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अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल क्या होते हैं?
16-Dec-2020 12:42 PM
अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल क्या होते हैं?

भारत का महान्यायवादी या अटॉर्नी जनरल (्रह्लह्लशह्म्ठ्ठद्ग4 त्रद्गठ्ठद्गह्म्ड्डद्य)  भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा भारतीय उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख वकील होता है। इस समय भारत में इस पद पर मुकुल रोहतगी कार्यरत हैं। 
भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जो व्यक्ति उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश बनने की योग्यता रखता है, ऐसे किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति महान्यायवादी के पद पर नियुक्त कर सकते हैं। देश के महान्यायवादी का कर्तव्य कानूनी मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना और कानूनी प्रकृति की उन जिम्मेदारियों को निभाना है जो राष्ट्रपति की ओर से उनके पास भेजे जाते हैं। इसके अतिरिक्त संविधान और किसी अन्य कानून के अंतर्गत उनका जो काम निर्धारित है, उनका भी पालन उन्हें पूरा करना होता है। अपने कर्तव्य के निर्वहन के दौरान उन्हें देश के किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने का अधिकार है। उन्हें संसद की कार्यवाही में भी भाग लेने का अधिकार है, हालांकि उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता। उनके कामकाज में सहायता के लिए सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल होते हैं। 
भारत का सॉलिसिटर जनरल भारत के अटॉर्नी जनरल का अधीनस्थ होता है। भारत का सॉलिसिटर जनरल देश का दूसरा कानून अधिकारी होता है, सॉलिसिटर जनरल अटॉर्नी जनरल की सहायता करता है और भारत के सॉलिसिटर जनरल की सहायता हेतु कई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल होते हैं।  भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत भारत के अटॉर्नी जनरल का पद संवैधानिक पद है, लेकिन सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का पद केवल वैधानिक है।
इस समय मोहन परासरन  भारत के सॉलिसिटर जनरल हैं।  मोहन पराशरन का कार्यकाल फरवरी 2016 तक निर्धारित है।  
दिसंबर 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पंजाब एवं हरियाणा, पटना, झारखंड, कर्नाटक एवं इसकी हुबली-धरवाड और गुलबर्ग पीठ और गुजरात में एक-एक अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल के पद का सृजन किए जाने की मंजूरी दी है। 
उम्मीद जताई जा रही है कि इस फैसले से भारतीय संघ से संबंधित मुकदमों के निबटारों में तेजी आएगी, खासतौर पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, पटना उच्च न्यायालय, रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय, बेंगलुरू स्थित कर्नाटक उच्च न्यायालय और इसके सर्किट बेंच और गुजरात उच्च न्यायालय में। इस निर्णय से भारतीय संघ कुशलतापूर्वक और प्रभावशाली ढंग से अपने मुकदमों का संचालन कर सकेगा। इससे ना सिर्फ इन अदालतों में सरकार के खिलाफ चल रहे मुकदमों में कमी आएगी बल्कि छोटे-छोटे मुकदमों को खत्म करने को लेकर भी सरकारी विभागों की जवाबदेही तय हो सकेगी। कहा जा रहा है कि  इस प्रस्ताव से कानून के शासन और सरकारी नीतियों के बचाव को लेकर सरकारी विभागों का मनोबल बढ़ेगा।
 

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