सामान्य ज्ञान

लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2013
05-Jan-2021 1:06 PM
लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2013

लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक-2013 एक भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी समिति बनाने की अनुमति देता है जिसमें कुछ सुरक्षा उपायों के साथ प्रधानमंत्री का पद भी इस दायरे में आ जाएगा। 
भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक-2013 पर 1 जनवरी 2014 को हस्ताक्षर किए।  यह विधेयक लोकसभा के शीतकालीन सत्र में 18 दिसंबर 2013 को पारित हुआ था। इससे पहले 17 दिसंबर 2013 को संशोधित विधेयक राज्य सभा द्वारा पारित किया जा चुका था।  
विधेयक का उद्देश्य संबंधित विधानसभाओं द्वारा पारित कानून के तहत इसके प्रभाव में आने की तिथि के एक वर्ष के भीतर केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति करना है। इससे पहले 2011 में, यह विधेयक लोकसभा में शीत–सत्र के दौरान पारित किया गया था लेकिन राज्यसभा में मतदान से पहले और सत्र के स्थगन तक  इस पर बहस जारी थी। इसके अलावा, राज्य सभा की प्रवर समीति ने विधेयक में कुछ परिवर्तन का सुझाव दिया था जिसमें से अधिकांश को विधेयक में शामिल कर केंद्रीय मंत्रीमंडल ने इसे अनुमोदित कर दिया।
अधिनियम के अनुसार लोकपाल केंद्र स्तर का और लोकायुक्त राज्य स्तर पर होगा। लोकपाल में एक अध्यक्ष के साथ अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 50 फीसदी सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। अधिनियम के मुताबिक लोकपाल के कुल सदस्यों में से 50फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति के जरिए किया जाना चाहिए जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामांकित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शामिल होंगें। इसके बाद भारत के राष्ट्रपति चयन समिति के पहले चार सदस्यों की सिफारिशओं के आधआर पर प्रख्यात विधिवेत्ता को नामित करेंगे। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया गया है।
 लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लोक सेवक की सभी श्रेणियां होंगी। इसके दायरे में विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए ) के संदर्भ में वे कोई/सभी संस्थाएं होंगी जो विदेशी स्रोतों से 10 लाख रुपये से ज्यादा का दान लेगीं।
 अधिनियम के तहत ईमानदार और सीधे-सादेे लोक सेवकों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी। अधिनियम लोकपाल को अधीक्षण का अधिकार और विभिन्न मामलों में सीबीआई समेत किसी भी जांच एजेंसी को निर्देशित करने का -चाहे वह लोकपाल ने खुद जांच एजेंसी को ही क्यों न दिया हो, अधिकार प्रदान करता। सीबीआई के निदेशक की सिफारिश उच्च शक्ति समिति द्वारा भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में की जाएगी। अभियोजन के निदेशक के नेतृत्व में अभियोजन निदेशालय को निदेशक नियंत्रित करेंगे। केंद्रीय सतर्कता आयोग अभियोजन निदेशक, सीबीआई की नियुक्ति की सिफारिश करेंगें। लोकपाल द्वारा संदर्भित मामलों की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों के तबादले के लिए लोकपाल की मंजूरी की जरूरत होगी।  अधिनियम में भ्रष्ट तरीकों से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान है चाहे अभियोजन का मामला लंबित ही क्यों न हो।
इसमें प्रारंभिक जांच और ट्रायल के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की गई है. ट्रायल के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का भी उल्लेख है। इसमें अधिनियम के लागू होने के 365 दिनों के भीतर राज्य विधानमंडल द्वारा कानून के अधिनियमन के जरिए लोकायुक्त संस्था की स्थापना का उल्लेख भी किया गया है।
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news