सामान्य ज्ञान

कैलाश सत्यार्थी
09-Dec-2020 12:49 PM
कैलाश सत्यार्थी

इस वर्ष शांति का नोबेल पुरस्कार हासिल करने वालों में सामाजिक कार्यकर्ता और भारत में बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कैलाश सत्यार्थी भी शामिल हैं। 
कैलाश सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। इनसे पहले मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था जिनका जन्म अल्बानिया में हुआ था। कैलाश सत्यार्थी, मदर टेरेसा (1979) के बाद दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।  कैलाश सत्यार्थी को वर्ष 2009 में डेफेंडर ऑफ डेमोक्रेसी अवॉर्ड (अमेरिका), वर्ष 2008 में अलफांसो कोमिन इंटरनेशनल अवॉर्ड (स्पेन) से सम्मानित किया गया। वर्ष 2007 में मेडल ऑफ द इटालियन सेनाटे सम्मान प्रदान किया गया। कैलाश सत्यार्थी को कई पुरस्कार मिले जिसमें रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) आदि शामिल है।  
कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता और बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक अध्यक्ष हैं जो वर्षों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। इनका जन्म भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को हुआ। वह पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे। कैलाश सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में ही कॅरिअर छोडक़र बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। कैलाश सत्यार्थी ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के जरिए उन बच्चों की मदद करते हैं जो अपने परिवार के कर्ज उतारने के लिए बेचे दिए जाते हैं। फिर उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वो अपने समुदाय में जाकर ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए काम करें। उन्होंने ‘ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर’ मुहिम चलायी जो कई देशों में सक्रिय हैं। वर्तमान में वह ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। 
कैलाश सत्यार्थी ने रूगमार्क का गठन किया जिसे गुड वेब भी कहा जाता है। यह एक तरह का सामाजिक प्रमाण पत्र है जिसे दक्षिण एशिया में बाल मजदूर मुक्त कालीनों के निर्माण के लिए दिया जाता है
बचपन बचाओ आंदोलन’ भारत का एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) है जो बच्चों को बंधुआ मजदूरी और तस्करी से बचाने के काम में लगी है। यह (‘बचपन बचाओ आंदोलन’) बच्चों के शोषण के खिलाफ भारत का पहला सिविल सोसाइटी अभियान है। इसकी स्थापना 1980 में की गई थी। इस संस्था के माध्यम से कैलाश सत्यार्थी ने अब तक लगभग 80 हजार बच्चों की जिंदगी बचाई है। इस संस्था की सबसे मुख्य पहल ‘बाल मित्र ग्राम कार्यक्रम’ है जो बाल बंधुआ मजदूरी, बाल अधिकार और सर्वशिक्षा के अभियान में एक नया प्रतिमान बन गया। कैलाश सत्यार्थी को इस अभियान के शुरू करने के कुछ सालों के बाद यह आभास हुआ कि बाल मजदूरी और शोषण के लगभग 70 फीसदी मामले गांवों में होते हैं तब उन्होंने बच्चों को बचाए जाने के बाद प्रशासन द्वारा उन्हें उचित शिक्षा मुहैया हो सके इसकी व्यवस्था पर जोर देना शुरू किया। 
वहीं ‘बाल मित्र ग्राम’ (चाइल्ड फ्रेंडली विलेज) वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है।  वर्ष 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक चाइल्ड फ्रेंडली विलेज घोषित किया जा चुका है। हालांकि कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है। इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं। 
 

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