सामान्य ज्ञान
वर्तमान राजस्थान में जयपुर से लगभग 11 किलोमीटर उत्तर में एक पर्वतीय ढलान पर स्थित अम्बर साहित्यिक ग्रंथों और शिलालेखों के आधार पर आमेर, आम्बारे, अम्बिकापुर, अम्बरीश एवं अम्बाजी आदि नामों से जाना जाता है।
कछवाहा वंश के कोकिलदेव ने इसे अपनी राजधानी बनाया इसी वंश का राजा जयंिसह ने यहां एक दुर्ग बनवाया। आमेर और जयगढ़ के नाम से प्रसिद्ध इस दुर्ग में शीशमहल, दीवानेआम, दीवानेखास, शिलादेवी का मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। वास्तुकला की दृष्टिï से यह दुर्ग अन्य दुर्गों से भिन्नता लिए हुए हैं। दुर्ग के नीचे दिलाराम का बाग इसके सौंदर्य को और बढ़ा देता है।
प्राकृत भाषा
भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएं विकसित हुईं उनका सामान्य नाम प्राकृत है, और उन भाषाओं में जो ग्रंथ रचे गए उन सबको समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाता है।
विकास की दृष्टि से भाषा वैज्ञानिकों ने भारत में आर्यभाषा के तीन स्तर नियत किए हैं - प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। प्राचीन स्तर की भाषाएं वैदिक संस्कृत और संस्कृत हैं, जिनके विकास का काल अनुमानत: ई. पू. 2000 से ई. पू. 600 तक माना जाता है। मध्ययुगीन भाषाएं हैं - मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची भाषा, महाराष्टï्री और अपभ्रंश । इनका विकासकाल ई. पूर्व 600 ई. 1000 तक पाया जाता है। इसके बाद हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, आदि उत्तर भारत की आधुनिक आर्यभाषाओं का विकास प्रारंभ हुआ जो आज तक चला आ रहा है।