सामान्य ज्ञान
बेरिलोनाईट उपरत्न की खोज प्रोफेसर जेम्स ड्वाईट डाना ने 1888 में की थी। इसमें बेरिलियम की मात्रा अधिक होने से इसका नाम बेरिलोनाईट रखा गया है। यह भंगुर उपरत्न है। इसे सावधानी से प्रयोग में लाया जाना चाहिए। इस उपरत्न को तराशने में भी विशेष रुप से सावधानी बरतनी चाहिए। भंगुर होने के साथ यह अनोखा, दुर्लभ तथा रेशेदार उपरत्न है। इसकी आभा शीशे जैसी है। उपरत्नों का संग्रह करने वालों के लिए यह विशेष रुप से उपयुक्त रत्न है।
अन्य रंगहीन उपरत्नों से मिलता-जुलता होने के कारण पहचान में यह भ्रम पैदा करता है। रंगहीन अवस्था में यह उपरत्न पारदर्शी तथा पारभासी रुपों में पाया जाता है। रंगहीन अवस्था के साथ यह उपरत्न सफेद या पीलेपन की आभा लिए मिलता है। इस उपरत्न में सफेद रंग की रेखाएं होती हैं।
सर्वप्रथम तो यह उपरत्न अमरीका में मायने में पाया गया था। इसके अलावा यह पापरोक, अफगानिस्तान के नूरिस्तान में पाया जाता है। ब्राजील में पाया जाता है। मिनास ग्रेयास और मैकेन के पर्वतों पर स्टोनहैम में भी यह मिलता है।