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खतरे में ग्रेट बैरियर रीफ
05-Nov-2020 11:13 AM
खतरे में ग्रेट बैरियर रीफ

ग्रेट बैरियर रीफ  ऑस्ट्रेलिया का हिस्सा है। वर्ष 2014 की एक रिपोर्ट  ग्रेट बैरियर रीफ को संकट में बताती है। यहां बंदरगाह के विस्तार की योजना दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ के खात्मे में आखिरी कील साबित हो सकती है।
उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में स्थित ग्रेट बैरियर रीफ को 1981 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।  यहां 625 प्रकार की मछलियां, 133 किस्मों की शार्क, नीले पानी में जेली फिश की कई प्रजातियां, घोंगा और कृमि मौजूद हैं।  30 से ज्यादा किस्मों की व्हेल और डॉल्फिन भी यहां रहती हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से यहां की मूंगा चट्टानें और इसकी समृद्ध जैव विविधता प्रदूषण और इंसानी दखल से जूझ रहे हैं।
1984 से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के एबोट प्वाइंट पर स्थित बंदरगाह से दुनिया भर को कोयला निर्यात किया जा रहा है।  अब सरकार ने इसकी विस्तार योजना को मंजूरी दे दी है। तीस लाख घन मीटर रेत और कीचड़ को इक_ा किया जाएगा और उसे मरीन पार्क के किसी हिस्से में फेंक दिया जाएगा। जानकारों का कहना है कि मूंगा चट्टानों पर इससे विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
विभिन्न जटिल स्तरों पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने बंदरगाह के विस्तार की योजना को मंजूरी दी है। ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क प्राधिकरण ने मरीन पार्क में गारे को फेंकने की मंजूरी दी है। इस पोर्ट से हर हाल 12 करोड़ टन कोयला निर्यात किया जाएगा?  इतने बड़े पैमाने पर निर्यात से एबोट प्वाइंट भूमध्य रेखा के दक्षिणी हिस्से का सबसे बड़ा बंदरगाह बन जाएगा। बंदरगाह की विस्तार योजना खासकर भारत से कोयले की मांग को देखते हुए किया गया है। भारतीय ऊर्जा कंपनियां जीवेके और अडानी ग्रुप के साथ खनन कंपनी हैनकॉक ने क्वींंसलैंड की खदानों से बड़े पैमाने में कोयला खनन करने की योजना बनाई है। एबोट प्वाइंट से कोयला भारत भेजा जाएगा।
ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया भर में मूंगों के लिए मशहूर है। बंदरगाह का विस्तार कोरल रीफ के लिए गंभीर क्षति का कारण हो सकता है। शोध से पता चला है कि पहले से ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे मूंगे के पत्थरों का गारे के कारण दम घूंट जाएगा। गुनगुने पानी के कारण प्रवाल ब्लीचिंग के शिकार हो रहे हैं। हाल के सालों में तूफान के कारण भी इन्हें भारी क्षति पहुंची है। जलवायु परिवर्तन कई समुद्री जीवों के जीवन को कठिन बना रहा है, जैसे ग्रेट बैरियर रीफ के द्वीप पर पैदा होने वाले कछुए। यहां पैदा होने वाले कछुए का लिंग रेत के तापमान पर निर्भर करता है। अगर तापमान बढ़ता चला गया तो शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तरी रीफ में 20 साल के भीतर कछुओं की आबादी स्त्रीगुण संपन्न हो जाएगी। पूर्वोत्तर ऑस्ट्रेलियाई तट पर गन्ने के खेतों में कीटनाशकों, उर्वरकों और खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल होता है। ये बहकर समंदर के पानी में मिल जाते हैं, जो समुद्री जीवन को प्रभावित करते हैं। एबोट प्वाइंट योजना के आलोचकों का कहना है कि मूंगों की बिगड़ती हालत को ध्यान में रखा जाना चाहिए और साथ ही किसी भी नए दबाव से बचा जाना चाहिए।
 

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