सामान्य ज्ञान
भारत सरकार ने नवंबर 2015 में एक रैंक एक पेंशन (ओआरओपी) लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। इससे 42 वर्ष के बाद रक्षा कर्मियों की लंबी मांग पूरी हुई है और इसका लाभ 18 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों तथा युद्ध विधवाओं को मिलेगा। वन रैंक-वन पेंशन एक ऐसी योजना है जो सेना के एक रैंक और एकसमान सेवा की अवधि होने पर समान पेंशन का प्रावधान करती है। इसके योजना को लागू कराने के लिए भूतपूर्व सैनिक 1973 से ही कोशिश कर रहे थे, लेकिन इस मुद्दे ने 8 फरवरी 2009 में तब जोर पकड़ा जब 300 से अधिक भूतपूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया और अपने मेडल वापस कर दिए। 2008 में इस मुहिम को तेज करने के लिए इंडियन सर्विसमैन मूवमेंट की स्थापना की गई थी।
कांग्रेस सरकार ने फरवरी 2014 में यानी चुनाव से ठीक पहले अपने अंतरिम बजट में इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। चुनाव हुए तो बीजेपी ने भी अपने घोषणा पत्र में इसका वादा किया। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद अपने पहले बजट में यानी जुलाई 2014 में इसके लिए 1000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। इस योजना के लिए सेना के कुछ मजबूत तर्क हैं। सबसे महत्वपूर्ण सैनिकों की रिटायर उम्र है। जितनी भी सेनाएं हैं उनको युवा रखने की आवश्यकता होती है, इसलिए सैन्यकर्मियों को जल्द रिटायर करना होता है। 85 फीसदी सैनिक 40 साल की उम्र से पहले घर भेज दिए जाते हैं। जबकि पुलिस, सीआरपीएफ, आईटीबीपी या बीएसएफ के जवान 60 साल तक नौकरी कर सकते हैं। सेना के जवानों को पेंशन देकर घर भेज दिया जाता है क्योंकि सेना को युवा रखना है। ऐसे में उनके जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए उचित पेंशन जरूरी है। सेना की कार्यसंस्कृति और कार्यक्षेत्र भी काफी मुश्किल होता है। छठे वेतन आयोग से उत्पन्न विसंगतियों ने इसकी जरूरत को और बढ़ा दिया है। यही वजह है कि 2006 के बाद से सेना का एक कर्नल अपने से दो रैंक ऊपर मेजर जनरल से अधिक पेंशन पाता है।
इस योजना से 25 लाख से अधिक भूतपूर्व सैनिकों के साथ-साथ करीब 13 लाख से अधिक वर्तमान सैनिकों को फायदा मिलेगा। भारत में 6.5 लाख से अधिक शहीदों की विधवाओं और हर साल रिटायर होने वाले 65 हजार सैनिक भी इस योजना का लाभ उठा सकेंगे।
अमेरिका में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 15-20 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है। ब्रिटेन में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 10 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है। फ्रांस में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 15 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है।
पाकिस्तान में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 10 -15 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है। जापान में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 19 - 29 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है।