विचार / लेख

मनोज झा और ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता पर बिहार की सियासत में थम नहीं रहा बवाल
30-Sep-2023 3:56 PM
मनोज झा और ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता पर  बिहार की सियासत में थम नहीं रहा बवाल

चंदन कुमार जजवाड़े

संसद में महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता पढ़ी थी।

इस कविता पाठ के बाद बिहार की सियासत में एक नया विवाद शुरू हो गया है। इस मुद्दे को राजपूत सम्मान से जोडक़र कई नेता मनोज झा पर आरोप लगा रहे हैं।

मनोज झा पर आक्रामक तेवर दिखाने में सबसे आगे हैं हाल ही में जेल से रिहा हुए आनंद मोहन सिंह और उनके बेटे चेतन आनंद। चेतन आनंद आरजेडी के विधायक हैं। लेकिन इस मुद्दे पर आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने मनोज झा का समर्थन किया है।

लालू यादव ने कहा है, ‘मनोज झा जी विद्वान आदमी हैं। उन्होंने सही बात कही है। राजपूतों के खिलाफ उन्होंने कोई बात नहीं की है। जो सज्जन बयान दे रहे हैं वो जातिवाद के लिए कर रहे हैं, उन्हें परहेज करना चाहिए।’

जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने भी मनोज झा का बचाव किया है।

ललन सिंह ने कहा, ‘मनोज झा जी का राज्यसभा में दिया गया भाषण अपने आप में प्रमाण है कि ये किसी जाति विशेष के लिए नहीं है। भाजपा का काम समाज में तनाव पैदा करना और भावनाएँ भडक़ाकर वोट लेना है। भारतीय जनता पार्टी, कनफुसका पार्टी है, उसका काम ही है भ्रम फैलाना, कनफुसकी करना।’

भले ही पार्टी से लेकर महागठबंधन तक मनोज झा के साथ खड़े दिख रहे हों लेकिन मनोज झा के कविता पाठ के बाद पहला विरोध शिवहर से आरजेडी विधायक चेतन आनंद ने किया था।

चेतन आनंद के बाद इस मुद्दे पर उनके पिता और पूर्व सांसद आनंद मोहन ने भी मनोज झा के खिलाफ बयान दिया।

आनंद मोहन ख़ुद राजपूत बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने भी पत्रकारों से बातचीत में मनोज झा के बयान को राजपूत सम्मान से जोडक़र तीखी प्रतिक्रिया दी है।

ऐसा तब है जब हाल ही में आनंद मोहन की जेल से रिहाई के लिए राज्य सरकार ने कानून में बदलाव किया था। आनंद मोहन गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में जेल में बंद थे।

‘ठाकुर का कुआँ’ ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता है जो जातिवाद के खिलाफ लिखी गई थी।

ओमप्रकाश वाल्मीकि ख़ुद दलित थे। लेकिन संसद में इसे पढऩे वाले मनोज झा ब्राह्मण हैं।

हालाँकि मनोज झा ने 21 सितंबर को संसद में यह भी कहा था कि यह कविता किसी जाति विशेष के लिए नहीं है और इसे प्रतीक के रूप में समझना चाहिए, क्योंकि ‘हम सबके अंदर एक ठाकुर है...’

आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर भी हैं।

आरजेडी पर आरोप

बिहार में महागठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के एमएलसी संजय सिंह ने भी इस मुद्दे पर मनोज झा से मांफ़ी की मांग की है। उनका आरोप है कि मनोज झा ने ठाकुरों का अपमान किया है।

इस विवाद में बीजेपी की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आई है। बीजेपी ने इस पर पटना में आरजेडी के खिलाफ प्रदर्शन भी किया है।

बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसके लिए आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाया है कि आरजेडी हमेशा समाज में झगड़ा लगाने की योजना में होती है।

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर के मुताबिक जो कविता मनोज झा ने पढ़ी थी, वह बहुत मशहूर कविता है। इसमें ठाकुर एक सामंती ताक़त है। जो राजपूत यह नहीं समझते, उन्हें लग रहा कि यह उनकी बात हो रही है। अब सामाजिक न्याय के बदले सामाजिक समीकरण की बात ज़्यादा हो रही है।

‘बेवजह तूल दिया जा रहा है’

डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘बीजेपी को तो मसाला चाहिए। उसे मौका मिल गया है, जबकि यह चर्चा राज्यसभा में हो रही थी। राज्यसभा ऊपरी सदन है और वहाँ बौद्धिक चर्चा होती है, ऐसी चर्चा में ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता बहुत सटीक है कि महिला आरक्षण में पिछड़ी जातियों और दलितों को उचित स्थान मिले।’

आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने बीबीसी से कहा है कि इस मुद्दे को बेवजह तूल किया जा रहा है, मनोज झा ने खुद कहा था कि हम सबके के अंदर एक ठाकुर है और यह किसी जाति विशेष के लिए नहीं है।

शिवानंद तिवारी का कहना है, ‘यह ओमप्रकाश वाल्मीकि की लिखी बहुत पुरानी कविता है। यह कई जगह छप चुकी है और इस कविता को कई पुरस्कार भी मिले हैं। प्रेमचंद ने ‘ठाकुर का कुआँ’ नाम से कहानी भी लिखी थी। दोनों का आशय एक ही है।’

बीजेपी विधायक नीरज कुमार बबलू ने तो पत्रकारों से बातचीत में यहाँ तक दावा किया है कि ठाकुरों की वजह से देश सुरक्षित है।

शिवानंद तिवारी ने नीरज कुमार के बयान पर कहा है कि कि ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता इसी मानसिकता के खिलाफ है, हम जिस सामाजिक न्याय की बात करते हैं वह इसी सोच के खिलाफ है।

इस मुद्दे पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित समाज से आने वाले जीतन राम मांझी ने मनोज झा का समर्थन किया है और कहा है, ‘जो लोग इसपर राजनीति कर रहे हैं वो जातियों के ध्रुवीकरण के लिए राजनीति कर रहे हैं, मनोज झा ने कुछ भी गलत नहीं कहा है, यह किसी जाति के खिलाफ नहीं है, बल्कि एक कविता पढ़ी है।’

बिहार की राजनीति में राजपूत

माना जाता है कि बिहार की राजनीति में राजपूत वोटर करीब पाँच फीसदी हैं, जबकि करीब छह फीसदी आबादी भूमिहार वोटरों की है।

राज्य में ब्राह्मण वोटर करीब तीन फीसदी और कायस्थ वोटर करीब एक प्रतिशत माने जाते हैं। राज्य में अगड़ी जाति के कम वोटर होने के बाद भी इसपर जमकर सियासत हो रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी मानी जाती है कि राजपूत वोटर संख्या में भले ही कम हों लेकिन ये काफी प्रभावशाली हैं। यहाँ तक कि आरजेडी जैसी पार्टी जो आमतौर पर पिछड़ों की राजनीति के लिए जानी जाती है, उसके बिहार प्रदेश के अध्यक्ष भी एक राजपूत नेता जगदानंद सिंह हैं।

यही नहीं पिछले साल बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जगदानंद सिंह के बेटे और आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयान दिया, लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

बिहार में साल 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत विधायक जीतकर आए थे, जिसका बड़ा हिस्सा एनडीए के खाते में गया था।

बिहार में 40 विधानसभा सीटों और आठ लोकसभा सीटों पर राजपूत वोटरों का बड़ा असर माना जाता है।

राज्य में शिवहर, सहरसा, वैशाली, औरंगाबाद और इनके आसपास के इलाकों में राजपूत वोटरों का बड़ा असर माना जाता है।

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि राजपूत नेता के तौर पर पहचान बनाकर आनंद मोहन एक बार जेल में रहकर भी चुनाव जीत गए थे।

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद के मुताबिक, ‘चुनाव करीब होने की वजह से इसपर राजनीति हो रही है। मुझे लगता है कि तिल का ताड़ बनाया जा रहा है। ऐसा ही सुशांत सिंह राजपूत की मौत के वक्त हो रहा था। लेकिन सुशांत की मौत को मुद्दा बनाने से बीजेपी को बहुत लाभ हुआ हो, ऐसा नहीं दिखता।’

‘मुद्दों का अभाव’

डीएम दिवाकर इस मुद्दे को हवा देने के पीछे नेताओं के पास मुद्दों का अभाव देखते हैं।

उनका मानना है, ‘बिहार में बीजेपी हारे हुए जुआरी की तरह है, उसे जो मिल जाए उसी के साथ चल पड़ती है। बीजेपी इसलिए इस मुद्दे को उठा रही है ताकि अगर ये मुद्दा तूल पकड़ता है तो बाकी मूल मुद्दे दब जाएँगे, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी, अदानी, सीएजी रिपोर्ट और भ्रष्टाचार तक के मुद्दे शामिल हैं।’

उनका कहना है कि इसके पीछे विपक्ष भी जिम्मेदार है। अगर वो मूल रूप से बीजेपी की असफलताओं जैसे रोजग़ार का मुद्दा, महंगाई, भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था की बुरी हालत पर बहस को बनाए रखते तो शायद बीजेपी को घेरे रखते। लेकिन इसकी जगह मनोज झा के बयान पर राजनीति हो रही है।

आनंद मोहन की रिहाई बनी थी मुद्दा

बिहार की हालिया राजनीति में आनंद मोहन की रिहाई एक बड़ा मुद्दा बनी थी। हालाँकि बीजेपी भी इसका बहुत विरोध नहीं कर पाई थी।

यहाँ तक कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने आनंद मोहन को ‘बेचारा’ तक कहकर उनका समर्थन किया था।

आनंद मोहन राज्य की सियासत में बड़े राजपूत चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं। इससे पहले आरजेडी में रघुवंश प्रसाद सिंह का कद काफी बड़ा माना जाता था और वो लालू प्रसाद यादव के करीबी भी थे।

रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन के बाद उनकी जगह बड़े कद का कोई राजपूत नेता राज्य की राजनीति में उभर नहीं पाया है।

हाल ही में महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को सुप्रीम कोर्ट से एक दोहरे हत्याकांड में सजा सुनाई गई है। प्रभुनाथ सिंह एक हत्या के आरोप में पहले से जेल में हैं।

बिहार में जातीय खींच-तान का इतिहास

बिहार की राजनीति में नेताओं के बीच जातीय राजनीति को लेकर विवाद का पुराना इतिहास रहा है। इस शुरुआत बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के ज़माने से हो गई थी।

श्रीकृष्ण सिंह और बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिंह के बीच जातीय गोलबंदी की चर्चा आज भी बिहार की राजनीति में होती है।

श्रीकृष्ण सिंह जहाँ भूमिहार जाति से थे, वहीं अनुग्रह नारायण सिंह राजपूत बिरादरी से थे।

डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘बिहार की राजनीति में ब्राह्मण बनाम राजपूत की राजनीति कभी नहीं रही है। भूमिहार और राजपूत नेताओं के बीच खींचतान जरूर रही है। श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के बीच भी शीत युद्ध चलता था।’

राज्य की राजनीति में जातीय खींचतान की यह कहानी आगे तक चलती रही। साल 1961 में बिनोदानंद झा के राज्य के मुख्यमंत्री रहते बिहार में चर्चित मछली कांड की ख़बरे भी खूब सुर्खियों में रही थीं।

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे बिनोदानंद झा पर आरोप लगाता था कि उनको मछली में जहर देकर मारने की साजि़श हो रही थी। यह विवाद इतना बढ़ा था मामला देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुँच गया था।

उनके बाद जब साल 1963 में कृष्ण बल्लभ सहाय मुख्यमंत्री बने तो कहा जाता है कि वो एक तरफ भूमिहार नेता महेश प्रसाद सिन्हा से परेशान रहे तो दूसरी तरफ राजपूत नेता और अनुग्रह नारायण सिंह के बेटे सत्येंद्र नारायण सिंह से।

कहा जाता है कि इन दोनों के दबाव से निपटने के लिए केबी सहाय ने पिछड़े और मुस्लिम बिरादरी के नेताओं को आगे बढ़ाया और उनका सहारा लिया था।

इस तरह से बिहार की सियासत में भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ नेता कई दशक पहले से राजनीतिक खींच-तान के केंद्र में रहे हैं।

सुरूर अहमद कहते हैं, ‘मूल रूप से साल 1967 के चुनावों के बाद बिहार की राजनीति में पिछड़े नेताओं का आगे बढऩा शुरू हुआ था। उसके बाद साल 1974 के जेपी आंदोलन ने इन नेताओं को और ताकतवर बनाया। लेकिन मंडल आयोग के समर्थन और विरोध ने यहाँ की राजनीति को जातियों से हटाकर अगड़े और पिछड़े में बदल दिया।’ 

सुरूर अहमद के मुताबिक़ बिहार में पहले कॉलेज कैंपस से लेकर सडक़ों तक की राजनीति में भूमिहार और राजपूत प्रभावशाली थे, पटना और इसके आसपास थोड़े बहुत कायस्थों की राजनीति थी। जबकि मिथिलांचल में मैथिल ब्राह्मण और भागलपुर के इलाक़े में थोड़ा-बहुत असर बंगालियों का भी था।

1960 के दशक के अंत से ही बिहार में जोड़-तोड़ और जातीय सियासत ने पिछड़ी जातियों के नेताओं और वोटरों को हाशिए से बाहर निकाल दिया था। साल 1967 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में कोई मुख्यमंत्री ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक पाया।

जन क्रांति दल के महामाया प्रसाद सिन्हा और शोषित दल के सतीश प्रसाद सिंह के बाद बीपी मंडल और भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने। इसमें भी अगड़ी जाति के नेताओं की आपसी खींच-तान को बड़ी वजह माना जाता है।

बीजेपी पर आमतौर पर अगड़ी जातियों की पार्टी होने का आरोप लगाया जाता है। जबकि राज्य की सियासत में दलित-पिछड़े वोटरों के असर को इस तरह भी देख सकते हैं कि बिहार हिन्दी पट्टी का एकमात्र राज्य है जहां बीजेपी कभी अपनी सरकार नहीं बना पाई है यानी बीजेपी का कोई नेता यहाँ का मुख्यमंत्री नहीं बना है।

यही नहीं बिहार में बीते तीन दशक से ज़्यादा लंबे समय से लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार और कुछ महीनों के लिए जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे हैं।

ऐसे में राज्य की सियासत में ब्राह्मण बनाम ठाकुर का यह मुद्दा कितने दिनों तक टिका रहता है यह देखना भी दिलचस्प होगा। (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news