंने कहा हिन्दोस्तान जा रहा है तो देवानंद से ज़रूर मिलना और मेरा सलाम उन्हें पहुँचाना।”

मैंने अपने बेटे यशोवर्धन के लिए -जो शोएब अख़्तर का दीवाना था- ऑटोग्राफ़ लिया।

फिर देव साहब लाहौर के बारे में बताने लगे। वहाँ की कबाब की दुकानों के नाम और स्वाद की ख़ासियत। वहाँ के गली कूचे भी उन्हें याद थे!

“चार्जशीट” बनी। कई अभिनेताओं ने अभिनय करके सहयोग किया जिनमें देव साहब के दीवाने नसीरुद्दीन शाह, दिव्या दत्ता, जैकी श्रॉफ़, बोमन ईरानी, यशपाल शर्मा भी हैं।

प्रीमियर में देव साहब ने मुझे सपरिवार आमंत्रित किया। सीमा, यशो और मैं पहुँचे देखा कई सिने हस्तियाँ देव साहब की हौसला अफजाई करने और उनके प्रति स्नेह और सम्मान ज़ाहिर करने आये थे जिनमें एक बड़ा सा सुंदर बुके लेकर अमिताभ बच्चन भी थे।

देव साहब Indian entertainment industry को अपनी फ़िल्मों के ज़रिये हमेशा Guide करते रहेंगे।

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