सामान्य ज्ञान
मैंग्रोव सामान्यतया पेड़ और पौधे होते हैं, जो खारे पानी में तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये उष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में मिलते हैं। यह शब्द तीन अर्थों में प्रयोग किया जाता है-
1. पूर्ण पेड़ या पौधे के आवास के लिए मैन्ग्रोव स्वैम्प्स (दलदल) या मैन्ग्रोव वन प्रयोग किया जाता है।
2. मंगल के सभी पेड़ों और पौधों के लिए,
3. जो रिज़ोफोरेसी परिवार से होते हैं, या रिज़ोफोरा वंश से किसी भी पादप के लिए।
मैंग्रोव वनों के भौगोलिक वितरण को नियंत्रित करने वाला मुख्य कारक वहां के वातावरण का तापमान है। विषुवत रेखा के आसपास के क्षेत्रों में जहां जलवायु गर्म तथा नम होती है, वहां मैंग्रोव वनस्पतियों की लगभग सभी प्रजातियां पाई जाती हैं। मैंग्रोव वनस्पति विश्व के लगभग 112 देशों में पाई जाती हैं जिनमें अधिकतर उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में स्थित हैं। यदि जापान तथा बरमूडा के क्षेत्रों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो मैंग्रोव क्षेत्रों का फैलाव पृथ्वी के दक्षिणी गोलाद्र्ध तक ही सीमित है।
विश्व में मैंग्रोव वनस्पति की लगभग 50 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें 16 कुलों (फैमिली) में रखा जा सकता है। इनमें से लाल मैंग्रोव वनस्पति (राइजोफोरा प्रजाति), काली मैंग्रोव वनस्पति (ब्रूगेरिया प्रजाति), सफेद मैंग्रोव वनस्पति (ऐविसेनिया प्रजाति) आदि वास्तविक मैंग्रोव की श्रेणी में आते हैं। विश्व में पाए जाने वाले चार मुख्य प्रकार के मैंग्रोव पौधों का संक्षिप्त विवरण यहां दिया जा रहा है।
(1) लाल मैंग्रोव वनस्पति की श्रेणी में वे पौधे आते हैं जो बहुत अधिक खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखते हैं तथा समुद्र के नजदीक उगते हैं। इनमें भी अन्य मैंग्रोव पौधों की तरह विशेष रूपान्तरित जड़ें होती हैं जो तने के निचले भाग से निकल कर धरती तक पहुंचती हैं और पौधे को स्थिरता प्रदान करती हैं इसलिए इन्हें स्थिर जड़ें कहा जाता है। ये जड़ें पौधों को ऐसे स्थानों में उगने की क्षमता प्रदान करती हैं जहां भूमि में ऑक्सीजन कम होती है। इन्हीं जड़ों से पौधा वातावरण से हवा का आदान-प्रदान व भूमि से पोषक तत्वों को प्राप्त करता है।
(2) काली मैंग्रोव वनस्पति की श्रेणी में वे पौधे आते हैं जिनकी खारे पानी को सहने की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। इन पौधों में विशेष प्रकार की श्वसन जड़ें पायी जाती हैं जो दलदल में उगने वाले पौधों में देखी जाती हैं। इन जड़ों में गैसों के आदान-प्रदान के लिये विशेष संरचनाएं होती हैं जिन्हें वातरंध्र (लैन्टिकल्स) कहते हैं। इनमें हवा का प्रवेश वायव मूलों (न्यूमेथोड्स) से होता है।
(3) सफेद मैंग्रोव वनस्पति का नाम इनकी चिकनी सफेद छाल के कारण पड़ा है। इन पौधों को इनकी जड़ों तथा पत्तियों की विशेष प्रकार की बनावट के कारण अलग से पहचाना जा सकता है।
(4) बटनवुड मैंग्रोव - ये झाड़ी के आकार के पौधें होते हैं तथा इनका यह नाम इनके लाल-भूरे रंग के तिकोने फलों के कारण है।
भारत में लगभग 4482 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव वनों के अन्तर्गत आता है जिसमें 59 प्रतिशत पूर्व तट (बंगाल की खाड़ी), 23 प्रतिशत पश्चिमी तट (अरब सागर) तथा 18 प्रतिशत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है। भारतीय कच्छ वनस्पति मुख्यत: तीन प्रकार के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है - डेल्टा, पश्च जल नदी मुहाने तथा द्वीपीय क्षेत्र।