सामान्य ज्ञान
खनिजों की रॉयल्टी केंद्र सरकार तय करती है। दरअसल रॉयल्टी सरकार द्वारा लगाया गया एक कर है जिसके लिए खानों का स्वामित्व अधिकार का हस्तांतरण करता है। रॉयल्टी राज्य सरकार द्वारा जमा की जाती है, केंद्र सरकार के पास उसमें संशोधन करने का अधिकार है। रॉयल्टी की दरें प्रत्येक तीन वर्ष में प्रमुख खनिजों के लिए संशोधित की जाती हैं। पिछली बार इसमें अगस्त 2009 में यथामूल्य करों (एड वालोरेम टैक्सेस) के आधार पर संशोधन किया गया था जो कि खनिजों के कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी या कमी पर निर्भर होता है। सरकार के लिए रॉयल्टी दरों का कदम राजस्व का एक स्रोत है जबकि उद्योगपति इसे उत्पादन लागत का हिस्सा मानते हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला, लिग्नाइट और रेत को छोडक़र 55 वस्तुओं के खनन पर रॉयल्टी की दरों में वृद्धि करने की मंजूरी 20 अगस्त 2014 को दी है। लौह अयस्क पर रॉयल्टी की मौजूदा दर 10 फीसदी को बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया गया। संशोधित रॉयल्टी दरें लगभग सभी खनिजों जैसे बॉक्साइट, चूना पत्थर, तांबा और जस्ता, को प्रभावित करेगा।
सरकार के इस कदम से खनिजों से समृद्ध 11 राज्यों के वार्षिक राजस्व में 40 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और उनका राजस्व 15 हजार करोड़ रुपये हो जाएगा। छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड, कर्नाटक और गोवा इन 11 खनिज समृद्ध राज्यों में से हैं। खनन और खनिज (नियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 की दूसरी अनुसूची के मुताबिक 51 खनिज हैं और हर एक खनिज की रॉयल्टी दर अलग होगी।