सामान्य ज्ञान
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय गुप्त राजवंश शासन के दौरान पांचवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह बिहार में सीखने के लिए एक प्राचीन विश्व विख्यात केंद्र था जिसमें 5वीं शताब्दी से वर्ष 1197 के दौरान दुनिया भर और मुख्य रूप से पूर्वी एशिया और चीन से छात्रों को शिक्षा के लिए आकर्षित किया। प्राचीन समय में, नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया भर से हजारों विद्वान और विचारक आए। यह कुतबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी के हमलावर तुर्की सेना के द्वारा वर्ष 1197 में ढहा दिया गया। ऐसा माना जाता है कि इसके विशाल पुस्तकालय की में लगी आग की ज्वाला कई दिनों तक जलती रही थी।
अब इस विश्वविद्यालय का पुनर्निमाण किया गया है और इसका पहला सत्र भी शुरू हो गया है। इस नए विश्वविद्यालय को पटना से लगभग 100 किलोमीटर दूर बौद्ध तीर्थयात्री शहर राजगीर के अपने अस्थायी परिसर में शुरू किया गया है। वर्तमान में, विश्वविद्यालय में 10 शिक्षक हैं। पूरी तरह से आवासीय विश्वविद्यालय के वर्ष 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है। नालंदा विश्वविद्यालय के पहले कुलपति - गोपा सभरवाल बनाए गए हैं। वहीं विश्वविद्यालय के शासी निकाय के अध्यक्ष के रूप में अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन की नियुक्ति की गई है।
नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के प्रस्ताव के बाद किया गया। उन्होंने वर्ष 2006 में विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा। संसद द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम वर्ष 2010 में पारित कर दिया गया और 15 नवंबर 2010 को इसकी अधिसूचना के बाद विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए 2700 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं, जो कि 10 वर्षों में खर्च किया जाना है।