सामान्य ज्ञान

सुनैहला
22-Dec-2020 1:02 PM
सुनैहला

सुनैहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है। यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है। जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनैहला पहनने की सलाह दी जाती है। यह एक पीला कुछ पारदर्शी स्फटिक है। 

प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाला सुनैहला बहुत कम उपलब्ध होता है। कृत्रिम सुनैहला बाजार में अत्यधिक मिलता है। इसकी चमक को देखकर व्यक्ति भ्रमित होकर पुखराज समझ लेता है, लेकिन दोनों रत्नों को सामने ध्यान से देखने पर अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है। पुखराज से अधिक स्पष्टता सुनैहला में दिखाई देती है। कई बार पुखराज के बचे टुकड़ों को जोडक़र सुनैहला का निर्माण किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र मानता है कि सुनहला उपरत्न धारण करने से व्यक्ति विशेष में ऊर्जा का पुनर्निर्माण होता है। जिन व्यक्तियों में ऊर्जा के निर्माण में कमी हो रही है उनकी यह उपरत्न  मदद करता है। इस रत्न के धारण करने से ऊर्जा प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता है। इस उपरत्न  की बहुत सी खूबियां हंै जिनमें से एक यह है कि इसे धारण करने से व्यक्ति अच्छी बातों को सीखने के लिए प्रेरित होता है और प्राकृतिक स्त्रोतों से ऊर्जा ग्रहण करके वह बुद्धिमानी से काम लेता है। 
पन्ना, हीरा तथा इन दोनों के उपरत्न  धारण करने वाले व्यक्तियों को पुखराज का उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए। अन्यथा यह प्रतिकूल फल प्रदान कर सकता है।

मध्यकालीन भारत में सिंचाई
मध्यकालीन भारत में आप्लावन नहरों के निर्माण में तेज प्रगति की गई। नदियों पर बांधों का निर्माण करके पानी को अवरुद्ध किया गया। ऐसा करने से पानी का स्तर ऊंचा उठ गया और खेतों तक पानी ले जाने के लिए नहरों का निर्माण किया गया। इन बांधों का निर्माण राज्य और निजी स्रोतों--दोनों द्वारा किया गया। गियासुद्दीन तुगलक (1220-1250) को ऐसा पहला शासक होने का गौरव प्राप्त है जिसने नहरें खोदने को प्रोत्साहन दिया। तथापि फ्रज तुगलक (1351-86) को, जो कि केन्द्रीय एशियाई अनुभव से प्रेरित था उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व सबसे बड़ा नहर निर्माता माना गया था। ऐसा कहा जाता है कि दक्षिण भारत में पंद्रहवीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य की उन्नति और विस्तार के पीछे सिंचाई एक प्रमुख कारण रहा था।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि अपवादात्मक मामलों को छोडक़र अंग्रेजी साम्राज्य के आगमन से पूर्व अधिकांश नहर सिंचाई अपवर्तनात्मक प्रकृति की थी। सिंचाई को बढ़ावा देने के माध्यम से राज्य ने राजस्व बढ़ाने का प्रयास किया और उर्वर भूमि के लिए पुरस्कारों तथा विभिन्न श्रेणियों के लिए अन्य अधिकारों के माध्यम से संरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया। सिंचाई ने रोजगार अवसरों में भी वृद्धि कर दी थी तथा सेना और अधिकारी-तंत्र को बनाए रखने के लिए अधिशेष के सृजन में मदद भी की थी। क्योंकि कृषि-विकास अर्थव्यवस्था का मूलाधार था इसलिए सिंचाई प्रणालियों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। यह बात इस तथ्य से पता चलती है कि सभी विशाल, शक्तिशाली और स्थिर साम्राज्यों ने सिंचाई विकास की ओर ध्यान दिया।

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news