सामान्य ज्ञान
भगवान विष्णु के अवतारों में से भगवान कृष्ण सबसे ज्यादा पूजनीय अवतार हैं। पूरे विश्व में श्रीकृष्ण के भक्त हैं और उनके मंदिर भी मौजूद हैं, जहां उनके कई रूपों की पूजा की जाती है। यह सभी मंदिर भगवान कृष्ण से जुड़ी कथाओं, इतिहास और वास्तुकला का प्रदर्शन करते हैं। कई मंदिरों में तो कृष्ण के साथ राधा और रुकमणी की भी पूजा की जाती है। इनमें से कुछ मंदिर इस प्रकार हैं-
श्री राधा पार्थासारथि मन्दिर -नई दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश स्थित इस मंदिर का निर्माण 1998 में हुआ था और इसे इस्कॉन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान कृष्ण और पार्थासारथि रूप में राधारानी विराजमान हैं।
वृंदावन स्थित कृष्ण मंदिर-हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपना बचपन इसी जगह गुजारा था। जब अकबर ने यहां का दौरा किया तो उसने यहां कृष्ण के चार मंदिर: मदन-मोहन, गोविंदजी, गोपीनाथ और जुगल बनवाने का आदेश दिया। चारों मंदिर बहुत रमणीय हैं।
जुगल किशोर मंदिर- यह मंदिर मथुरा में बना है और इसी जगह को भगवान कृष्ण का जन्मस्थान भी माना जाता है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने यहीं पर केसी राक्षस का वध किया था और फिर इसी घाट पर स्नान किया था। इसी वजह से इसका नाम केसी घाट मंदिर भी पड़ गया।
द्वारकाधीश मंदिर- द्वारका गुजरात के पश्चिम में बसा है और कृष्ण भक्त यहां दूर-दूर से आते हैं। द्वारकाधीश मंदिर लगभग ढाई हजार साल पुराना है और इसे जगत मंदिर भी कहा जाता है। यहां आप कृष्णा की पत्नी रुक्मिणी के भी दर्शन कर सकते हैं।
जगन्नाथ मंदिर-यह मंदिर पुरी में बना है और बहुत प्रसिद्ध भी है। यहां पर भगवान जगन्नाथ, बालभद्रा और देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के लाखों भक्त यहां उनके दर्शन कर आशीर्वाद पाने आते हैं।
गुरुवयूर मंदिर- इसे दक्षिण का द्वारका भी कहा जाता है। केरल में स्थित यह मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद कृष्ण रूप को स्वयं ब्रह्मा ने भी पूजा था। नव विवाहित जोड़े यहां अपने वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आशीर्वाद पाने आते हैं।
उपशास्त्रीय संगीत
उपशास्त्रीय संगीत में शास्त्रीय संगीत तथा लोक संगीत अथवा शास्त्रीय संगीत और लोकप्रिय संगीत जैसे पश्चिमी या पॉप का मिश्रण होता है। ऐसा संगीत को लोकप्रिय बनाने या विशेष प्रभाव उत्पन्न करने के लिए फिल्मों या नाटकों में किया जाता है।
लोकगीतों में धु्रपद, धमार, होली व चैती आदि अनेक विधाएँ हैं जो पहले लोक संगीत की भांति प्रकाश में आए और बाद में उनका शास्त्रीयकरण किया गया। इनके शास्त्रीय रूप का विद्वान पूरी तरह पालन करते हैं, लेकिन आज भी लोक-संगीतकार इनके शास्त्रीय रूप का गंभीरता से पालन किए बिना इन्हें सुंदरता से प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार के मिश्रण को उपशास्त्रीय संगीत कहते हैं।