विचार / लेख

जवानी के जोश, बगावत, मासूमियत और बेपरवाह मोहब्बत वाली ‘बॉबी’ के 50 साल
28-Sep-2023 2:45 PM
जवानी के जोश, बगावत, मासूमियत और  बेपरवाह मोहब्बत वाली ‘बॉबी’ के 50 साल

वंदना

साल 1973 की बात है, जब ‘बॉबी’ नाम की ऐसी हिंदी फिल्म आई, जिसमें हीरो और हीरोइन दोनों नए थे। हीरोइन डिंपल कपाडिय़ा का तो किसी ने नाम भी नहीं सुना था।

इसके निर्देशक राज कपूर की पिछली फिल्म जबरदस्त फ्लॉप हुई थी लेकिन जब ये फिल्म रिलीज हुई तो इसकी लोकप्रियता का आलम ये था कि गाँवों-कस्बों से बड़े शहरों के थिएटर के लिए विशेष बसें चलती थीं जिन्हें ‘बॉबी बस’ कहा जाता था। ये बस लोगों को फिल्म दिखाकर वापस गाँव लेकर आती थी।

डिंपल कपाडिय़ा की पोलका डॉट वाली पोशाक ‘बॉबी ड्रेस’ के नाम से मशहूर हुई और हीरो ऋषि कपूर के मोटरसाइकिल को लोग ‘बॉबी मोटरसाइकिल’ बुलाते थे।

फि़ल्म ‘बॉबी’ 50 साल पहले 28 सितंबर 1973 को रिलीज हुई थी। बॉबी की लोकप्रियता की एक और मिसाल 1977 में देखने को मिली जब बाबू जगजीवन राम ने दिल्ली के रामलीला मैदान में चुनावी रैली करने का फैसला किया।

वो इंदिरा गांधी से अलग हो गए थे। कहा जाता है कि उस शाम जानबूझकर दूरदर्शन पर बॉबी दिखाई गई ताकि लोग रैली में न जाएँ। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अगले दिन अखबार की हेडलाइन थी बाबू बीट्स बॉबी।

उस वक्त तक हिंदी में मेच्योर प्रेम कहानियाँ बनती आई थीं, लेकिन ‘बॉबी’ शायद पहली हिंदी टीनएज लव स्टोरी थी, जिसमें जवानी का जोश, बगावत, मासूमियत और बेपरवाह मोहब्बत का मेल था।

डिस्ट्रीब्यूटर नहीं मिल रहे थे

हालांकि बॉबी की कामयाबी के पीछे संघर्ष की अलग दास्तां थी। मशहूर फिल्म विश्लेषक जयप्रकाश चौकसे राज कपूर के बहुत करीबी थे और गुजऱने के कुछ साल पहले उन्होंने बॉबी की कहानी विस्तार से मुझे बताई थी।

जयप्रकाश चौकसे ने बताया था, ‘राज साहब के ऑफिस में आर्ची कॉमिक्स पड़ी रहती थीं। उन्होंने कॉमिक्स में एक कैरेक्टर के बारे में पढ़ा जिसे इश्क हो गया था तो उसका बाप बोलता है कि यह तुम्हारी उम्र है इश्क करने की?’

‘यू आर टू यंग टू फॉल इन लव। वहीं से यह आइडिया आया कि ऐसी फिल्म बनाई जाए, जिनके बारे में लोग कहते हैं कि यह भी कोई उम्र है प्यार करने की। 1970 में राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ फ्लॉप हो गई थी।’

‘उसके एक साल बाद राज कपूर की प्रोड्यूस की हुई फिल्म ‘कल आज कल’, जिसे उनके बेटे रणधीर कपूर ने डायरेक्ट किया था, वह भी फ्लॉप हो गई। उसी दौरान राज कपूर के पिता पृथ्वी राजकपूर की मृत्यु हो गई, उनकी माताजी गुजर गईं, उनके करीबी रहे संगीतकार जयकिशन की भी मृत्यु हुई।

यही वो दौर था जब तमाम चुनौतियों के बीच राज कपूर ने एक युवा प्रेम कहानी बनाने की ठानी। लेकिन फिल्म में पैसा चाहिए था, जिसके लिए हिंदूजा परिवार आगे आया। तब हिंदूजा परिवार विदेशों में, खासकर ईरान में हिंदी फि़ल्में डिस्ट्रिब्यूट करके अपना बिजनेस आगे बढ़ा रहा था।

जयप्रकाश चौकसे के मुताबिक, ‘फिल्म बनकर तैयार थी। राज साहब फिल्म का ऊंचा दाम मांग रहे थे। वह राजेश खन्ना का दौर था और राज कपूर साहब, राजेश खन्ना की फिल्म से एक लाख ऊपर दाम मांग रहे थे। शशि कपूर पहले डिस्ट्रीब्यूटर थे, जिन्होंने दिल्ली-यूपी खरीदा और एक वकील हुआ करते थे, जिन्होंने पंजाब के अधिकार खरीदे। कहीं के लिए फिल्म बिकी ही नहीं। फिल्म में पैसा लगाने वाले हिंदूजा परिवार से अदालत तक की नौबत आ गई।’

‘राजकपूर को लगा कि अगर फिल्म हिट होगी तो बाकी जगहों के अधिकार भी बिक जाएंगे, लेकिन हिंदूजा को लगा कि सिर्फ दो जगह के अधिकार से पैसा कैसे निकलेगा। उन्होंने उनके खिलाफ हाईकोर्ट में केस कर दिया। रिलीज के पहले राजकपूर ने उनका पैसा लौटा दिया। लेकिन पिक्चर का पहला शो हाउसफुल हो गया और फिल्म चल पड़ी। इंडस्ट्री में लोग फिर से राजकपूर को महान डायरेक्टर मानने लगे। वे लोग भी उनके साथ हो गए जो कहने लगे थे कि राज निर्देशन भूल गया है।’

गिरवी था राज कपूर का आरके स्टूडियो

अपनी आत्मकथा ‘खुल्लम खुल्ला’ में ऋषि कपूर लिखते हैं, ‘सिनेमा को लेकर राज कपूर का जुनून ऐसा था कि फिल्मों से की हुई सारी कमाई वो फिल्मों में ही लगा देते थे। मेरा नाम जोकर के बाद आरके स्टूडियो गिरवी रखा जा चुका था।’

‘राज कपूर के पास अपना घर भी नहीं था। बॉबी की सफलता के बाद उन्होंने अपना घर खरीदा। बॉबी आरके बैनर को उभारने के लिए बनाई गई थी, मुझे लॉन्च करने के लिए नहीं। ये फिल्म हीरोइन पर केंद्रित थी। जब डिंपल की तलाश पूरी हो गई तब मैं बाय डिफॉल्ट हीरो चुन लिया गया। ये बात और है कि सारा क्रेडिट मुझे मिल गया क्योंकि डिंपल की शादी हो गई और फिल्म हिट होने पर मुझे वाहवाही मिल गई।’

कहते हैं कि बॉबी बनाते वक्त इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लोग धर्मेंद्र, प्राण साहब, राजेंद्र कुमार ने उनसे कहा था कि आरके बैनर को फिर से खड़ा करने के लिए वे लोग बिना पैसे लिए काम करेंगे। लेकिन राज कपूर ने सबका शुक्रिया अदा करते हुए कहा था, ‘इस वक्त मेरी फिल्में फ्लॉप हो चुकी हैं इसलिए मेरा लेवल नीचे है और आपका ऊपर। हम तब साथ काम करेंगे जब हमारा और आपका लेवल बराबर हो जाएगा।’ और राज कपूर ने वो करके भी दिखाया ।

‘बॉबी’ की रिलीज के बाद ऋषि कपूर-डिंपल की जोड़ी ने तहलका मचा दिया। बॉबी सिर्फ एक फिल्म भर न होकर एक फैशन स्टेटमेंट भी थी। डिंपल की वो मिनी स्कर्ट, पोलका डॉट वाली शर्ट, हॉट पैंट्स, बड़े चश्मे, पार्टियाँ। राज कपूर ने जवान भारत की पहचान एक जीवनशैली से कराई।

अमृत गंगर फिल्म इतिहास के जानकार हैं। बीबीसी की सहयोगी पत्रकार सुप्रिया सोगले से बातचीत में उन्होंने कहा , ‘बॉबी ब्रगेंजा यानी बॉबी का 50 साल बाद भी क्रेज बना हुआ है। ये युवा पीढ़ी की प्रेम कहानी थी जो समाज के अलग अलग वर्ग से थे, राजा (ऋषि कपूर) एक हिंदू अमीर परिवार से है और बॉबी ईसाई परिवार से है जो मछुआरों का काम करते हैं।’

‘ये वो दौर था जब देश 1971 की जंग के माहौल से निकल रहा था, मेरा नाम जोकर फ्लॉप हुई थी। ऐसे में देश को, युवाओं को, ताजी हवा, एक बदलाव की जरूरत थी। इसी माहौल में बॉबी आई और छा गई। इस फिल्म के अंदाज में कहें कि ये काला कौआ आज भी काट रहा है।’

ऋषि कपूर की अंगूठी क्यों राजेश खन्ना ने फेंक दी

जब बॉबी की शूटिंग अपने अंतिम पड़ाव में थी तो डिंपल कपाडिय़ा ने राजेश खन्ना से शादी कर ली थी।

डिंपल कपाडिय़ा को हीरोइन चुनने की कहानी जयप्रकाश चौकसे ने कुछ यूँ बताई थी, ‘किशन धवन चरित्र कलाकार थे। उनकी पत्नी बुंदी धवन, राज कपूर की पत्नी कृष्णा की दोस्त थीं। उन्होंने डिंपल कपाडिय़ा का नाम सुझाया। स्क्रिप्ट के साथ डिंपल के सीन लिए गए वो कई सालों तक आरके स्टूडियो में कहीं रखे हुए थे। वो सीन देख कर आपको यकीन नहीं होगा कि यह वही डिंपल कपाडिय़ा हैं। उस समय डिंपल की उम्र बमुश्किल 15 या 16 की रही होगी।’

फि़ल्म 1973 यानी 20वीं सदी में बनी है। हालांकि बॉबी के एक सीन में डिंपल कहती हैं मैं 21वीं सदी की लडक़ी हूँ, कोई मुझे हाथ नहीं लगा सकता। जब ऋषि कपूर उन्हें टोकते हैं कि अभी तो 20वीं सदी चल रही है तो कहती हैं कि बूढ़ी हो गई 20वीं सदी और मैं अपनी हिफाजत ख़ुद करना जानती हूँ। डिंपल ने असल में भी अपनी जिंदगी वाकई ऐसे ही जी है।

अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में ऋषि कपूर लिखते हैं, ‘डिंपल हमारे घर का हिस्सा बन गई थीं। मैं राज कपूर को पापा बोलता था तो डिंपल भी पापा ही बोलती थी। बाद में मैंने राज जी कहना शुरु कर दिया था लेकिन डिंपल आखिर तक उन्हें पापा ही बोलती रही।’

‘बॉबी के दौरान मैं यासमिन के साथ रिश्ते में था। उसने मुझे एक अंगूठी दी थी। लेकिन शूटिंग के दौरान कई बार डिंपल वो अंगूठी निकाल कर पहन लेती। जब राजेश खन्ना ने डिंपल को प्रपोज किया तो उन्होंने वो अंगूठी निकालकर समंदर में फेंक दी। प्रेस में बहुत बातें हुईं। तब हमारे बारे में कई बातें छपीं। लेकिन हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं था। हाँ बतौर हीरोइन तब मैं उसे लेकर पोज़ेसिव था।’

अमृत गंगर कहते हैं, ‘राज कपूर के विजऩ को ऋषि और डिंपल ने बख़ूबी पर्दे पर उतारा फिर चाहे वो गाने हों, डांस हो या एक्टिंग। फिल्म में ऋषि कपूर और डिंपल की पहली मुलाकात उसी पल को दोहराती है, जब राज कपूर और नरगिस पहली बार मिले थे। ख्वाजा अहमद अब्बास ने तो ट्रैजिक अंत लिखा था जिसे बाद में हैप्पी एंडिग में बदल दिया गया।’

फैक्ट बॉक्स बॉबी -1973

फिल्मफेयर अवॉर्ड- 5

ऋषि कपूर- बेस्ट एक्टर

डिंपल कपाडिय़ा- बेस्ट एक्ट्रेस

नरेंद्र चंचल- बेस्ट गायक

आर्ट डाइरेक्शन- ए रंगराज

बेस्ट साउंड

जब लता का हिस्सा राज कपूर ने गाया

बॉबी की सफलता में आनंद बख्शी के गानों और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत का बड़ा रोल रहा। राज कपूर एक नए गायक शैलेंद्र सिंह को ऋषि कपूर के लिए लेकर आए थे।

शैलेंद्र सिंह ने दुबई से फ़ोन पर कुछ साल पहले बॉबी की यादें सांझा की थी।

पुराने दिनों को याद करते हुए शैलेंद्र ने बताया था, ‘राज कपूर साहब को एक नई आवाज चाहिए थी। वो कहते थे कि हीरो 16 साल का लडक़ा है, इसलिए गायक को भी लगभग इसी उम्र का होना चाहिए। इस तरह बॉबी से मेरा करियर शुरू हुआ।। बॉबी फिल्म का मुहूर्त मेरे गाने मैं शायर तो नहीं से हुआ था।’

बॉबी और राज कपूर को याद करते हुए शैलेंद्र सिंह का कहना था, ‘राज कपूर को गानों और संगीत की बहुत समझ थी। एक गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान लता जी आई नहीं थीं। इस दौरान गाने में मैं अपना हिस्सा गा रहा था और लता जी का हिस्सा राज कपूर गा रहे थे। उन्हें पूरा गाना याद था।’

प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा

बॉबी की बात करें तो इसकी युवा प्रेम कहानी और कहानी कहने का राज कपूर का तरीक़ा दोनों की फिल्म की सफलता में भूमिका रही।

फिल्म की जान इसके सहायक किरदार भी थे भले वो दुर्गा खोटे हो, मछुआरे के रोल में जैक ब्रगेंजा उर्फ प्रेम नाथ हों या फिर ऋषि कपूर के अख्खड़ बाप के रोल में प्राण या फिर विलेन प्रेम चोपड़ा।

प्रेम चोपड़ा की पत्नी और राज कपूर की पत्नी दोनों बहनें थीं और इस फिल्म में वो सिर्फ एक छोटा सा कैमियो कर रहे थे। वो फिल्म के आखिरी हिस्से में कुछ देर के लिए आते हैं।

लेकिन उनका वो सीन आज भी याद किया जाता है, जब घर से भागी हुई बॉबी का हाथ पकड़ते हुए वो बोलते हैं- प्रेम नाम है मेरा प्रेम चोपड़ा।

ऋषि कपूर, संजीव कुमार (कोशिश), अमिताभ बच्चन (जंजीर), धर्मेंद्र (यादों की बारात) और राजेश खन्ना (दाग) में से बॉबी के लिए ऋषि कपूर को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मिला।

अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में ऋषि कपूर ने लिखा, ‘किसी ने मुझे पैसे के बदले एक पुरस्कार दिलाने का ऑफर दिया था। मैंने कहा क्यों नहीं। मुझे इस बात का अफसोस है। मैं सिर्फ 20-21 साल का था। बॉबी के साथ अचानक मैं स्टार बन गया। लेकिन मुझे नहीं पता कि वो पैसे सच में आयोजकों के पास पहुँचे या नहीं। पर मैंने उसे 30 हजार रुपए दिए। ’

दिलचस्प बात ये है कि शैलेंद्र सिंह ने भी मुझे दिए इंटरव्यू में ऐसी ही बात बताई थी। उनका कहना था, ‘बॉबी के लिए मुझे बेस्ट सिंगर का अवॉर्ड ऑफर हुआ था, लेकिन मैंने मना कर दिया था। मैं वजह नहीं बता सकता। भारत में अवॉर्ड की कोई अहमियत नहीं है, अच्छे गानों को अवॉर्ड नहीं मिलता है।’

गानों के अलावा बॉबी की मजबूत कड़ी इसका स्क्रीनप्ले है, जिसे पी साठे ने ख्वाजा अहमद अब्बास के साथ लिखा था और अब्बास साहब तब करीब 58 साल के थे। बॉबी का नॉस्टेलजिया आज भी बना हुआ है, कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में दिख ही जाता है।

मसलन कश्मीर में जिस होटल के कमरे में ‘अंदर से कोई बाहर न आ सके’ वाला गाना शूट हुआ था वो आज भी बॉबी हट के नाम से मशहूर हैं और लोग उसे देखते आते हैं। या फिर जब अमेरिकी सैलून में बाल कटाते वक्त जब एक रूसी फैन ने ऋषि कपूर को पहचान लिया और अपने फोन से मैं शायर तो नहीं बजाकर सुनाया।

बंदिशों को तोड़ता प्रेम, अमीरी-गरीबी को पाटता प्यार, फैशन स्टेटमेंट बनाती ये युवा प्रेम कहानी आज भी बेहतरीन टीनएज लव स्टोरी के रूप में याद की जाती है। (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news