सामान्य ज्ञान
कपड़ों की रानी कहा जाने वाला रेशम ऐतिहासिक दृष्टि से भारत के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक रहा है। भारत में आज रेशम उद्योग में 7 लाख से ज्यादा कृषक परिवार काम कर रहे हैं, जो मुख्यत: पश्चिम बंगाल, असम, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में केंद्रित हैं। रेशम उत्पादन में भारतीय रेशम उद्योग का विश्व में दूसरा स्थान है जिसकी कुल रेशम उत्पादन में 18 फीसदी की हिस्सेदारी है।
नए बदलावों द्वारा भारतीय रेशम उद्योग ने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर बेहतर विकास का प्रदर्शन किया है। भारतीय रेशम उद्योग से 60 लाख श्रमिकों के साथ-साथ छोटे और सीमांत किसान भी जुड़े हुए हैं। रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कपड़ा मंत्रालय द्वारा कई नई पहल की जा रही हैं। कच्चे रेशम का उत्पादन, जिसमें मलबरी, टस्सर, इरी, मूंगा शामिल हैं, का उत्पादन 2010-11 में 16 हजार 360 मीट्रिक टन से बढक़र 2012-13 में 18 हजार 272 मीट्रिक टन हो गया । रेशम के धागे के उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गई है । रेशम के धागे का उत्पादन 2010-11 में 880 मीट्रिक टन से बढक़र 2012-13 में 1 हजार 155 मीट्रिक टन हो गया। केंद्रीय रेशम बोर्ड के माध्यम से भारत सरकार ने रेशम उद्योग को विकसित करने और रेशम का उत्पादन बढ़ाकर वैश्विक बाजारों में इसे और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने हेतु कुछ कदम उठाए हैं । शोध और विकास प्रणालियों को बढ़ावा देना, जापान अंतर्राष्टीय सहयोग एजेंसी की मदद से बिवोल्टाइन ब्रिड को विकसित करना, रेशमकीट बीज अधिनियम लागू करना आदि कपड़ा मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों में शामिल है। रेशम बोर्ड के माध्यम से कपड़ा मंत्रालय द्वारा विभिन्न राज्यों में राज्य रेशम उत्पादन विभागों के सहयोग से एक केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना का भी कार्यान्वयन किया जा रहा है ।
केंद्रीय रेशम बोर्ड के केंद्रीय रेशम उत्पादन प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से भारत सरकार बुनाई क्षेत्र सहित कोकून से आगे की प्रक्रिया के क्षेत्र के लिए तकनीकी सहयोग प्रदान कर रही है ।