सामान्य ज्ञान
वैदिक ज्योतिष में कुण्डली का छठा भाव रोग भाव, त्रिक भाव, दु:स्थान, उपचय, अपोक्लिम और त्रिषाडय भाव के नाम से जाना जाता है। इस भाव का निर्बल होना अनुकुल माना जाता है। छठा भाव जिसे ज्ञाति भाव भी कहते है। यह भाव व्यक्ति के शत्रु संबन्ध दर्शाता है।
इस भाव से ऋण, रोग, नौकरी, पेशा, दुर्दशा, सन्ताप, चोट, चिन्ताएं, असफलताएं, बिमारियां, दुर्घटनाएं, अवरोध,षडयंत्र, मानसिक पीड़ा, घाव, कारावास, क्रूर कार्य, न्यूनता, और चाहत का भाव, मानसिक स्थिरता, इमारती लकड़ी, पत्थर, औजार, अस्पताल, जेल, सौतेली मां, दण्ड, क्रूर आदेशों का पालन, प्रतियोगिताओं में अनुकल परिणाम, काम, क्रोध, मोह, अहंकार, ईष्र्या , निवेश में हानि, साझेदारी, भौतिक समृद्धि और अस्वस्थता का पता चलता है।
छठे भाव का कारक मंगल ग्रह है। मंगल से इस भाव से शत्रु, शत्रुता, मुकदमेबाजी, अवरोध, चोट आदि देखे जाते हैं। शनि इस भाव से रोग, शोक, ऋण आदि प्रकट करता है और बुध षष्ट भाव में भाई-बन्धु, मामा और चाचा का प्रतिनिधित्व करता है। छठा भाव शत्रु भाव के रुप में विशेष रुप से जाना जाता है। इस भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति के शत्रुओं का विचार किया जाता है।