सामान्य ज्ञान

सिनकोना
13-Nov-2020 2:31 PM
सिनकोना

सिनकोना, एक सदाबहार पादप है। इस पौधे की छाल से ही कुनैन की गोली तैैयार की जाती है। इसके पत्ते लालिमायुक्त तथा चौड़े होते हैं जिनके अग्र भाग नुकीले होते हैं। शाखा-प्रशाखाओं में असंख्य मंजरी मिलती है। इसकी छाल कड़वी होती है। इस वंश में 65 जातियां हैं। 
सिनकोना का पौधा नम-गर्म जलवायु में उगता है। उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्र जहां तापमान 65 -75 डिग्री फारेनहाइट तथा वर्षा 250-325 से.मी. तक होती है सिनकोना के पौधों के लिये उपयुक्त है। भूमि में जल जमा नहीं होना चाहिए तथा मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ अधिक होने चाहीए। इस के लिये पाला तथा तेज हवा हानिकारक है। भारत में दार्जिलिंग आदि ठंडी जगहों पर इसके पौधे देखने को मिलते हैं। यूरोपीय वैज्ञानिकों को इसका पता सबसे पहले एंडीज़ पहाडिय़ों में 1630 के आसपास लगा।
सिनकोना के 10 वर्ष या उससे पुराने वृक्षों में एल्केल्वायड़्स का परिमाण सर्वाधिक होता है। वृक्षों के आधार से 1 मीटर ऊंंचाई तक के छाल को संग्रह किया जाता है। जड़ की छालों में भी एल्केल्वायड़्स समान परिमाण में पाए जाते है। जब वृक्ष गिर जाते हैं तो उसकी छालों को संग्रह किया जाता है। संग्रहीत छालों को छाया में सुखाया जाता है। वर्षा के दिनों में इन्हें कृत्रिम रूप से सुखाया जाता है। औषधि के निर्माण के लिये छाल को महीन पीस लिया जाता है। इस चूर्ण में 1/3 भाग बुझा चुना तथा दाहक खार (कास्टिक सोडा) का जलीय घोल मिलाया जाता है। इस मिश्रण को उबलते हुए कैरोसिन से निस्सारित (एक्सट्रैक्ट) किया जाता है। इस निस्सारण में पर्याप्त मात्रा में गर्म तनु गंधकाम्ल मिलाने पर कुनैन (क्यूनीन) का अवक्षेप प्राप्त होता है। कुनैन के उपयोग से मलेरिया बुखार की दवा तैयार की जाती है। 
हैनिमैन जो कि स्वयं एलोपैथिक चिकित्सक थे, एक दिन एक दिन उन्होनें देखा कि स्वस्थ शरीर में यदि सिनकोना की छाल का सेवन किया जाये, तो कम्पन और ज्वर पैदा हो जाता है, और सिनकोना ही कम्पन और ज्वर की प्रधान दवा है। 


अतीश
अतीश जिसे दीपंकर भी कहा जाता है, भारतीय बौद्ध सुधारवादी हुए हैं जिनकी शिक्षाएं तिब्बत के बौद्ध धर्म के एक मत काग्युद्पा  का आधार बनी। जिसकी स्थापना उनके शिष्य ब्रॅम- स्टॅन ने की थी। 
भारत में बौद्ध अध्यययन के केंद्र नालंदा से 1038 या 1042 में तिब्बत की यात्रा करने वाले अतीश ने वहां मठ  स्थापित किए और बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं पर बल देने वाले  प्रबंध लिखे।  ये तीन शाखाएं हैं- थेरवाद (गौतम बुद्ध में पूर्ण आस्था),  महायान (कई बुद्धों में से गौतम बुद्ध को एक मानना और  वज्रयान (योग पर बल)। 
उन्होंने शिक्षा दी कि तीन अवस्थाएं एक के बाद एक आती हैं और उनकी इसी क्रम में पालन करना चाहिए। उनकी मृत्यु न्येथांग मठ में हुई। जहां उनकी समाधि आज भी मौजूद है। 
 

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