सामान्य ज्ञान
रुड़ पुराण हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित गरुड़ पुराण सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिए सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है।
अठारह पुराणों में गरुड़ महापुराण का अपना एक विशेष महत्व है। क्योंकि इसके देव स्वयं विष्णु माने जाते हैं, इसीलिए यह वैष्णव पुराण है। गरुड़ पुराण के अनुसार हमारे कर्मों का फल हमें हमारे जीवन में तो मिलता ही है, परंतु मरने के बाद भी कार्यों का अच्छा-बुरा फल मिलता है। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु की भक्ति का विस्तार से वर्णन मिलता है। विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन ठीक उसी प्रकार इस पुराण में प्राप्त होता है, जिस प्रकार श्रीमद्भागवत में उपलब्ध होता है।
आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, धु्रव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है। उसके बाद सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मन्त्र, इन्द्र से संबंधित मंत्र, सरस्वती के मन्त्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है।
गरुड़ पुराण में उन्नीस हज़ार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में प्रेतकल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पडऩे का वृत्तान्त है। इसमें मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्त कैसे पाई जा सकती है, श्राद्ध और पितृ कर्म किस तरह करने चाहिए तथा नरकों के दारुण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है आदि विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है।
इस पुराण में महर्षि कश्यप और तक्षक नाग को लेकर एक सुन्दर उपाख्यान दिया गया है। इस पुराण में नीति सम्बन्धी सार तत्त्व, आयुर्वेद, गया तीर्थ का माहात्म्य, श्राद्ध विधि, दशावतार चारित्र तथा सूर्य-चन्द्र वंशों का वर्णन विस्तार से प्राप्त होता है। बीच-बीच में कुछ अन्य वंशों का भी उल्लेख है। इस पुराण के प्रेत कल्प में पैतीस अध्याय हैं, जिसका प्रचलन सबसे अधिक हिन्दुओं के सनातन धर्म में है। गरुड़ पुराण में प्रेत योनि और नरक में पडऩे से बचने के उपाय भी सुझाए गए हैं। उनमें सर्वाधिक प्रमुख उपाय दान-दक्षिणा, पिण्डदान तथा श्राद्ध कर्म आदि बताए गए हैं।