सामान्य ज्ञान
जादोपटिया चित्रकला शैली झारखंड-बिहार की सीमा पर सदियों से निवास करती आ रहे संथाल जनजाति की एक लोकशैली है ।
यह संथाली समाज से जुड़ी प्राचीन लोककला है, जो इस समाज के उद्भव विकास, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास एवं नैतिकता को व्यक्त करती है। इस शैली के कलाकार वंश परम्परा के आधार पर इस कला को अपनाते आए हैं। इनके नाम के साथ जादोपटिया शब्द जुड़ा रहता है। जादो संथालों में पुरोहितों को कहा जाता था। वे इस चित्रकला के सहारे अपनी जीविका चलाते थे। वे इस चित्रकला को लेकर गांव -गांव में घूमते थे और इसे दिखाते समय लयबद्ध स्वर में चित्रित विषय और कथा को गीत के रूप में लोगों के सामने रखते थे। जिससे संथाली अपनी संस्कृति के बारे में जान सके। अपनी इस संगीतमय प्रस्तुति के बाद वे लोगों से दक्षिणा लेते थे। चित्रकला की इस शैली को कपड़े या कागज पर बनाया जाता है। कपड़े पर सूई-धागे से सीकर 5 से 20 फीट लंबा और डेढ़ या दो फीट चौड़ा पट तैयार किया जाता है। इसमें ज्यादातर वैसे चित्रों का चयन किया जाता है जो इस समाज के सांस्कृतिक, नैतिक दृश्यों को दिखा सकें। समय के साथ यह लोकशैली भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है।