विचार / लेख

भारत कनाडा संबंध
01-Oct-2023 8:24 PM
भारत कनाडा संबंध

-डॉ. आर.के. पालीवाल
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो में शायद कूटनीतिक अनुभव की कमी है अन्यथा वे अपनी संसद में यह बचकाना बयान नहीं देते कि उनकी जांच एजेंसियों को संदेह है कि भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर,जो कनाडाई नागरिक है, की हत्या में भारत सरकार के एजेंट का हाथ है। यह बहुत गंभीर आरोप है जो किसी राजनीतिक दल के हल्के नेता ने नहीं खुद कनाडा के प्रधानमंत्री ने संसद सरीखे सर्वोच्च प्लेटफार्म पर लगाया है। बात यहीं तक समाप्त नहीं हुई कनाडा की विदेश मंत्री ने एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को कनाडा से बाहर करने के पीछे भी यही बात दोहराई है।भारत के प्रति इस तरह का घटनाक्रम अभी तक पाकिस्तान जैसे देशों में ही होता था। जवाबी कार्यवाही करते हुए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने हालांकि कनाडा के प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री के बयानों का जोरदार खंडन किया है लेकिन उससे बात नहीं संभली। कनाडा की तरह जैसे को तैसा की नीति से एक कनाडाई राजनयिक को भी भारत ने देश से बाहर कर दिया है और कनाडाई नागरिकों के वीजा पर भी रोक लगाई है। जिस तरह से कनाडा के प्रधानमंत्री ने अपनी संसद में यह मुद्दा उठाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आगे आकर संसद के विशेष सत्र में इस मुददे पर बयान देकर पूरे देश को विश्वास में लेकर विश्व को स्पष्ट संदेश देना चाहिए था।

यह बेहद दुर्भाग्यजनक है कि कुछ दिन पहले ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जी 20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने भारत आए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी। ऐसे में इस वैश्विक समूह की अध्यक्षता करते समय भारत सरकार पर यह गंभीर आरोप लगना देश की वैश्विक छवि के लिए अच्छा नहीं है। कनाडा यहीं नहीं रुका उसने भारत आने वाले अपने नागरिकों के लिए नई एडवाइजरी जारी की है जिसमें उन्हें जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और पश्चिमी भारत के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षित माहौल नहीं होने के कारण नहीं जाने की सलाह दी है। जब भारत दुनियां को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि हमारे यहां मजबूत लोकतंत्र है और जम्मू कश्मीर सहित देश भर में सुरक्षित माहौल है ऐसे में कनाडा की एडवाइजरी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।

भारत और कनाडा के संबंध संभवत: इस वक्त अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। दोनों तरफ से हो रही बयानबाजी और कार्यवाही से कोई सकारात्मक संदेश नहीं आ रहा। हालांकि इसकी शुरुआत कनाडा की तरफ से हुई है। कनाडा में भारत के बहुत नागरिक बसे हैं जिनमें पंजाब के एन आर आई और कनाडा की नागरिकता लिए सिख समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। ऐसा लगता है कि भारत यात्रा के दौरान कनाडा के प्रधानमंत्री ने वैसी गर्मजोशी महसूस नहीं की जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे। जब शिखर सम्मेलन में अमेरिका जैसे बड़े देशों के नेता शिरकत कर रहे हों तब हर देश के नेता को उसकी उम्मीद के मुताबिक समय देना किसी भी देश के लिए संभव भी नहीं है।

कनाडा न केवल एक विकसित देश है बल्कि उसका वैश्विक परिदृश्य में सामरिक महत्व है। क्षेत्रफल के हिसाब से वह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है जिसके पास दुनियां का सबसे लंबा समुद्र तट है। शिक्षा से लेकर नागारिक स्वतंत्रता और स्वास्थ्य आदि की दृष्टि से उसे दुनिया के ऊपर के दस देशों में गिना जाता है। भारत से बडी संख्या में छात्र और नौकरी एवं व्यापार करने वाले एन आर आई वहां अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के कारण वहां खालिस्तान समर्थकों को काफी चंदा और सुरक्षा मिलती है। अमेरिका का पड़ोसी होने के साथ साथ अमेरिका से कनाडा के संबंध भी मधुर हैं। यही वजह है कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री ने भी कनाडा के समर्थन में बयान दिया है। ऐसे में हमें धैर्य से विदेश कूटनीति की जरुरत है। इस वक्त ईंट का जवाब पत्थर से देने की जगह गांधीगिरी एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

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