सामान्य ज्ञान

जी एस एल वी की आठवीं उड़ान
06-Jan-2021 12:43 PM
जी एस एल वी की आठवीं उड़ान

भू स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)   द्वारा निर्मित  है।  अब तक जीएसएलवी की   सात उड़ानों में से दो ही पूरी तरह से सफल रही हैं।  इसकी आठवीं उड़ान 5 जनवरी, 2014 को हुई। जीएसएवी  की आठवीं उड़ान डी-5  में इसरो ने कई छोटे-बड़े बदलाव किए हैं। पिछले अभियानों में सामने आई सभी कमियों को दूर किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें देश में निर्मित क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। 
दूसरे रॉकेट के आकार-प्रकार में भी बदलाव किए गए हैं। मकसद यह कि जिन कारणों से पिछले अभियान विफल हुए हैं, उनकी पुनरावृत्ति नहीं हो। इस प्रक्षेपण वाहन के जरिये एक भारी भरकम उपग्रह जीसैट-14 को भी भेजा जा रहा है, जो अत्याधुनिक संचार उपग्रह है। जीसैट मूलत: 1982 किग्रा वजन का संचार उपग्रह  है। इस उपग्रह से देश में संचार, प्रसारण के साथ-साथ टेलीएजुकेशन एवं टेलीमेडिसिन सेवाओं के लिए अतिरिक्त ट्रांसपोंडर हासिल हो पाएंगे। यह इसरो का 23वां संचार उपग्रह होगा। इसके स्थापित होने के बाद अंतरिक्ष में भारत के नौ सक्रिय संचार उपग्रह हो जाएंगे। इसमें लगे केयू एवं सी बैंड ट्रांसपोंडर देश के समस्त क्षेत्र में कवरेज प्रदान करेंगे। 
जीएसएलवी के जरिये दो हजार या इससे अधिक टन के उपग्रहों को भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाएगा। संचार एवं प्रसारण में इस्तेमाल आने वाले उपग्रहों को भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित करना होगा। अभी तक भारी उपग्रह प्रक्षेपित करने की क्षमता भारत के पास नहीं थी। उसे दूसरे देशों की मदद लेनी पड़ती है। इसकी सफलता से भारत न सिर्फ अपनी जरूरत के लिए भारी उपग्रह प्रक्षेपित करेगा, बल्कि दूसरे देशों को भी अपनी सेवाएं देकर राजस्व अर्जित कर सकता है। अभी इसरो दूसरे देशों के छोटे उपग्रह प्रक्षेपित करता है। हल्के उपग्रहों को धु्रवीय कक्षा में स्थापित करने के लिए भारत का अपना सफल लांच व्हीकल पीएसएलवी है।  लेकिन यह एक हजार किग्रा से ज्यादा वजन नहीं ले जा सकता।
कब-कब हुई जीएसएलवी की सात उड़ानें
* 18 अप्रैल 2001 को  जीएसएलवी  ने पहली उड़ान भरी। इसमें 1560 किग्रा का जीसैट-1 उपग्रह भेजा गया था। लेकिन जीएसएलवी ने भू स्थैतिक कक्षा से पहले ही जीसैट-1 को छोड़ दिया था, क्योंकि उसमें आगे बढऩे के लिए ईंधन नहीं बचा था। मिशन विफल रहा।
* 8 मई 2003 को दूसरी उड़ान सफल रही। 1825 क्रिग्रा के जीसैट को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया।
* 20 सितंबर 2004 को जीएसएलवी की तीसरी विकासात्मक उड़ान भी सफल रही। 1990 किग्रा के एजुसैट को कक्षा में स्थापित किया।
* 10 जुलाई 2006 को जीएसएलवी ने चौथी उड़ान भरी। यह अपने साथ 2168 किग्रा के उपग्रह इंसेट 4सी को लेकर उड़ा, लेकिन कुछ ही मिनटों में आई तकनीकी खराबी के बाद बंगाल की खाड़ी में जा गिरा।
 * दो सितंबर 2007 को जीएसएलवी की पांचवीं उड़ान हुई। यह 2160 किग्रा के इनसेट 4 सीआर को लेकर गया। उड़ान आशिंक रूप से विफल रही। उपग्रह को कक्षा में सही तरीके से स्थापित नहीं कर पाया। हालांकि बाद में इसे ठीक कर लिया गया और उपग्रह कार्य कर रहा है।
* 15 अप्रैल 2010 को जीएसएलवी की छठीं उड़ान विफल रही। इसमें क्रायोजनिक इंजन लगाया गया था जो ठीक से कार्य नहीं कर पाया और कक्षा में पहुंचने से पहले उड़ान फेल हो गई। इसमें 2220 किग्रा का जीसैट-4 भी था।
 * 25 दिसंबर 2010 को जीएसएलवी की सातवीं उड़ान भी फेल हो गई। इसमें 2130 किग्रा का जीसैट-5पी था। दूसरे चरण का तरल इंजन कार्य नहीं कर पाया।
 

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