सामान्य ज्ञान
सफदर हाशमी एक कम्युनिस्ट नाटककार, कलाकार, निर्देशक, गीतकार, और कलाविद थे। उन्हें नुक्कड़ नाटक के साथ उनके जुड़ाव के लिए जाना जाता है। भारत के राजनैतिक थिएटर में आज भी वे एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सफदर जन नाट्य मंच और दिल्ली में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया(एसएफआई ) के स्थापक-सदस्य थे। जन नाट्य मंच की नींव 1973 में रखी गई थी। सफदर हाशमी रंगमंच के जाने-माने कलाकार थे। उन्हें एक राजनीतिक पार्टी के समर्थकों ने 1989 के नए साल के मौके पर बड़ी बेरहमी से पीटा। एक जनवरी को दिल्ली के पास हुई इस घटना में हाशमी को इतनी चोटें आईं कि उनका शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाया और अगले दिन यानी दो जनवरी, 1989 को उन्होंने दम तोड़ दिया।
दिल्ली में ही पैदा हुए हाशमी तब सिर्फ 34 साल के थे। बला के क्रांतिकारी और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल। समाज में घुले अपराधों और भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह उनकी आवाज गूंजती, वैसे ही जन नाट्य मंच के थियेटर शो भी। उन्होंने 19 साल में यह ग्रुप बना डाला और 1976 में सीपीएम में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया और इक्रोमिक्स टाइम्स के साथ पत्रकार के रूप में काम किया, वे दिल्ली में पश्चिम बंगाल सरकार के प्रेस इंफोरमेशन ऑफिसर के रूप में भी तैनात रहे। 1984 में उन्होने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और खुद का पूरा समय राजनैतिक सक्रियता को समर्पित कर दिया। सफदर ने दो बेहतरीन नाटक तैयार करने में अपना सहयोग दिया, मक्सिम गोर्की के नाटक पर आधारित दुश्मन और प्रेमचंद की कहानी मोटेराम के सत्याग्रह पर आधारित नाटक जिसे उन्होने हबीब तनवीर के साथ 1988 में तैयार किया था।
दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इंग्लिश में एम. ए. करने के बाद हाशमी ने थियेटर के अलावा कविताएं भी लिखीं और स्केच भी बनाए। वह अपने नाटकों में उसी आम आदमी का जिक्र करते थे । औरत, गांव से शहर तक, राजा का बाजा होते हुए जब उनके थियेटर का सफर नुक्कड़ नाटक हल्ला बोल पर पहुंचा, तो सफदर ने इसे गाजियाबाद नगर निगम चुनाव के वक्त प्रस्तुत करने का फैसला किया। 1 जनवरी, 1989 को वह इसे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में जब पेश कर रहे थे, तभी एक राजनीतिक दल के समर्थकों ने उन पर हमला बोल दिया। नुक्कड़ नाटक अधूरा छूट गया। सफदर हाशमी बुरी तरह घायल हुए और अगले दिन दो जनवरी, 1989 को उन्होंने दम तोड़ दिया। सफदर की पत्नी मालाश्री हाशमी ने उनकी मौत के दो दिन बाद चार जनवरी को फिर झंडापुर गांव का रुख किया और तीन दिन पहले के अधूरे नुक्कड़ नाटक को पूरा किया।
कर्दम ऋषि
कर्दम ऋषि की उत्पत्ति सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मïाजी की छाया से हुई थी। ब्रह्मïा जी ने उन्हें प्रजा में वृद्धि करने की आज्ञा दी। उनके आदेश का पालन करने के लिये कर्दम ऋषि ने स्वयंभुव मनु के द्वितीय कन्या देवहूति से विवाह कर नौ कन्याओं तथा एक पुत्र की उत्पत्ति की।
कन्याओं के नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति थे तथा पुत्र का नाम कपिल था। कपिल के रूप में देवहूति के गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुये थे।