सामान्य ज्ञान
तारकसी एक काष्ठकला है। पूरी दुनिया में तारकसी कला का मैनपुरी ही एक मात्र केंद्र है। तारकसी लकड़ी पर की जाने वाली एक तरह की नक्काशी है जो धातु के तारों से की जाती है। इसके लिए लकड़ी को खास तरह से तैयार किया जाता है जो एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया है। शीशम की लकड़ी अधिक मजबूत होती है इसलिए इस लकड़ी का हमारे दैनिक कार्यों में सबसे अधिक प्रयोग है।
इस कला का सबसे पहले जिक्र 1864 में अस्सिटेंट कलक्टर फेडरिक सीमन ग्राउस ने किया था। ग्राउस ने अपने कई संस्मरणों में तारकशी का जिक्र किया है। ग्राउस इस कला से बेहद मुत्तासिर थे। चौहन वंश की एक शाखा जो मैनपुरी आई तो उनके साथ एक ओझा परिवार भी आया जो काष्ठकला में माहिर था। इस परिवार की बनाई हुई कई चीजें लखनऊ मूजियम में रखीं हैं। यूरोप के देशों में इस कला को जबरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई। 18वीं सदी में तारकसी के चाहने वाले पुरी दुनिया में हो गए, लेकिन अफसोस मैनपुरी में तारकसी की कला दम तोंडती नजर आ रही है। कद्रदान होने के बाद भी इस कला को अपनाने वालों की कमी इस कला के बजूद के लिए खतरा बन गई है।