सामान्य ज्ञान

सातवाहन वंश
04-Jan-2021 2:02 PM
सातवाहन वंश

मौर्य सम्राज्य के पतन के पश्चात कलिंग में चेदिवंश, पश्चिमोत्तर में यवन व मगध में शुंग और दक्षिण भारत में सातवाहन राज्य की स्थापना हुई। दक्षिण कोसल का अधिकांश भाग सातवाहनों के प्रभाव क्षेत्र में था। सातवाहन राजा अपीलक के तांबे के सिक्के बिलासपुर जिले के बालपुर नामक स्थल से प्राप्त हुए हैं। सातवाहन राजा अपने को दक्षिण पथ स्वामी कहते थे। 
उनकी राजधानी प्रतिष्ठïान में थी तथा प्रथम सातवाहन राजा सिमुक थे। पुराणों में 30 से भी अधिक नरेशों की जानकारी मिलती है। इस वंश का शासनकाल करीब 400 वर्षों तक था। किरारी, बिलासपुर के तालाब में पाए गए काष्ठï स्तंभ सातवाहनकालीन हैं, जो आजकल गुरु घासीदास संग्रहालय, रायपुर में संरक्षित हैं। सातवाहन वंश का अंतिम शासक पुलुमावि था।


दशनामी
संन्यासियों के दस भेद प्रसिद्ध हैं- ये हैं तीर्थ, आश्रम, वन अरण्य, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारती और पुरी। ये सभी साधु दशनामी कहलाते हैं। इनका आरंभ आदि शंकराचार्य  के समय से हुआ। उन्होंने दक्षिण में श्रंृगेरी , उत्तर में जोशी मठ, पूर्व में गोर्वधन मठ  और पश्चिम में शारदा मठ की स्थापना की और इन मठों के पृथक-पृथक आचार्य नियुक्त किए । ये इन्हीं दशनामियों में से थे। 
दशनामी संन्यासी धर्म प्रचार और धर्म रक्षा दोनों करते थे।  धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने अखाड़ों का संगठन किया है - जैसे जूना अखाड़ा (काशी), निरंजनी अखाड़ा (प्रयाग), महानिर्वाणी अखाड़ा (झारखंड) आदि।
 

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