सामान्य ज्ञान
पूर्वकालीन बौद्ध धर्म के वृतांत में छह बौद्ध संगीतियो का वर्णन किया गया है। यह वृतांत पहली सहस्राब्दी ई.पू. के आरम्भ से 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ऐतिहासिक बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद की अवधि के दौरान विस्तारित हुआ था। यह एक सांप्रदायिक संघर्ष और संभावित फूट की भी कहानी है जिसके परिणामस्वरूप दो प्रमुख सम्प्रदाय, थेरवाद और महायान की उत्पत्ति हुई।
कुल 6 बौद्ध संगीतियो का आयोजन किया गया था।
प्रथम संगीति- राजा अजातशत्रु के संरक्षण में 483 ईसा पूर्व के आसपास, बुद्ध के महापरीनिर्वाण के तुरंत बाद ही प्रथम संगीति का आयोजन किया गया था।
दूसरी बौद्ध संगीति-दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन प्राचीन शहर वैशाली, जो अब नेपाल की सीमा से लगे उत्तर भारत के बिहार राज्य में स्थित है, में किया गया था। इस संगीति का आयोजन 383 ई.पू. किया गया था।
तीसरी बौद्ध संगीति- तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन 250 ईसा पूर्व में राजा अशोक के संरक्षण के तहत पाटलिपुत्र में किया गया था।
चौथी बौद्ध संगीति- इसका आयोजन 72वीं ईस्वी में कश्मीर के कुंडलवन में हुआ था। इसकी अध्यक्षता वासुमित्र ने की थी जबकि अश्वघोष उनका सहायक था। इस दौरान बौद्ध धर्म को दो संप्रदायों महायान और हीनयान में विभाजित हो गया था।
पांचवीं बौद्ध संगीति- पांचवीं बौद्ध संगीति राजा मिंडन के संरक्षण के तहत साल 1871 में मांडले, बर्मा में आयोजित की गई थी।
छठी बौद्ध संगीति- छठी बौद्ध संगीति का आयोजन 1954 में बर्मा के काबाऐ, यगूंन में किया गया था। इसका आयोजन बर्मा की सरकार के संरक्षण के तहत हुआ था और इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री यूनू द्वारा की गयी थी। संगीति का आयोजन बौद्ध धर्म के 2500 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था।
कर्कोटक राजवंश
दुर्लभवद्र्धन ने कश्मीर में नाग या कर्कोटक वंश की स्थापना की। उसके राज्यकाल में ह्वेनसांग ने कश्मीर की यात्रा की थी। चीनी यात्री के लेख से ज्ञात होता है कि दुर्लभवद्र्धन का राज्य केवल मुख्य कश्मीर तक ही सीमित नहीं था, बल्कि पश्चिमी और उत्तरी पश्चिमी पंजाब के कुछ भाग पर भी उसका अधिकार था। दुर्लभवद्र्धन ने छत्तीस वर्षों तक राज्य किया। उसके पुत्र और उत्तराधिकारी दुर्लभक का शासनकाल पचास वर्षों तक रहा, परंतु उसके विषय में कोई ज्ञातव्य ऐतिहासिक बात मालूम नहीं है।
कश्मीर के राजसिंहासन पर दुर्लभक के उपरांत उसका पुत्र चंद्रापीड़ समासीन हुआ। चंद्रापीड़ कश्मीर का एक प्रसिद्ध नरेश था। उसने अरबों के विरूद्ध सहायता प्राप्त करने के लिए सम्राट के पास अपना एक राजदूत भेजा था। उसे चीन देश से कोई सहायता प्राप्त न हो सकी, लेकिन फिर भी उसने मुहम्मद बिन कासिम को कश्मीर की सीमा में घुसने नहीं दिया था। कल्हण ने चंद्रापीड़ की न्यायप्रियता का विस्तार के साथ वर्णन किया है।