सामान्य ज्ञान
वैदिक काल में सबसे पहले तांबा धातु का प्रयोग किए जाने की जानकारी मिलती है। ताम्र या तांबा मुक्त व संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में यह अपने अयस्कों के रूप में पाया जाता है। ताम्र के अयस्क मुख्य रूप से सिंहभूमि, सिक्किम, ओडि़शा, नेपाल, भूटान में पाये जाते हैं। कापर पायराइट, कॉपर ग्लॉस, क्यूप्राइट, मैकालाइट आदि इसके प्रमुख अयस्क हैं। ताम्र गुलाबी, लाल रंग की चमकदार धातु है व चांदी के अतिरिक्त विद्युत की सबसे अच्छी सुचालक है। विद्युत सुचालक होने के कारण इसका विद्युत यंत्र कैलोरीमीटर आदि बनाने में किया जाता है। ताम्र का क्वथनांक 2320 डिग्री सेंटीग्रेट होता है तथा उबलने पर इससे हरे रंग की वाष्प निकलती है। ताम्र विभिन्न प्रकार की मिश्र धातुएं बनाने के काम आता है। भारत में तांबे का प्रयोग काफ़ी लम्बे समय से किया जाता रहा है।
राजस्थान का खेतड़ी तांबा क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता काल से ही तांबा उत्खनन का प्रमुख क्षेत्र रहा है। यहां पर तांबा झुंझुनू जि़ले के सिंघाना से लेकर सीकर जि़ले के रघुनाथगढ़ तक लगभग 80 किमी की लम्बाई में पाया जाता है। यहां तांबा की प्रसिद्ध खाने हैं - कोलीहान, खेतड़ी, मण्डल तथा कुधान। इसके अतिरिक्त भीलवाड़ा, उदयपुर, बांसवाड़ा तथा झुंझुनू जि़लों में भी तांबे का उत्खनन किया जाता है।
भारत शासन एक्ट 1919
मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट पर आधारित भारत शासन एक्ट 1919 में इस बात को स्पष्टï कर देने का प्रयास किया गया था कि अंग्रेज शासक भारतीयों के जिम्मेदार सरकार के ध्येय की पूर्ति तक केवल धीरे-धीरे पहुंचने के आधार पर स्वशासी संस्थानों के क्रमिक विकास को मानने के लिए तैयार हैं। संवैधानिक प्रगति के प्रत्येक चरण के समय, ढंग तथा गति का निर्धारण केवल ब्रिटिश संसद करेगी और यह भारत की जनता के किसी आत्मनिर्णय पर आधारित नहीं होगा।
1919 के एक्ट तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों द्वारा तत्कालीन भारतीय संवैधानिक प्रणाली में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। केंद्रीय विधान परिषद का स्थान राज्य परिषद (उच्च सदन) तथा विधानसभा (निम्र सदन) वाले द्विसदनीय विधानमंडल ने ले लिया। हालांकि सदस्यों को नामजद करने की कुछ शक्ति बनाए रखी गई, फिर भी प्रत्येक सदन में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत होना अब जरुरी हो गया था।
सदस्यों का चुनाव एक्ट के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अधीन सीमांकित निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा प्रत्यक्ष रुप से किया जाना था। मताधिकार का विस्तार कर दिया गया था। निर्वाचन के लिए विहित अर्हताओं में बहुत भिन्नता थी और वे सांप्रदायिक समूह, निवास और संपत्ति पर आधारित थीं।
द्वैधशासन:1919 के एक्ट द्वारा आठ प्रमुख प्रांतों में जिन्हें ‘गर्वनर’ के प्रांत कहा जाता था, द्वैशासन की एक नई पद्धति शुरू की गई। प्रांतों में आंशिक रूप से जिम्मेदार सरकार की स्थापना से पहले प्रारंभिक व्यवस्था के रूप में प्रांतीय सरकारों के कार्य-क्षेत्र का सीमांकन करना जरूरी था। जिसके कारण एक्ट में उपबंध किया गया था कि प्रशासनिक विषयों का केंद्रीय तथा प्रांतीय के रूप में वर्गीकरण करने, प्रांतीय विषयों के संबंध में प्राधिकार स्थानीय शासनों को सौंपने, और राजस्व तथा अन्य धनराशियां उन सरकारों को आबंटित करने के लिए नियम बनाए जाए। विषयों का केंद्रीय तथा प्रांतीय के रुप में हस्तांतरण नियमों द्वारा विस्तृत वर्गीकरण किया गया।