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करेज एंड कमिटमेंट(साहस एवं प्रतिबद्धता)- एक आत्मकथा-मार्ग्रेट अल्वा
17-Jul-2020 11:51 AM
करेज एंड कमिटमेंट(साहस एवं प्रतिबद्धता)- एक आत्मकथा-मार्ग्रेट अल्वा

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्ग्रेट अल्वा द्वारा लिखित पुस्तक करेज एंड कमिटमेंट(साहस एवं प्रतिबद्धता) जुलाई 2016 के दूसरे सप्ताह में खबरों में रही।  इस किताब में उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा  राव और सोनिया गांधी के साथ काम करने के अनुभव के बारे में लिखा है। 

मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल 1942 को मैंगलूर में हुआ।  6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक उत्तराखण्ड की पहली महिला राज्यपाल के रूप मे कार्य किया।  वे 12 मई 2012 से 5 अगस्त 2014 तक राजस्थान राज्य की राज्यपाल रही।  वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक वरिष्ठ सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की आम सचिव हैं। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में किसी महिला की ओर से किए गए अहम योगदान के लिए 2012 में उन्हें मर्सी रवि अवॉर्ड प्रदान किया गया था।

24 मई 1964 में उनकी शादी निरंजन अल्वा से हुई। उनकी एक बेटी और तीन बेटे हैं। दोनों बेटों निरेत अल्वा और निखिल अल्वा ने मिलकर 1992 में मेडिटेक नमक कंपनी की स्थापना की, जो कि एक टेलीविजऩ सॉफ्टवेयर कंपनी है।  निरंजन अल्वा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारतीय संसद की पहली जोड़ी जोकिम अल्वा और वायलेट अल्वा के पुत्र हैं। 

मार्गेट अल्वा ने  एक एडवोकेट के रूप में विशिष्ट पहचान बनाई ।  कानूनी लड़ाई के पेशे में रहते हुए उन्होंने तैल चित्र बनाने जैसी ललितकला में और गृह-सज्जा के क्षेत्र में भी महारथ हासिल की। वे अपनी सुरूचि पूर्ण जीवन शैली और सौंदर्य बोध के लिए भी जानी जाती रही हैं। कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पांच पारियां (1974से 2004) खेल चुकने के साथ-साथ वे केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं। एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की। महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा। केवल देश में में ही नहीं, समुद्र पार भी उन्होंने मानव-स्वतन्त्रता और महिला-हितों के अनुष्ठानों में अपनी बौद्धिक आहुति दी। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने तो उन्हें वहांके स्वाधीनता संग्राम में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लडऩे में अपना समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया। वे संसद की अनेक समितियों में रहने के साथ-साथ राज्य सभा के सभापति के पैनल में भी रहीं। 

 

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