सामान्य ज्ञान
दुनिया भर में ऐसे बहुत कम देश हैं जो किसी एक खास ढांचे की वजह से तुरंत पहचाने जाते हों। देखिये ऐसी खास पहचान वाले चुनिंदा देशों को-
म्यांमार- बर्मा नाम से भी पुकारे जाने वाले म्यांमार की पहचान ओल्ड बागान से होती है। 104 वर्गकिलोमीटर में फैले ओल्ड बागान में सैकड़ों पुराने बौद्ध मंदिरों के अवशेष हैं। ये मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाए गए थे।
भारत-विदेश में भारत की जिक्र आते ही सबसे पहले ताजमहल की तस्वीर दिमाग में कौंधती है। भारत जाने वाले ज्यादातर विदेशी पर्यटक 17वीं शताब्दी में बने ताजमहल का दीदार जरूरत करते हैं।
चीन- चीन की दीवार, यह जुमला दुनिया भर में मशहूर है। 21 हजार 196 किलोमीटर लंबी इस दीवार को देखने हर साल लाखों सैलानी चीन पहुंचते हैं।
मिस्र- इजिप्ट का जिक्र विशाल पिरामिड आंखों के सामने तैरने लगते हैं। सैकड़ों साल से खड़े ये पिरामिड आज भी इंसान को वक्त की चाल का अहसास कराते हैं।
फ्रांस- वैसे तो फ्रांस क्रांति, संस्कृति और वाइन के लिए भी मशहूर है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी पहचान आइफेल टावर है। राजधानी पेरिस में खड़ा यह टावर कभी दुनिया का सबसे ऊंचा ढांचा हुआ करता था।
जर्मनी -दुनिया भर के कैलेंडरों और पोस्टरों में बावेरिया प्रांत का नॉएश्वानश्टाइन कासल बहुत देखा जाता है। विश्वयुद्ध की स्मृतियों वाली जगहों से भरे जर्मनी की पहचान विदेशों में अक्सर इसी कासल से होती है।
इटली- पहचान के मामले में इटली लोगों को थोड़ा बहुत चकरा देता है। यहां वेनिस जैसा शहर भी है और पीसा की झुकी मीनार भी, लेकिन इटली की पहचान रोमन साम्राज्य के दौरान बनाए गए कोलोजियम से सबसे ज्यादा स्पष्ट होती है।
रूस- रूस और उसकी राजधानी मॉस्को की पहचान 16वीं सदी में बनाए गए सेंट बासिल कैथीड्रल से भी होती है। बीते कई सालों से इसे म्यूजियम बनाया गया है जो सिर्फ मंगलवार को बंद रहता है।
अमेरिका-18वीं शताब्दी में फ्रांस ने अमेरिका को स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी भेंट की। 46 मीटर ऊंची यह प्रतिमा तब से न्यूयॉर्क में लगी है। इसे अमेरिकी की सबसे चर्चित पहचान माना जाता है।
ब्राजील- ब्राजील के रियो डे जेनेरो शहर में बनी ईसा मसीह की विशाल मूर्ति एक झटके में देश की पहचान करा देती है। ब्राजील जाने वाले ज्यादातर विदेशी इसकी तस्वीर लिये बिना नहीं लौटते।
पेरु- दक्षिण अमेरिकी देश पेरु की पहचान इंका सम्राज्य के अवशेषों से होती है। 13वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक दक्षिण अमेरिका के बड़े इलाके में राज करने वाले इंका समुदाय के अवशेष अब पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है।
देवनागरी लिपि के जन्मदाता कौन हैं?
देवनागरी लिपि का जन्मदाता कोई एक व्यक्ति नहीं था। इसका विकास भारत की प्राचीन लिपि ब्राहमी से हुआ। ब्राहमी की दो शाखाएं थीं, उत्तरी और दक्षिणी।
देवनागरी का विकास उत्तरी शाखा वाली लिपियों से हुआ माना जाता है। ब्राहमी की उत्तरी शाखा से गुप्तवंशीय राजाओं के काल में, यानी चौथी पांचवीं शताब्दी में, जिस गुप्तलिपि का विकास हुआ, उसके अक्षरों का लेखन एक विशेष टेढ़े या कुटिल ढंग से किया जाता था, जिससे आगे चलकर कुटिल लिपि का जन्म हुआ।
विद्वानों और भाषा वैज्ञानिकों के मत में नवीं शताब्दी के अंतिम चरण में इसी कुटिल लिपि से देवनागरी का विकास हुआ। जहां तक देवनागरी नाम का सवाल है उसे लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ इसे नागर अपभ्रंश से जोड़ते हैं और कुछ इसके प्राचीन दक्षिणी नाम नंदिनागरी से। यह भी संभव है कि नागर जन द्वारा प्रयुक्त होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा और देवभाषा यानी संस्कृत के लिए अपनाई जाने के कारण इसे देवनागरी कहा जाने लगा, लेकिन इस बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं।