सामान्य ज्ञान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह उद्घोषणा द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाए कि भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या साख संकट में है। बाद की उद्घोषणा को वापस लिया जा सकता है या उसमें परिवर्तन किया जा सकता है। इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखना होगा। वह दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी, यदि इस बीच दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन न कर दिया जाए। एक बार यदि संसद उसका अनुमोदन कर दे तो अनुच्छेद 352 के अधीन की गई उदघोषणाओं के विपरीत उसे अनिश्चित काल तक जारी रखा जा सकता है, जब तक कि उसे वापस न ले लिया जाए या उसमें परिवर्तन न कर दिया जाए।
वित्तीय आपात के प्रवर्तन के दौरान संघ का कार्यपालिका का प्राधिकार इस बारे में भी होगा कि वह राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी कतिपय सिद्धांतों का पालन करने के लिए निर्देश दे सके और ऐसे अन्य निर्देश दे सके जिन्हें राष्टï्रपति जरुरी और उचित समझे। ये निर्देश इस बारे में भी हो सकते हैं कि राज्य की सेवा करने वाले सभी व्यक्तियों के वेतनों तथा भत्तों में कटौती कर दी जाए और अनुच्छेद 207 के अधीन धन विधेयकों तथा अन्य विधेयकों को राष्टï्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखा जाए जब वे राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित कर दिए जाएं। राष्टï्रपति संघ के कार्यकलापों के संबंध में सेवा करने वाले सभी व्यक्तियों के वेतनों तथा भत्तों में कमी करने का निर्देश भी दे सकता है और उनमें उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायधीश भी शामिल होंगे।
सौभाग्य से, अभी तक संविधान के प्रवर्तन के वर्गित लगभग 53 वर्षों (1950-2003) के दौरान वित्तीय आपात लागू करने का एक भी अवसर नहीं आया है।