विचार / लेख
डॉ. आर.के.पालीवाल
आज़ादी के आंदोलन के दौरान और आज़ादी के बाद भी कांग्रेस की सबसे बड़ी पहचान धर्म, जाति और क्षेत्रीयता की सीमाओं से ऊपर उठी सर्व समावेशी प्रगतिशील विचारधारा रही है। ऐसा लगता है कि पहली बार केन्द्रीय सत्ता से लगातार एक दशक बाहर रहकर कांग्रेस बौखला गई है और सत्ता प्राप्ति के लिए अपनी पुरानी पहचान नष्ट करने पर तुली है। इसका अहसास महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयानों में साफ दिखाई दिया।
पिछड़ी जातियों के बड़े वोट प्रतिशत के लिए कांग्रेस का पिछड़ी जाति प्रेम उभरना इसी रणनीति का हिस्सा लगता है। क्या यह बदलाव समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल सरीखी पार्टियों की संगत का असर है कि महिला आरक्षण विधेयक पर बहस करते हुए सोनिया गांधी और राहुल गांधी ओ बी सी महिलाओं के आरक्षण का राग अलापते नजऱ आए। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि कांग्रेस के गांधी परिवार के यह दो सर्वेसर्वा जो विगत में कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं और कांग्रेस में जिनका कद सबसे बड़ा है वे संसद के सर्वोच्च प्लेटफार्म पर अचानक एक ही राग अलापने लगें! यह समय के साथ कांग्रेस से दूर हुए ओ बी सी मतदाताओं को रिझाने की कोशिश लगती है।
निश्चित रूप से वर्तमान कांग्रेस न महात्मा गांधी की कांग्रेस है क्योंकि उसका गांधी के रचनात्मक कार्यों से दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है। यह पंडित नेहरू की कांग्रेस भी नहीं रही क्योंकि नेहरू की प्रगतिशीलता का लेशमात्र अंश भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के भाषणों में नहीं झलका। यह देश को एक राष्ट्रीयता की डोर में बांधने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की कांग्रेस भी नहीं है। वर्तमान कांग्रेस सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने वाली वैसी ही पार्टी बन गई है जिस तरह सत्ता से चिपके रहने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने चाल, चरित्र और चेहरे को खूंटी पर टांग दिया है। भाजपा भी कल तक जिन्हें दिन रात पानी पीकर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के लिए कोसती थी उन्हें गले लगाकर कई राज्यों में अपनी सरकार बनाकर अपना उल्लू सीधा किया है।
सोनिया गांधी आजकल लगभग वही भाषा बोल रही हैं जो कभी महिला आरक्षण के विरोध में शरद यादव बोलते थे कि पिछड़ी जातियों की महिलाओं को आगे लाए बिना महिला आरक्षण बेमानी है। यदि सोनिया गांधी को पिछड़ी जातियों के प्रति इतनी चिंता है तो उन्हें सबसे पहले अपने दल की कार्यसमिति और आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ऐसी महिलाओं को आगे लाकर आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।राहुल गांधी तो इस मामले में सोनिया गांधी से भी आगे निकल गए।
वे केन्द्र सरकार को कटघरे मे खड़ा करने के लिए केन्द्र सरकार के सचिवों की जातियां गिनाने लगे और पूछ रहे थे कि सचिवों में पिछड़ी जातियों की संख्या इतनी कम क्यों है। राहुल गांधी को बताना चाहिए कि जब उनकी सरकार थी तब कितने प्रतिशत सचिव पिछड़ी जातियों से थे। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कितने प्रतिशत पिछड़ी जातियों से हैं और उनके दल के कितने राज्यों के अध्यक्ष पिछड़ी जातियों से हैं।
कोई भी व्यक्ति या राजनीतिक दल तब शक्तिशाली बनता है जब वह अपनी खूबियों को जनता के सामने शालीनता के साथ प्रस्तुत करता है। विरोधियों की कमियों को इंगित कर कोई व्यक्ति या संस्था मजबूत नहीं होते।जातिवाद पर हमारे देश के आधुनिक इतिहास में सबसे बड़ा प्रहार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया ने किया था। जातियों की समाप्ति के लिए डॉ अम्बेडकर की किताब एनिहिलेसन ऑफ कास्ट भारत की असंख्य जातियों की जटिलता और राष्ट्र एवं समाज की प्रगति में जातिवाद के प्रतिकूल प्रभाव का प्रामाणिक दस्तावेज है। दुर्भाग्य से अंबेडकर और लोहिया के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां भी जातियों के उन्मूलन के बजाय जातिगत गुणाभाग से ही सत्ता के आसपास पहुंचने का प्रयास करती हैं। बहरहाल कांग्रेस जैसी पार्टी को सत्ता के लिए जाति जाति खेलना कतई शोभा नहीं देता।