सामान्य ज्ञान

फव्वारा सिंचाई
23-Dec-2020 1:03 PM
फव्वारा सिंचाई

फव्वारा  द्वारा सिंचाई एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पानी का हवा में छिडक़ाव किया जाता है और यह पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरता है। पानी का छिडक़ाव दबाव द्वारा छोटी नोजल या ओरीफिस में प्राप्त किया जाता है। पानी का दबाव पम्प द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। कृत्रिम वर्षा चूंकि धीमे-धीमे की जाती है, इसलिए न तो कहीं पर पानी का जमाव होता है और न ही मिट्टी दबती है। इससे जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है और बीजों में अंकुर भी जल्दी फूटते हैं। 
फव्वारा सिंचाई spring irrigation एक बहुत ही प्रचलित विधि है जिसके द्वारा पानी की लगभग 30-50 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। देश में लगभग सात लाख हैक्टर भूमि में इसका प्रयोग हो रहा है। यह विधि बलुई मिट्टी, ऊंची-नीची जमीन तथा जहां पर पानी कम उपलब्ध है वहां पर प्रयोग की जाती है। इस विधि के द्वारा गेहूँ, कपास, मूंगफली, तम्बाकू तथा अन्य फसलों में सिंचाई की जा सकती है। इस विधि के द्वारा सिंचाई करने पर पौधों की देखरेख पर खर्च कम लगता है तथा रोग भी कम लगते हैं। यह विधि सभी प्रकार की फसलों की सिंचाई के लिए उपयुक्त है। कपास, मूंगफली तम्बाकू, कॉफी, चाय, इलायची, गेहूँ व चना आदि फसलों के लिए यह विधि अधिक लाभदायक हैं।
यह विधि बलुई मिट्टी, उथली मिट्टी ऊंची-नीची जमीन, मिट्टी के कटाव की समस्या वाली जमीन तथा जहां पानी की उपलब्धता कम हो, वहां अधिक उपयोगी है। छिडक़ाव सिंचाई पद्धति की अभिकल्पना एवं रूपरेखा के लिए सामान्य नियम हैं-
1. पानी का स्त्रोत सिंचित क्षेत्रफल के मध्य में स्थित होनी चाहिए जिससे कि कम से कम पानी खर्च हो।
2. ढलाऊ भूमि पर मुख्य नाली ढलान की दिशा में स्थित होनी चाहिए।
3. पद्धति की अभिकल्पना और रूप रेखा इस प्रकार होनी चाहिए जिससे कि दूसरे कृषि कार्यों में बाधा न पड़े।
4. असमतल भूमि में अभिकल्पित जल वितरण पूरे क्षेत्रफल पर समान रहना चाहिए, अन्यथा फसल वृद्धि असमान ही रहेगी।
 


फ्रांसीसियों  का पहला व्यापारिक केंद्र
पं. बंगाल का चंद्रनगर वह स्थान है, जहां पर 1690-92 के बीच  फ्रांसीसियों ने  भारत में अपना पहला व्यापारिक केेंद्र स्थापित किया था।  यह स्थान उन्हें 1664 ई. में नवाब शाइस्ता खां से मिला था। बाद में अंग्रेजों ने इस पर अपना कब्जा जमा लिया। 1763 ई. में  उन्होंने यह क्षेत्र फ्रांसीसियों को इस शर्त के साथ दे दिया  वे इसका केवल व्यापारिक केंद्र के रुप में ही इस्तेमाल करेंगे।  तब से भारत के स्वतंत्र होने तक चंद्रनगर में भी फ्रांसीसियों का शासन चलता रहा।  वर्ष 1930 में इसका विलय भारत में हुआ। 
 

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