विचार / लेख
![मां बाप को पेरेंटिंग-ट्रेनिंग की जरूरत मां बाप को पेरेंटिंग-ट्रेनिंग की जरूरत](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/169617318561802393-H-768x525.jpg)
-ममता सिंह
अगर आपको लगता है कि पांच-छ: साल के छोटे बच्चे प्राइवेट पार्ट्स के बारे में कुछ नहीं जानते, न वह इस बारे में किसी अपने हमउम्र से बात करते हैं तो आप एकदम गलत हैं। बच्चे बहुत क्यूरियस होते हैं और इतने समझदार भी कि मां बाप को क्या और कितनी बात बतानी है।
वह अपने मां-बाप से क्लासरूम की बात बताते हैं पर अक्सर स्कूल के वाशरूम में होने वाली बात छुपा लेते हैं चूंकि उन्हें जाने अनजाने में ही अच्छी बात/बुरी बात की समझ हो जाती है, क्योंकि पूर्व में उन्होंने कभी कुछ बताने की कोशिश की होती है तो उनके पेरेंट्स उन्हें डांटते हुए कहते हैं बेटा यह गंदी बात है, यह सब कहां से सीखे, किन गंदे बच्चों के साथ तुम दोस्ती किए हो। नतीजे में बच्चा अपनी एक गोपनीय दुनिया बनाने लगता है।
इस देश में डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर बनाने के लिए तो ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं पर माता पिता बनने से पूर्व कोई ख़ास मानसिक तैयारी की जरूरत नहीं समझी जाती, बस दुनिया का सबसे जरूरी काम जाति, धर्म, गोत्र, दहेज देखकर दो अजनबियों की शादी करवा दो और शादी होने के दिन से खुशखबरी कब आयेगी कि रट लगाकर बच्चे पैदा करवा दो। नतीजतन ऐसे इमैच्योर माता पिता की फौज यहां भरी पड़ी है जो बच्चों को खिलाने, घुमाने, पढ़ाने, पहनाने-ओढ़ाने और जि़द पूरी करने को ही गुड पेरेंटिंग समझते हैं. न उन्हें छोटे बच्चों की आंतरिक और गोपनीय दुनिया की जानकारी होती है, न किशोर बच्चों की दुरूह दुनिया की।
बच्चा बड़ों से सेक्स संबंधी सवाल नहीं कर सकता, वह अपनी जिज्ञासाओं, उत्सुकताओं का शमन कहां और कैसे करे उसे नहीं पता। आज भी समाज भले प्रोग्रेसिव हो गया है पर जब बच्चा पूछता है कि मैं कहां से आया तो कोई मां बाप उसे मंदिर से, कोई बाजार से, कोई अस्पताल से लाया बताते हैं पर वह असल में कहां से आया यह बताने भर की समझ पेरेंट्स में नहीं विकसित हुई है, हां बच्चा अपने आसपास खुलेआम सेक्सिस्ट जोक, गालियां सुनता है, गर्भ निरोध के बड़े बड़े होर्डिंग पोस्टर देखता है, टीवी में लगभग नंगी देहें देखता है पर कहीं उसने किसी शारीरिक अंग का नाम ले लिया तो वह गंदा बच्चा कहलाएगा।
यह बहुत कमाल की बात है कि छोटे बच्चों को अपनी इमेज की फिक्र किसी वयस्क से अधिक होती है, आपने कई बार देखा होगा कि जब आप बच्चे की किसी बदमाशी या कोई गोपनीय बात किसी घर आए परिचित से बताने की कोशिश करते हैं तो बच्चा अनइजी हो उठता है, कई बार तो वह फोर्सफुली मां बाप को रोकता है कि उसकी बातें किसी से नहीं बताई जाएं, ज़ाहिर तौर पर वह हल्की-फुल्की शरारतें ही होती हैं पर जब यहीं बातें उसे इंबेरेंस फील कराती हैं तो प्राइवेट पार्ट्स और सेक्स से संबंधित बात उसे कितना शर्मिंदा करेंगी यह बच्चा अच्छे से जानता है सो वह अपनी एक गुप्त दुनिया बना लेता है, जिसके दरवाजे पर बड़ों का प्रवेश वर्जित है लिखा होता है। और बड़े वह तो बने ही इसलिए हैं कि वह बच्चा पैदा करके उसके आगे आपस में लड़ते झगड़ते, रोते कलपते, एक-दूसरे पर लापरवाह मां या बाप होने की तोहमत लगाते या यह कहते हुए कि क्या कमी रह गई हमारी परवरिश में इतने महंगे स्कूल में पढ़ा रहे, अच्छे से अच्छा खिला रहे, पहना रहे, हर फरमाईश पूरी कर रहे और तुम हो कि गंदी बातें सीखते हो कहते हुए जिंदगी गुजार दें।
मुझे लगता है इस देश में बच्चों पर आदर्शवाद थोपने से पहले उनके मां बाप को चाइल्ड साइकोलॉजी पढऩे और पेरेंटिंग की ट्रेनिंग की जरूरत है।