सामान्य ज्ञान
भारत की परंपरा रही है कि लगभग सभी मंदिरों के पास जल के प्राकृतिक या मनुष्य निर्मित स्रोत रहें। नदी, तालाब, कुंआ या बावड़ी आदि के रूप में मंदिरों या उपासना स्थलों के साथ जल संरक्षण को जोड़ा गया था।
हम लोग पानी के दो ही प्रकार जानते हैं- जमीन के ऊपर का पानी और जमीन के अंदर का पानी।
पानी तीन प्रकार के हैं।
एक पालेर पानी अर्थात् वर्षा का पानी। पानी के जितने भी स्रोत, नदी, तालाब, कुएं आदि दिखते हैं, उनके मूल में तो वर्षा का ही जल है।
दूसरा है, रेजानी पानी। यह वह पानी है जो भूमि के नीचे खड़ीन की पट्टी में जमा होता है। यह खड़ीन की पट्टी जमीन के नीचे केवल पांच-छ: फुट नीचे होती है। यह भंडार भी प्रत्येक बरसात में पुन: भर जाता।
तीसरा पानी है पाताल पानी जो जमीन के गहरे अंदर होता है। पाताल पानी का उपयोग अत्यंत संकट के समय करने की सलाह दी जाती है। आज हम सबसे अधिक पाताल पानी का ही उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि पालेर पानी का हमने इतना अधिक दोहन किया है कि वह नष्ट हो गया है।