सामान्य ज्ञान
सखीभाव संप्रदाय, निम्बार्क मत की एक शाखा है, जिसके प्रवर्तक हरिदास थे। इस संप्रदाय में श्रीकृष्ण की उपासना सखी भाव से की जाती है। इनके मत से ज्ञान में भवसागर उतारने की क्षमता नहीं है। प्रेमपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति से ही मुक्ति मिल सकती है। इस संप्रदाय के कवियों की रचनाएं ज्ञान की व्यर्थता और प्रेम की महत्ता का प्रतिपादन करती है।
सखी-सम्प्रदाय निम्बार्क-मतकी एक अवान्तर शाखा है। इस सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी हरिदास थे। हरिदास जी पहले निम्बार्क-मत के अनुयायी थे, परन्तु कालान्तर में भगवद्धक्ति के गोपीभाव को उन्नत और उपयुक्त साधन मानकर उन्होंने इस स्वतंत्र सम्प्रदाय की स्थापना की। हरिदास का जन्म समय भाद्रपद अष्टमी, संवत 1441 है। ये स्वभावत: विरक्त और भावुक थे। सखी-सम्प्रदाय के अंतर्गत वेदान्त के किसी विशेष वाद या विचार धारा का प्रतिपादन नहीं हुआ, बल्कि सगुण कृष्ण की सखी-भावना से उपासना करना ही उनकी साधना का एक मात्र ध्येय और लक्ष्य है। इसे भक्ति-सम्प्रदाय का एक साधन मार्ग कहना अधिक उपयुक्त होगा।
नाभादास जी ने अपने भक्तमाल में कहा है कि सखी-सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण की उपसना और आराधना की लीलाओं का अवलोकन साधक सखी-भाव से कहता है। सखी-सम्प्रदाय में प्रेम की गम्भीरता और निर्मलता दर्शनीय है। हरिदास के पदों में भी प्रेम को ही प्रधानता दी गयी है। हरिदास तथा सखी-सम्प्रदाय के अन्य कवियों की रचनाओं में प्रेम की उत्कृष्टता और महत्ता को सिद्ध करने के लिए तरह-तरह से ज्ञान की व्यर्थता और अनुपादेयता प्रकाशित की गई है। इनके मत से प्रेमसागर पार करने के लिए ज्ञान की सार्थकता नहीं है। ज्ञान में भवसागर से पार उतारने की क्षमता नहीं है। श्रीकृष्ण की प्रेमानुगा भक्ति में दिव्य शक्ति है उन्हीं के चरणों में अपने को न्योछावर कर देना अपेक्षित है। सखी-सम्प्रदाय में उपसना माधुर्य, प्रेम की गम्भीरता और मधुर रस की विशेषता है।