सामान्य ज्ञान
केंद्र सरकार ने प्रभावी ढंग से संशोधित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना को फिर से शुरू करने का 19 अक्टूबर 2014 को फैसला किया है। डीबीटी का क्रियान्वयन 54 जिलों में 10 नवंबर 2014 और 1 जनवरी 2015 के बीच एक अभियान स्तर पर किया जाना है।
वर्तमान में, वे लाभार्थी जिनके बैंक खाते आधार योजना के अंतर्गत हैं और वे लाभार्थी जिनके बैंक खाते जनवरी 2014 में शुरू की गई जन धन योजना के तहत हैं, उन सभी बैंक खाताधारकों को अपने खातों के माध्यम से रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। वे लाभार्थी जो इस योजना के दायरे से बाहर हैं यानी वे लोग जिनकी न तो कोई आधार पहचान है और न ही जनवरी 2014 में शुरू की गई जन धन योजना के माध्यम से कोई बैंक खाता है, वे सब कुछ समय के लिए पुरानी सिलेंडर प्रणाली का ही लाभ उठा पाएंगे।
इस योजना के अंतर्गत चुने हुए 54 जिले आंध्र प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, पंजाब और तेलंगाना राज्य में आते हैं।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना वित्तीय समावेशन के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय मिशन है जिसका उद्देश्य किफायती ढंग से वित्तीय सेवाओं, यानी बैंकिंग या बचत और जमा खातों, प्रेषण, ऋण, बीमा, पेंशन का सही ढंग से उपयोग सुनिश्चित करना है। इस योजना के तहत धारकों को रुपे डेबिट कार्ड और अपना बैंक खाता शून्य बैलेंस से शुरू करने की सुविधा के साथ साथ 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा भी उनके खाते में उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके अलावा, बैंक खाता धारक खाता खोलने के छह महीने के बाद बैंक से 5 हजार रुपए तक के ऋण का लाभ भी ले सकते हैं।
उपाधि
संस्कृत शब्द, अर्थात योग (गुण संबंधी), आरोपण। भारतीय दर्शन में विशेषकर न्याय तथा भेदाभेद की दार्शनिक विचारधाराओं में आकस्मिक सीमित करने वाली स्थितियों की अवधारणा। तर्क में उपाधि इस प्रकार कार्य करती है। अनुमान, अपना तर्क सिद्घ करने के लिए एक हेतु की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ-धुएं की उपस्थिति से पहाड़ पर आग लगने को साबित किया जा सकता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में इस आधार को अर्हता या शर्त की आवश्यकता होती है। जैसे इस निष्कर्ष के लिए कि धुआं आग से ही है, हेतु के लिए उपाधि को मान्यता प्राप्त है(उदाहरण के लिए, अगर आग पैदा करने वाली लकड़ी पूर्णत: सूखी नहीं हुई है, तो आग के साथ धुआं भी होगा, इसलिए आधार या तर्क के वक्तव्य में जहां गीली लकड़ी के साथ संपर्क है जैसी शर्त को जोडऩा होगा) भेदाभेद दर्शन में उपाधि की अवधारणा को परमात्मा ब्रह्मï, सर्वोच्च तथा उसके परिणाम, अर्थात विकसित विश्व से संबंध स्थापित करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस संबंध के लिए भेदाभेद के सिद्घांत का उत्तरदायित्व माना जाता है। ब्रह्मï तथा विश्व अपने सार में अभेद है, लेकिन सार पर काल में स्थान जैसी परिसीमनकारी आकस्मिक स्थितियों का प्रतिरोपण होने के कारण वे अलग हैं।
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