सामान्य ज्ञान
आज भारत क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण खुद कर रहा है। क्रायोजेनिक इंजन तकनीक पर भारत ने 1992 से ही काम करना शुरू कर दिया था। रूस क्रायोजेनिक इंजन बनाने में भारत की मदद कर रहा था। शुरुआती अनुबंध के मुताबिक रूस को क्रायोजेनिक तकनीक भारत को सौंपनी थी। लेकिन अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को तकनीक नहीं दी। उस वक्त अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों ने ये दलील दी कि भारत क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल मिसाइल बनाने में करेगा। 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। भारत पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी। तकनीक हस्तांतरण तो दूर रूस ने पहले से तैयार क्रायोजेनिक इंजन को भी देने से इंकार कर दिया।
क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का इस्तेमाल जियो सिंक्रॉनस सैटलाइट लॉन्च के लिए किया जाता है। अंतरिक्ष में संचार उपग्रह भेजने का कारोबार बहुत ही मुनाफे वाला है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जापान का स्पेस कारोबार में एकछत्र राज है। अभी तक सिर्फ इन्हीं पांच देशों के पास क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक है।
क्रायोजेनिक ईंजन तकनीक बेहद अहम तकनीक है। खासतौर पर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में। ये ईंजन तरल ऑक्सीजन और तरल हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है। क्रायोजेनिक ईंजन के जरिए हम अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले उपग्रह के वजन को बढ़ा सकते हैं। उपग्रह के हर किलोग्राम वजन की कीमत करोड़ों में होती है और इस ईंजन के साथ बूस्टर के इस्तेमाल की भी जरूरत नहीं पड़ती। जाहिर है इस तकनीक के जरिए सैटलाइट भेजने में खर्च कम आता है।
भारत ने इस तकनीक को हासिल करने के लिए अरबों रुपए खर्च किए हैं। वैज्ञानिकों ने कामयाबी का पहला स्वाद चखा 10 फरवरी, 2002 को। इस दिन भारत ने पहली बार क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण किया। ये इंजन सिर्फ कुछ सेकेंडों के लिए ही चला। आठ महीने बाद 4 सितंबर, 2002 को एक बार फिर परीक्षण किया गया। इस बार इंजन 1000 सेकेंडों तक चला। इस बार के परीक्षण ने साबित कर दिया कि इंजन का डिजाइन कारगर है। आखिरकार कई परीक्षणों के दौर से गुजरने के बाद 12 मार्च, 2003 को वो दिन आया जब क्रायोजेनिक इंजन को कमर्शियल तौर पर बनाने की सहमति पर मुहर लगा दी गई।
लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पत्रकारिता अवॉर्ड
लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पत्रकारिता अवॉर्ड केसरी महरत्ता ट्रस्ट द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। अवॉर्ड के तहत एक स्मृति चिन्ह और एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है।
वष्र्र 2013 के लिए मलयालम मनोरमा के मुख्य संपादक और प्रबंध निदेशक माम्मेन मैथ्यू को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक राष्ट्रीय पत्रकारिता अवॉर्ड प्रदान किया गया है।