सामान्य ज्ञान
दधिची के नाम से प्राचीन हिन्दू गं्रथों में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है। जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश के हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने- 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3. सारंग । जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता। सारंग से भगवान राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था और, पिनाक भगवान शिव जी के पास था जिसे तपस्या के माध्यम से खुश रावण ने शिव जी से मांग लिया था। लेकिन वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण रावण बीच रास्ते में उसे जनकपुरी में छोड़ आया था। इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी। पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !
ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही एकघ्नी नामक वज्र भी बना था जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था। इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उसे दे दिया था। इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घतोत्कक्ष कर्ण के हाथों मारा गया था। इसके अलावा दधिची की हड्डियों से और भी कई अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था।