सामान्य ज्ञान

बौद्ध ग्रंथों में भारत
01-Jan-2021 1:31 PM
बौद्ध ग्रंथों में भारत

बौद्घ निकायों में भारत को पांच भागों में वर्णित किया गया है - उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यप्रदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापथ, अपरांत  (पश्चिमी भाग)। इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसा पूर्व छठी सदी से ही परिकल्पित है । 
इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टïाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर नजर डालें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पश्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था। 
कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट के अन्तर्गत संपूर्ण देश की राजनीतिक एकता की परिकल्पना की थी। ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्को के वितरण से अन्देशा होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस युग में भारत के एकीकरण की साफ झलक दिखती है।

लोकतंत्रीय केंद्रवाद
लोकतंत्रीय केंद्रवाद का सिद्घांत सोवियत संघ के संस्थापक नेता एवं विचारक वी.आई. लेनिन ने निरुपित किया था। यह सिद्घांत सोवियत संघ तथा जनवादी चीन के साम्यवादी दल के संगठन के आधार पर था। 
इसका अर्थ यह था कि साम्यवादी दल के निम्नस्तरीय संगठन अपनी ऊपरी संस्थाओं का चुनाव करेंगे, उनके आदेशों का पालन करेंगे और उनके प्रति उत्तरदायी होंगे, लेकिन ऊपर (राष्टï्रीय) संगठन की संस्थाएं जनसाधारण के प्रति उत्तरदायी होंगी।
स्पष्टï है कि स्थानीय या निम्र स्तर पर सार्वजनिक निर्णय लेने का अधिकार प्रदान नहीं किया जाता है। शक्ति राष्टï्रीय (केंद्रीय) संस्था में केंद्रीयकृत कर दी जाती है, जो कि सार्वजनिक निर्णय लेेने के लिए स्वतंत्र होती है।
 

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