सामान्य ज्ञान
पंजाब में स्थित ब्रह्मपुर चंबा राज्य की प्राचीन राजधानी थी। यहां पर तीन प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें सबसे बड़ा प्रस्तर निर्मित शिव के अवतार मणिमहेश को, दूसरा प्रस्तर निर्मित मंदिर विष्णु के नरसिंहवतार को और तीसरा जो अधिकांशत: काष्ठ निर्मित है, लक्ष्मणादेवी को समर्पित है।
माना जाता है कि ब्रह्मपुर विराटपत्तन का एक अन्य नाम था। यहां की जलवायु थोड़ी ठंडी बतलायी जाती है और बैराठ की स्थिति से भी मेल खाती है। युवानच्वांग ने ब्रह्मपुर की परिधि 667 मील बतलायी है। इसमें अलकनन्दा एवं कर्नाली नदियों के मध्य का सम्पूर्ण पहाड़ी प्रदेश सम्मिलित रहा होगा।
ब्रह्मपुर को पो- लो- लिह -मो- पु- लो भी कहा गया है। ब्रह्मपुर गढ़वाल और कुमाऊं जि़लों में स्थित था। इन जि़लों में कतुर या कतुरिया राजा शासन करते थे, जो समुद्रगुप्त के प्रयाग - प्रशस्त के कर्तृपुर से सम्बन्धित थे।
अभिधम्मपिटक
अभिधम्मपिटक बौद्ध साहित्य का हिस्सा है। इसमें बौद्ध मतों की दार्शनिक व्याख्या की गयी है।
बौद्ध परम्परा की ऐसी मान्यता है कि इस पिटक का संकलन अशोक के समय में सम्पन्न तृतीय बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्म ने किया । इस पिटक के अन्य सात ग्रंथ- धम्मसंगणि, विभंग,धातुकथा, पुग्गलपन्नति, कथावत्तु, यमक और पत्थान।
इन्हें सत्तपकरण कहा जाता है। त्रिपिटकों के अतिरिक्त पालि भाषा में लिखे गए कुछ अन्य महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ- मिलिन्दपन्ह, दीपवंश एवं महावंश हैं।