विचार / लेख
(1982 का एशियाड 19 नवंबर को शुरू हुआ था जिसकी सालगिरह कल आ रही है। उसे कवर करने वाले छत्तीसगढ़ के, आकाशवाणी के मिर्ज़ा मसूद ने इस अखबार के लिए उस वक्त की अपनी एक याद ताजा की है।)
पहली बार 1951 और दूसरी बार सन 1982 में एशियाई खेलों की मशाल दिल्ली में रौशन हुई। एशियाड 82 की मेजबानी करते हुए भारत ने कबड्डी को प्रदर्शन खेल के रूप में शामिल किया। कई देश की टीमों ने हिस्सा लिया। रेडियो प्रसारण दो भाषाओं में होना था। हिंदी और अंग्रेजी। अंग्रेजी में आंखों देखा हाल सुनने के लिए इंदौर से प्रोफेसर नाडकर्णी आए थे। हिन्दी में कोई नहीं था। मुझसे कहा गया तो मैंने इंकार कर दिया। गली कूचे में खेली जाने वाली कबड्डी के बारे में तो मैं जानता था लेकिन आधुनिक नियमों के बारे में मेरी जानकारी नहीं थी।
जब कोई दूसरा व्यक्ति तैयार नहीं हुआ तो मुझसे श्री जसदेव सिंह ने कहा तुम्हारे पास दो-ढाई दिन का समय है। तुम तैयारी कर लो। और मैंने तैयारी की। कबड्डी की कुछ टीमों के साथ मिलकर। प्रतियोगिताएं शुरू होने के पहले मैंने अनुभव किया एक खिलाड़ी विपक्षी पाले में प्रवेश करता है तो सिर्फ आया-आया ही सुनाई देता है। शेष शब्द जो वह आरंभ में कहता था बिल्कुल सुनाई नहीं देते या अस्पष्ट रहते। बाद में मैंने उससे जानने की कोशिश की तो उसने कहा, वह कहता है-कुंअर सिंह आला कुंअर सिंह आला...वह खिलाड़ी झारखंड बिहार का था।
वास्तव में कुंअर सिंह भारत के वीर योद्धा थे। एक छोटी सी रियासत जगदीशपुर के। उन्हें राजा की उपाधि थी। अंग्रेजों से अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए उन्हें लगातार संघर्ष करना पड़ा। जंगलयुद्ध में पारंगत कुंअर सिंह ने अंग्रेजी फौजों को कई बार शिकस्त दी थी। अंग्रेजों के लिए वे आतंक का पर्याय थे। एक बार नदी पार करते समय कुंअर सिंह की बांह में गोली लग गई, तो उन्होंने जख्मी हाथ को दूसरे हाथ से काटकर नदी में फेंक दिया। उन्हें डर था कि विष चढ़ जाने से मौत हो सकती है। अंत तक वो अपने महल में रहे और वीर सेनानी की शान के साथ ही स्वाभाविक मृत्यु को गले लगाया। आखरी समय में भी उनके महल पर उनका अपना ध्वज फहरा रहा था।
दिल्ली एशियाड 82 की शुरूआत से ठीक एक वर्ष पहले प्रबंधन की ओर से एक सेमिनार कार्यशाला का आयोजन किया गया। दिल्ली में एशियाड के लिए किए जा रहे निर्माण कार्यों को दिखाया गया, समझाया गया उपयोगिता बताई गई। यह आयोजन केवल ब्राडकास्टर्स के लिए थे। बाहरी व्यक्तियों के लिए नहीं। उसी समय एक स्टेडियम में खेल अधिकारियों का जापानी दल मिला। जिज्ञासावश पूछने पर उन्होंने बताया। ठीक एक बरस बाद एशियाड 82 में जापान के खिलाड़ी यहां आकर खेलों में भाग लेंगे। हम यहां की स्थानीय परिस्थितियों का अवलोकन करने आए हैं। एक बरस बाद खिलाडिय़ों के प्रदर्शन पर यहां की परिस्थितियों का कैसा प्रभाव पड़ेगा। हम इसकी तैयारी करेंगे।
ठीक एक बरस बाद 1982 में जापान में एशियाई खेलों की विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपने खिलाड़ी भेजे और गंभीर योजनाबद्ध तैयारियों और रणनीति के कारण अनेक पदक जीत कर ले गए।
दिल्ली एशियाड 82 की तैयारियों के समय राजधानी में अनेक निर्माण कार्य हुए, जिनमें कई प्रकार की सामग्री की जरूरत थी। कुछ कार्यों में तीस मीटर रेलपांतों की आवश्यकता थी। इतनी लंबी पांत को ठंडी करने वाली टंकी केवल रायपुर वर्कशॉप में उपलब्ध थी। इसलिए दिल्ली एशियाड 82 के आयोजन में रायपुर का भी योगदान था।