सामान्य ज्ञान
हिमालय की खूबसूरत घाटियों के बीच बसा है तवांग, जो हिमाचल राज्य का हिस्सा है। 3000 मीटर ऊंचाई पर बसे तवांग में मुश्किल से 10 हजार लोग रहते हैं। यह शहर भारत-चीन सीमा से 40 किलोमीटर दूर है और बौद्ध मठ के लिए जाना जाता था।
हिमालय की खूबसूरत वादियों वाले इस शहर में आम तौर पर बौद्ध मठ के मंत्रोच्चार सुनाई देते हैं। 20 अक्तूबर 1962 में चीन की सेना ने मैकमोहन रेखा पार कर भारत पर हमला बोल दिया और तवांग के कई हिस्सों पर कब्जा जमा लिया। यहां के ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म में महायान को मानते हैं और अपनी संस्कृति और इतिहास पर गर्व करते हैं। इनमें मोनपा प्रमुख हैं। वे प्राकृतिक तरीकों से खेती बाड़ी करते हैं और कागज भी बनाते हैं। लकड़ी की मूर्तियां और कालीन बनाना मोनपा के लोगों की विरासत का हिस्सा हैं। तवांग के मशहूर बौद्ध मठ में युवा लामाओं को शिक्षा भी दी जाती है। यहां का मठ भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के सबसे बड़े शैक्षिक संस्थानों में शामिल है। यहां करीब 450 भिक्षु रहते हैं। इस मठ को तवांग ज्ञानदेन नामग्याल ग्यात्से कहा जाता है जिसका मतलब है खुले आसमान में दिव्य जन्नत।
इस मठ की स्थापना 1680 में मेरग लामा लोदरे ग्यात्सो ने की। वर्ष 1959 तक इस जगह पर 600 भिक्षु रह चुके थे। वर्ष 1959 तक तिब्बत की राजधानी ल्हासा से मठ के प्रमुखों को चुना जाता था लेकिन उसके बाद तवांग के ही लामा यहां के प्रमुख बनते हैं। तवांग शहर में जिंदगी किसी भी आम भारतीय शहर जैसी है। यहां लगभग एक लाख 80 हजार भारतीय सैनिक तैनात हैं। भारतीय सेना ने ऊंचाई पर फौजी ट्रेनिंग के लिए खास अकादमी खोल दी है। तवांग की उत्तर-पूर्व दिशा में तिब्बत, दक्षिण-पश्चिम में भूटान और दक्षिण-पूर्व में पश्चिम कमेंग स्थित है। तवांग का नामकरण 17वीं शताब्दी में मिराक लामा ने किया था। यहां पर मोनपा जाति के आदिवासी रहते हैं। यह जाति मंगोलों से संबंधित है।