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वैक्सीन बना कर दुनिया तक पहुंचाना अब भी इतना मुश्किल क्यों है
29-Jan-2021 1:01 PM
वैक्सीन बना कर दुनिया तक पहुंचाना अब भी इतना मुश्किल क्यों है

दुनिया में कोविड वैक्सीन की भारी मांग मौजूदा सप्लाई पर भारी पड़ रही है. निराश लोगों ही नहीं बल्कि सरकारों को भी यह नहीं समझ आ रहा है कि तुरंत और ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन आखिर कैसे मिले.

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वैक्सीन विशेषज्ञ मारिया एलेना बोटाजी का कहना है, "यह सूप में पानी मिला कर उसे बढ़ाने जैसा काम नहीं है." कोविड-19 की वैक्सीन बनाने वालों को करोड़ो डोज तैयार करने के लिए हर काम सही तरीके से करना होगा और इसमें मामूली सी बाधा भी देरी का कारण बनेगी. वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाली कुछ चीजें अब से पहले कभी भी इतनी बड़ी मात्रा में तैयार नहीं की गईं.

एक बहुत साधारण सी बात जो आसानी से समझी जा सकती है कि पहले से मौजूद फैक्ट्रियों में नई तरह की वैक्सीन तैयार करने के लिए रातोंरात बदलाव कर पाना संभव नहीं है. इसी हफ्ते फ्रेंच दवा कंपनी सनोफी ने घोषणा की है कि वह अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी फाइजर और उसकी जर्मन सहयोगी बायोन्टेक को वैक्सीन के लिए बोतल और पैकेट बनाने में मदद करेगी. हालांकि वैक्सीन के ये डोज बहुत कोशिश करने पर भी गर्मियों से पहले लोगों तक नहीं पहुंच सकेंगे. दूसरी बात यह है कि सनोफी की जर्मनी में मौजूद फैक्ट्री में इसकी गुंजाइश इसलिए है क्योंकि उसकी अपनी वैक्सीन में देरी हो रही है. दुनिया में वैक्सीन की सप्लाई के लिए यह देरी अच्छी बात नहीं है.

फिलाडेल्फिया के चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल के डॉ पॉल ऑफिट अमेरिकी सरकार के वैक्सीन सलाहकार हैं. उनका कहना है, "हम सोचते हैं कि यह आदमी के शर्ट की तरह है. हमें इसे बनाने के लिए किसी और जगह की जरूरत होगी. यह इतना आसान नहीं है."

हर वैक्सीन का अलग फॉर्मूला
कोविड-19 के लिए जो अलग अलग देशों में वैक्सीन इस्तेमाल हो रही हैं वो सभी शरीर को इस बात के लिए तैयार करती हैं कि वह कोरोना वायरस की पहचान करे यानी उस स्पाइक प्रोटीन की जो उसके ऊपर मौजूद रहता है. हालांकि इसके लिए इन वैक्सीनों को अलग तकनीक, कच्चे सामान, और उपकरणों की जरूरत के साथ ही विशेषज्ञता की जरूरत होती है. 

अमेरिका में जिन दो वैक्सीनों को मंजूरी मिली है वो एक खास जेनेटिक कोड का इस्तेमाल कर बनाए गए हैं जिन्हें एमआरएन कहा जाता है. इसमें वसा की छोटी सी गेंद के भीतर स्पाइक प्रोटीन के लिए निर्देश रहते हैं. रिसर्च लैब के भीतर छोटी मात्रा में एमआरएन आसानी से बनाई जा सकती है लेकिन इससे पहले किसी ने भी एमआरएन की अरबों डोज तैयार नहीं की है. पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के डॉ ड्रियू वाइजमन का कहना है, "अब से पहले तो 10 लाख डोज भी नहीं बनाई गई है." ज्यादा डोज बनाने का मतलब ज्यादा मात्रा में कच्चे माल को मिलाना भर नहीं है. एमआरएनए बनाने के लिए जेनेटिक बिल्डिंग ब्लॉक और एन्जाइमों के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया करानी होती है और वाइजमन का कहना है कि एंजाइम बड़ी मात्रा में उतनी कुशलता के साथ काम नहीं करते.

एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ब्रिटेन और कई दूसरे देशों में इस्तेमाल हो रही है. इसके अलावा जॉन्सन एंड जॉन्सन की भी जल्दी ही तैयार होने वाली है. ये दोनों वैक्सीन एक कोल्ड वायरस से बनाई गई हैं जो शरीर में स्पाइक प्रोटीन की जीन को हटा देता है.

इन्हें बनाने का तरीका बिल्कुल अलग है. पहले जीवित कोशिकाओं को एक बड़े बायोरिएक्टर में विकसित किया जाता है और फिर इनसे कोल्ड वायरस को अलग कर के शुद्ध किया जाता है. वाइजमन बताते हैं, "अगर कोशिकाएं पुरानी बूढ़ी हो जाएं, थक जाएं या फिर बदलना शुरू कर दें तो आपको कम वायरस मिलेंगे."

एक वैक्सीन बहुत पुराने तरीके से भी तैयार की गई है जो चीन ने बनाई है. इसमें एक कदम और ज्यादा चलना पड़ता है ज्यादा कठोर जैवसुरक्षा की जरूरत पड़ती है क्योंकि ये मरे हुए कोरोनावायरस से तैयार की जाती हैं.

एक बात तो सारी वैक्सीनों के लिए जरूरी है कि उन्हें कड़े नियमों के तहत, खास तरीकों से निगरानी की जाने वाली फैक्ट्रियों में और हर कदम पर लगातार टेस्ट की जा सकने वाली प्रक्रियाओं के जरिए बनाया जाना है. हर बैच की वैक्सीन के लिए यह सब सुनिश्चित करना एक समय लगने वाला काम है.

सप्लाई चेन की मुश्किलें
उत्पादन निर्भर करता है पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की सप्लाई पर. फाइजर और मोडेर्ना का दावा है कि उनके पास भरोसेमंद सप्लायर हैं. ऐसा होने पर भी अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि ढुलाई के विशेषज्ञ सीधे वैक्सीन बनाने वालों के साथ काम कर रहे हैं ताकि किसी भी बाधा के उत्पन्न होने पर उसे दूर किया जा सके.

मोडेर्ना के सीईओ स्टेफाने बान्सेल मानते है कि इसके बाद भी चुनौतियां कायम हैं. फिलहाल काम 24 घंटे और सातों दिन की शिफ्टों में चल रहा है. उन्होंने कहा, अगर किसी दिन "कोई एक भी कच्चा सामान नहीं हो तो हम उत्पादन शुरू नहीं कर सकते और फिर हमारी क्षमता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी क्योंकि हम उसकी भरपाई नहीं कर सकते." फाइजर ने तात्कालिक रूप से यूरोप में कई हफ्तों से डिलीवरी घटा दी है. इस बीच में वह बेल्जियम की अपनी फैक्ट्री को अपग्रेड करना चाहता है ताकि ज्यादा उत्पादन किया जा सके. कभी कभी किसी बैच में कमी हो जाती है. इसी बीच एस्ट्राजेनेका ने नाराज यूरोपीय संघ से कहा है कि वह भी डिलीवरी उतनी तेजी से नहीं कर सकेगा जितनी की उम्मीद थी. उसका कहना है कि यूरोप में कुछ जगहों पर उत्पादन उतना नहीं हो रहा है.

कितनी वैक्सीन बन रही है?
यह संख्या देशों पर निर्भर करती है. मोडेर्ना और फाइजर दोनों अमेरिका को मार्च के आखिर तक 10 करोड़ डोज देंगी. इसके बाद अगली तिमाही के आखिर तक 10 करोड़ डोज और. इससे आगे जा कर जो बाइडेन ने घोषणा की है कि उनकी योजना गर्मियों तक और ज्यादा वैक्सीन खरीदने की है. आखिरकार 30 करोड़ अमेरिकी लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन मिल जाने तक यह सिलसिला जारी रहेगा.

फाइजर के सीईओ ने इस हफ्ते एक कांफ्रेंस में बताया कि उनकी कंपनी मार्च के आखिर तक 12 करोड़ डोज डिलिवर करने की तैयारी कर रही है. यह काम तेज उत्पादन की वजह से नहीं हुआ बल्कि स्वास्थ्यकर्मियों को हर वायरल से एक खास सिरिंज के जरिए अतिरिक्त डोज निकालने की अनुमति मिलने से हुआ.

फाइजर का यह भी कहना है कि बेल्जियम की फैक्ट्री में अपग्रेड से थोड़े समय के लिए उत्पादन पर असर हुआ है लेकिन लंबे समय में यह फायदा देगा. जो अपग्रेड हो रहा है उसके बाद फाइजर इस साल 2 अरब डोज तैयार कर सकेगी. पहले सिर्फ 1.3 अरब डोज तैयार करने की ही बात कही जा रही थी.

इसी तरह मोडेर्ना ने भी घोषणा की है कि वह 2021 में 60 करोड़ डोज की सप्लाई दे सकेगा जो पहले के 50 करोड़ डोज से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. क्षमता बढ़ाने की जो तैयारी चल रही है उससे मोडेर्ना की उम्मीदें एक अरब डोज तक तैयार करने की थी.

इन सब के बावजूद वैक्सीन की ज्यादा डोज पाने का सबसे आसान तरीका तो यही है कि जो वैक्सीन अभी तैयार होने की राह में हैं वो काम की साबित हों जैसे कि जॉन्सन एंड जॉन्सन की वन डोज वाली वैक्सीन या फिर नोवावैक्स जो परीक्षण के आखिरी दौर में है.

दूसरे विकल्प
कई महीनों से अमेरिका और यूरोप की प्रमुख वैक्सीन कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर से संपर्क जोड़ रही हैं जो उन्हें डोज तैयार करने और उन्हें बोतलबंद करने में मदद कर सकें. उदाहरण के लिए मोडेर्ना स्विटजरलैंड की लोंजा के साथ काम कर रही है. अमीर देशों से अलग भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने भी एस्ट्रा जेनेका के लिए एक अरब डोज तैयार करने का करार किया है. सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में है और वह विकासशील देशों के लिए प्रमुख सप्लायर की भूमिका निभा सकता है.

हालांकि ऐसी कुछ कोशिशों को झटका भी लगा है. ब्राजील के दो रिसर्च इंस्टीट्यूट एस्ट्राजेनेका और सिनोवैक की करोड़ों डोज तैयार करने की योजना बना रहे थे. लेकिन उन्हें चीन से कच्चे माल की सप्लाई में देरी होने से झटका लगा है.

एनआर/एमजे(एपी)

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