महासमुन्द

कई बरसों तक, सुुबह से शाम, देर रात न जाने क्या-क्या खोजते रहे, अभी भी खोज जारी थी...
29-Feb-2024 3:32 PM
कई बरसों तक, सुुबह से शाम, देर रात न जाने क्या-क्या खोजते रहे, अभी भी खोज जारी थी...

अब उन सौ टीलों का क्या होगा, जिन्हें खोजा था डॉ. शर्मा  ने

उत्तरा विदानी

महासमुंद, 29 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। 12वीं सदी में भूकंप के बाद जमीन के अंदर दफ न सिरपुर को विश्व के सामने खड़ा करने की कोशिश करते अलविदा कह गए अरुण काका। जी हां, सिरपुर को विश्व में पहचान दिलाने वाले पुरातत्वविद् पद्मश्री डॉ. अरुण कुमार शर्मा को सिरपुर के लोग काका कहते थे। गांव वालों को इसकी जानकारी आज सुबह मिली कि बुधवार 28 फरवरी की रात 11.30 बजे काका ने अंतिम सांस ली है। उनके देवलोक गमन की खबर से सिरपुर के साथ-साथ महासमुंद जिला भी शोक में है। 

वैसे तो डॉ. अरुण कुमार शर्मा को अयोध्या में राम जन्मभूमि की खुदाई और न्यायालय में सबूत पेश करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा, लेकिन सिरपुर की खुदाई में भी श्री शर्मा का योगदान अतुलनीय है। 

उन्होंने सिरपुर में खोदाई के बाद कहा था कि 1500 साल पहले तक इस स्थान को श्रीपुर के नाम से जाना जाता था। 12वीं सदी में आए भूकंप के बाद यह नगरी जमीन के अंदर दफ न हो गई थी। 100 से अधिक टीलों में पुरातात्विक सामग्री दबी हुई है। वे चाहते थे कि सिरपुर का नाम विश्व पटल पर दर्ज हो। इसके लिए उन्होंने भरसक कोशिशें भी की थी। उनकी मौत के बाद अब उन सौ टीलों का क्या होगा, जिनके भीतर पुरातात्विक सामग्री दबी हुई हैं? 

सिरपुर का चप्पा-चप्पा अपने कदमों से हर रोज नापते श्री शर्मा ने इस बात की पुष्टि की थी कि सिरपुर का इतिहास त्रिदेव के प्रकट होने से लेकर रामायण, गौतम बुद्ध, ह्वेनत्सांग से जुड़ा हुआ है। सिरपुर में मार्च 2017 में यहां एलियन के जैसे दिखने वाले पुतले मिले थे। इन पुतलों को देख देश विदेश के लोग आश्चर्यचकित हो उठे थे। इनके रहस्यों को खोजने और वीडियो डाक्युमेंट्री बनाने अमेरिका की एंशिएट एलियन की टीम के साथ हिस्ट्री चैनल वाले भी पहुंचे थे। यह पुतले करीब 26 सौ वर्ष पुराने थे। 

उन्होंने बताया था कि ह्वेन त्सांग हर्षवर्धन के काल लगभग सन 622 ई. में भारत आया था और लगभग 20 वर्ष भारत में गुजारा था। इस अवधि में ह्वेन त्सांग कुछ दिन सिरपुर में भी रहा। ईसा पूर्व 6 वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म की स्थापना करने वाले गौतम बुद्ध भी लगभग तीन महीने सिरपुर में रहे। 

जानकारी के अनुसार पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10 हजार बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप, बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के भी प्रमाण मिले हैं। 

डॉ. अरुण कुमार शर्मा से ही दुनिया को पता चला कि 6वीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित राजधानी थी जहां देश विदेश से व्यापार होता था। इस प्राचीन राजधानी में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर अंडर ग्राउंड अन्नागार तक मिले हैं। सिरपुर में विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है, जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों में महानदी के माध्यम से व्यापार होता था। 

वे बताते थे कि सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है। पहले महानदी में पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमें जहाज आया जाया करते थे। सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी में धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है। 

उत्खनन में मिले 5वीं शताब्दी में बनाई गई वैदिक पाठशाला के प्रमाण भी यहां देखे जा सकते हैं। यह वैदिक पाठशाला 10 मीटर लंबाई व 1गुणा 5 मीटर चौड़ाई के कमरों से बना है। जानकारी के अनुसार इस कमरे में 60 विद्यार्थियों के पढऩे की व्यवस्था थी। 

श्री शर्मा को सिरपुर में उत्खनन के दौरान एक कुंड भी मिला। इस कुंड के चारों तरफ 12 स्तम्भ भी हैं। इनके अवशेष के रूप में आधार स्तम्भ शेष बचे हैं। कुंड के उत्तर पूर्व में तुलसी चौरा है। इसमें जल की निकासी के लिए एक भूमिगत नाली से जोडक़र कुंड से मिलाया गया है। यहां सात धान्य भंडार भी मिले हैं जिनमें तुलसी और नीम पत्ती व गेरू के टुकड़े रखकर दीमक से सुरक्षा करने के प्रमाण हैं। 

अरुण शर्मा की बात पर ही इस साल जुलाई 2024 में हेरिटेज कमेटी की टीम आने वाली है। अगर सिरपुर को नॉमिनेशन में जगह मिली तो अगले 4 साल में विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया जा सकेगा। अभी तक विश्व धरोहर बनने के लिए सिरपुर को जीपीएस सर्वे, जीआईएस सर्वे हेतु प्रतिस्थापन व पुनर्वास योजना निर्माण, सम्पूर्ण पुरातत्विक सर्वेक्षण, फ ोटो ग्रामीट्रिकल सर्वे, ड्रोन सर्वे, जिओ मैपिंग, कंटूर मैपिंग, ज्योग्राफिकल ड्राइंग, प्रत्येक विरासत की अलग-अलग स्टडी रिपोर्ट, आसपास के सभी 34 गांवों का मास्टर प्लान बनाने, 5 ग्रामों सेनकपाट, सिरपुर, खमतराई, मरोद, रायकेरा में डोजियर बनाकर शासन को जमा कर दिया गया है।  

सिरपुर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण साडा के सीईओ वाई राजेंद्र राव के मुताबिक सिरपुर क्षेत्र के आसपास बसी आबादी के पुनर्विस्थापन के बाद ही यूनेस्को इसे विश्व धरोहर में शामिल कर सकेगा। डोजियर बनाकर शासन को जमा कर दिया गया है। शासन से ये फाइल केंद्र को और केंद्र इसे यूनेस्को में भेजेगी। इंडियन हेरिटेज कमेटी के सदस्य भी सिरपुर में निरीक्षण कर चुके हैं। इसमें तीन से 4 साल का समय लगेगा। 21 से 31 जुलाई तक हेरिटेज कमेटी की भारत यात्रा है। उनके यहां आने पर सिरपुर नॉमिनेशन में शामिल हो जाएगा। इसके बाद मास्टर प्लान बनाकर पुनर्वास के बाद हर हाल में विश्व धरोहर में शामिल करवाने की कोशिश होगी।

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