विचार / लेख

औरत का शरीर सेक्स का द्वार और मर्द की कुंठा
28-Sep-2023 2:47 PM
औरत का शरीर सेक्स का द्वार और मर्द की कुंठा

  अणु शक्ति सिंह

सुबह अखबार पलट रही थी। एक खबर पर नजर टिकी। दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके की वह खबर फाँस की तरह चुभी।

जून में मुखर्जी नगर के एक आई ए एस कोचिंग सेंटर में आग लगी थी। कई विद्यार्थी रस्सी से उतरे थे। एक लडक़ी भी नीचे उतर रही थी कि उसकी टी शर्ट बीच में कहीं फँस गई। उसने देखा कि लोग लगातार नीचे उतर रहे लोगों का वीडियो बना रहे हैं।

वह लडक़ी उस वक्त जान बचाने की जगह यह सोचने लगी कि टीशर्ट उसकी उठी हुई है। इस हालत में अगर उसका वीडियो बन गया और कहीं वायरल हो गया तो उसकी इज़्ज़त चली जाएगी। वह बदनाम हो जाएगी। इस उधेड़बुन में उसकी पकड़ ढीली हुई। वह नीचे गिरी और एसी के पैनल से उसका सिर टकरा गया। नतीजतन वह दो हफ्ते कोमा में रही।

मैं इस खबर को देख रही थी और सोच रही थी कि शरीर को लेकर हमारे समाज की लड़कियों को कितना असहज बना दिया जाता है। उनके शरीर का दिख जाना उनकी जिंदगी खो जाने से बड़ा डर है। शरीर का दिखना क्यों, वह ब्रा में दिखती। ब्रा जिसे भारत में औरतें अक्सर कपड़ों के नीचे सुखाती हैं।

मैं इस घटना को पढ़ रही थी। साथ में परसों देखी गई फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी को याद कर रही थी। फिल्म थोड़ी ढीली है पर कई दृश्य बेहद पॉवरफुल हैं।

एक जगह रानी की माँ रॉकी को ब्रा की शॉपिंग पर लेकर जाती है। वह मुँह घुमाकर खड़ा रहता है। ब्रा को लेकर घोर असहज है। रानी की माँ वजह पूछती है। कहता है हम औरतों का सम्मान करते हैं। रानी की माँ उसे कॉन्फ्रंट करती है और कहती है भारतीय औरतें तो सदियों से मर्दों की चड्डी धो रही हैं। रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का यह दृश्य जरूरी है।

समाज में औरतों के स्तनों और योनी को केवल अंग कितने लोग मानते हैं? औरतों का स्तन और योनी माने केवल सेक्स। पीरियड से लेकर ल्यूकोरिया तक औरतों की गंभीर यौन समस्याओं को लगातार छिपा कर रखा गया। कितनी जानें गईं इस वजह से। कारण सिफऱ् एक कि औरत का शरीर सेक्स का द्वार है। मर्द की कुंठा का अभिप्राय भी।

मुझे बहुत अच्छा लगा कि इस टॉपिक को यूँ खुलकर बताया गया। मुझे यह भी अच्छा लगा कि मैं यह फि़ल्म अपने साथी और उनके मम्मी-पापा के साथ बैठकर देख रही थी। सभी लोग इस बात को लेकर अप्रिशिएटिव थे। साथी के पिता ने कहा कि फि़ल्म बहुत अच्छे संदेश देती है।

ऐसा नहीं है कि इस पर पहली बार बात हो रही है। हम जैसी औरतें बहुत सालों से बोल रही हैं पर हमारी पहुँच कितनी है? कुछ हज़ार?

फि़ल्म मास-मीडिया है। करोड़ों लोगों तक पहुँचने वाला माध्यम।

पत्रकारिता की विद्यार्थी होने के नाते पहली ही क्लास से जानती रही हूँ कि समाज पर सबसे गहरा असर फिल्में छोड़ती हैं। बॉलीवुड की फि़ल्मों में सालों तक स्त्री द्वेष भरा हुआ रहा। इसलिए अब जब बातें इस ओर हो रही हैं तो अच्छा लग रहा है।

मेरा मन कर रहा है कि उस लडक़ी से मिलूँ और कहूँ, तुम जरूरी हो सबसे अधिक। किसी भी सो कॉल्ड इज़्ज़त-विज्जत के ड्रामे से अधिक।

वह लडक़ी ही क्यों, किसी भी लडक़ी से मिलना है मुझे और कहना है, ‘तुम जरूरी हो सबसे ज़्यादा।’

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