राजपथ - जनपथ
नान घोटाले में कितनी समानता
मध्यप्रदेश में नान घोटाला सामने आया है, बिल्कुल छत्तीसगढ़ की तरह। वहां मंडला और बालाघाट जिलों में नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों से मिलीभगत कर राइस मिलर्स ने मिलिंग के लिये मिला अच्छा चावल गायब कर दिया और जानवरों को खिलाया जाने वाला चावल जमा कर दिया। करीब 17 लाख टन चावल राशन दुकानों में गरीबों को बांटने के लिये भेज दिया गया। अभी मध्यप्रदेश में उप-चुनाव होने हैं। सरकार को ईमानदार तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त दिखना ऐसे मौके पर बहुत जरूरी है। राइस मिल सील कर दिये गये हैं, मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। नान प्रबंधक और क्वालिटी कंट्रोल अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। एकबारगी सुनने में लगता है कि सब निपट जायेंगे। जो ऐसा सोचते हैं उन्हें छत्तीसगढ़ में हुए इसी नान के 36 हजार करोड़ के घोटाले को जरूर याद करना चाहिये। शुरुआती दौर में ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई थी, लगा था अब तो कई नप जायेंगे। कितनी टीमें बनीं, बोरियों दस्तावेज, डायरियां जब्त हुईं। एक दहशत सी थी कि जांच एजेंसी किसी भी लपेटे में ले सकती है। फरवरी 2015 का मामला है। पांच साल होने जा रहे हैं। मामला कानूनी दांव-पेच और अदालतों के बीच झूल रहा है। लोगों ने अब पूछना बंद कर दिया कि दोषी कोई है? किसी को सजा होगी भी या नहीं? मध्यप्रदेश में जिन अधिकारियों पर शिकंजा कसा है क्या पता कल वे पाक-साफ दिखाई देने लगें। क्या पता छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार की तरह विधानसभा में ही तरह दावा किया जायेगा कि दरअसल, कोई घोटाला तो हुआ ही नहीं था। वक्त बतायेगा।
इस बार रावण को ही कहा जायेगा...!
कोविड-19 महामारी ने सभी तीज-त्यौहारों पर भी ग्रहण लगा दिया है। गणेश चतुर्थी फीकी बीती। अप्रैल की नवरात्रि फीकी रही। गणेश चतुर्थी पर भी प्रतिमा स्थापित करने के लिये शर्तें इतनी थीं कि ज्यादातर मोहल्ला समितियों ने इससे तौबा कर रखी थी। लेकिन दुर्गा पूजा भी अब आने वाली है। हावड़ा रूट पर पडऩे वाले सभी शहरों में यह त्यौहार हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आयोजन समितियों के पदाधिकारी जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से पूछ रहे हैं कि उत्सव मनाने की अनुमति मिलेगी या नहीं? हालांकि पर्व आने में अभी एक माह से ज्यादा वक्त है पर जिस रफ्तार से कोरोना महामारी पूरे प्रदेश में पैर पसार रही है, उससे नहीं लगता कि अक्टूबर माह में स्थिति बहुत संभल जायेगी। दुर्गोत्सव और गणेश चतुर्थी की भव्यता में बड़ा फर्क होता है। इसमें बड़े-बड़े सहयोग मिलते हैं, बड़े पंडाल तैयार किये जाते हैं। बहुत दिन पहले से ही घूमना शुरू करना पड़ता है। इस मौके को लेकर आयोजकों की चिंता इसीलिये जायज है। फिर, इसके तुरंत बाद दशहरा भी है। ऑनलाइन रावण-दहन का कोई तरीका तो हो नहीं सकता। दोनों ही मौकों पर जुटने वाली भीड़ प्रशासन की चिंता बढ़ा सकती है। निर्णय तो समझदारी के साथ ही लेना होगा। वाट्सएप्प वायरल पर कोई क्यों जाये, वहां तो यह भी कहा जा रहा है कि दशहरे में इस बार नेताओं को नहीं बुलाया जाये, रावण को खुदकुशी के लिये कहा जाये।
पितरों से लेकर मरवाही तक की रोक...
निगम-मंडलों की दूसरी सूची अटक गई है। चूंकि पितृपक्ष शुरू हो गया है, ऐसे मौके पर कोई शुभ कार्य या नई नियुक्ति नहीं करने की पुरानी परम्परा है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस बार भी पुरानी परम्पराओं का निर्वाह किया जाएगा और पितृपक्ष खत्म होने तक, अगले 15 दिन कोई सूची जारी नहीं होगी।
कहा जा रहा है कि सूची के नामों को लेकर पहले ही सहमति बन गई थी और विधानसभा का सत्र निपटने के बाद जारी करने की उम्मीद थी। मगर सीएम और कुछ मंत्रियों के क्वॉरंटीन होने के कारण सूची अटल गई है। हल्ला यह भी है कि सूची मरवाही चुनाव के बाद ही जारी होगी। वजह यह है कि कुछ नामों को लेकर पार्टी के अंदरखाने में विवाद है, और सीएम भी इससे सहमत नहीं हैं। मरवाही के नतीजे आने के बाद ही सूची जारी होगी। स्वाभाविक है तब तक दावेदारों में बेचैनी रहेगी।
पबजी के बगैर ऑनलाइन पढ़ाई
स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कारण माता-पिता बच्चों को मोबाइल फोन से दूर नहीं रख पा रहे हैं। समस्या यह थी कि ऑनलाइन क्लास कब खत्म हो गई और बच्चे कब पबजी खेलने लग गये पता नहीं चलता था। अब जब पबजी पर बैन लग गया तो बच्चों के पास क्या रह गया? पबजी को बंद किया जाना कितना बड़ा मुद्दा है यह अखबारों की हेडलाइन को देखकर समझा जा सकता है। पबजी की लत के चलते देशभर में अनेक आत्मघाती और हिंसक घटनायें होती रही हैं। इसे चीन के साथ सीमा पर तनाव से जोड़े बगैर भी बंद किया जा सकता था। सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंता, बच्चों के अवसादग्रस्त और आक्रामक होने की बातें पहले से आ रही थीं। वैसे भी यह कोरिया का ऐप है हालांकि इसमें चीनी निवेश है। कई लोग जिन्हें स्ट्राइक शब्द पसंद है वे इसे चीन के खिलाफ ‘डिजिटल स्ट्राइक’ बताने लग गये हैं। बच्चे इसी बहाने चीन की करतूत से परिचित हो गये हैं और पालक खुश कि बच्चों में इसकी लत छूटेगी। बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई को ज्यादा संजीदगी से लेंगे और मोबाइल फोन से मनोरंजन और ज्ञान के नये रास्ते निकालेंगे। लेकिन यह समझना बाकी है कि चीनी एप्प काम करना तुरंत बंद कर देंगे, या अपडेट होना बंद हो जायेगा, मौजूदा एप्प का करते रहेंगे? कई चीनी एप्प जो पहले से फ़ोन पर थे वे अब भी काम कर रहे हैं।
जेईई एग्जाम में अच्छी हाजिरी के मायने
रायपुर में जेईई एग्जाम के दूसरे दिन 84 प्रतिशत परीक्षार्थी शामिल हुए। पहले दिन 55-60 प्रतिशत प्रतियोगी शामिल हुए थे। कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए अनेक लोगों ने यह एग्जाम कम से कम एक माह और आगे बढ़ाने की मांग की थी पर सुप्रीम कोर्ट के बाद केन्द्र सरकार के हाथ में ही इसे टालना संभव था। खतरों के बीच परीक्षा देने विद्यार्थियों का पहुंचना बताता है कि उन्हें भविष्य और अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने की कितनी फिक्र है। परीक्षा केन्द्रों में तो तमाम ऐहतियात बरते भी जा रहे हैं पर प्रतिभागी ट्रेन, बसों का लॉकडाउन जारी रहने के कारण घर से परीक्षा केन्द्र तक कैसे पहुंचेंगे और कैसे वापस लौटेंगे यह बड़ी समस्या थी। राज्य सरकार ने यह समय व्यवस्था कर दी। इसके चलते बस्तर और बलरामपुर जैसे सुदूर क्षेत्रों से परीक्षार्थी एग्ज़ाम देने केन्द्रों तक पहुंच सके। इनकी मांग पर आवास और भोजन की सुविधा दी जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार के इस फैसले के बाद बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आदि राज्यों से भी इसी तरह की सुविधा देने की खबर आई है। जेईई और नीट में तो हर बार कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, पर इस बार कोरोना ने इसे थोड़ा आसान कर दिया। इसलिये नहीं कि सरल प्रश्न पूछे जा रहे हैं बल्कि इसलिये कि पिछली बार के 2.40 लाख के मुकाबले इस बार 2 लाख ही परीक्षा दे रहे हैं। इस बार बहुत से परीक्षार्थी अनुपस्थित भी हैं।
बहुत बड़े अफसर दिक्कत में...
खबर है कि राज्य के एक बहुत बड़े अफसर जल्द ही इनकम टैक्स के घेरे में आ सकते हैं। अफसर की संपत्ति का ब्यौरा लिया जा रहा है। चर्चा है कि अफसर के एक रिश्तेदार को नोटिस भी थमाया गया है। आम तौर पर अफसर जिस विभाग के हैं, वहां कभी इनकम टैक्स की नजर नहीं पड़ी। क्योंकि इनकम टैक्स और संबंधित विभाग का चोली-दामन का साथ रहता है। विपरीत हालात में इनकम टैक्स विभाग को अफसर के विभाग की जरूरत पड़ती ही है। मगर अब हालात बदल गए हैं। हल्ला है कि अगले तीन-चार महीनों में इनकम टैक्स कुछ बड़ा कर सकता है।
इस अफसर की बेनामी जायदाद की जानकारी जुटती चली जा रही है, और राज्य सरकार के कई लोग भी जानकारी में इजाफा करते जा रहे हैं. देखना है कि इनकम टैक्स विभाग कोई कार्रवाई करता है, अथवा जवाब से संतुष्ट हो जायेगा।
मरवाही में सभा-सम्मेलन और कोरोना
कोरोना का जिन जिलों में कम प्रसार हुआ है उनमें नया बना जिला गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही शामिल है। बीच-बीच में यहां एक्टिव केस की संख्या शून्य भी हो जाती है। इसके बावजूद कि लगातार सभी राजनैतिक दल मरवाही चुनाव को लेकर क्षेत्र में लगातार दौरे कर रहे हैं और सभा-सम्मेलन कर रहे हैं। खासकर जोगी के निधन के बाद होने जा रहे इस पहले चुनाव को लेकर कांग्रेस बड़ी मेहनत कर रही है। तमाम मंत्री, सांसद, संगठन प्रमुख, राज्य और जिला स्तर के पदाधिकारी यहां दौरे पर होते हैं। चाय चौपाल, पंचायती सम्मेलन जैसे आयोजन हो रहे हैं। हितग्राहियों को राशि और सामान बांटे जा रहे हैं। इन जमावड़ों के बावजूद यदि कोरोना यहां किसी हद तक नियंत्रण में है तो यह प्रशासन के लिये राहत की ही बात है, पर यदि यहां कोरोना के मामले बढ़े तो खासी दिक्कत हो जायेगी। यह सुदूर आदिवासी इलाका है। स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। आवागमन की भी दिक्कतें हैं। गंभीर मरीजों को अब भी 150 किलोमीटर सिम्स चिकित्सालय बिलासपुर लाना पड़ता है। अच्छा हो कि स्थिति बिगड़े इसके लिये प्रशासन सजग रहे। पर खुद मंत्री और सत्तारूढ़ दल के लोग भीड़ जमा कर रहे हों तो अधिकारी भी क्या करें, हाथ बंधे हुए हैं।
अचानकमार के शिकारी
‘भोले-भाले’ ग्रामीणों के साथ बुरा बर्ताव करने की शिकायत आने पर अचानकमार टाइगर रिजर्व के एक रेंजर को निलम्बित करने की घोषणा विधानसभा में की गई। वन विभाग का कहना था कि कैमरे में सुरही के ग्रामीण ट्रैप हुए थे, जो तीर धनुष लेकर जंगल जा रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि वे तो हमेशा तीर धनुष लेकर चलते हैं। रेंजर संदीप सिंह के खिलाफ शिकायत थी कि उन्होंने ग्रामीणों से मारपीट की, जबकि वन विभाग के कर्मचारी कहते हैं कि ग्रामीणों ने रेंजर से उठक बैठक लगवाई और उन पर हमला किया, जिसके कारण अस्पताल में उन्हें भर्ती भी होना पड़ा। सरकार ने जन प्रतिनिधि की बात मानी। रेंजर के निलम्बन के बाद वन विभाग के कर्मचारी, अधिकारी दुखी तो हैं, क्योंकि यहां जब भी अवैध शिकार, अवैध कटाई की वे कार्रवाई करते हैं कोई न कोई बखेड़ा खड़ा हो जाता है। राजनैतिक समर्थन तो उन्हें बिल्कुल नहीं मिलता। रेंजर के निलम्बन के बाद उनका हौसला टूट सकता था पर ऐसा हुआ नहीं। दो दिन बाद ही उन्होंने उसी सुरही रेंज में अवैध शिकार का मामला पकड़ लिया। हथियार और मांस के साथ कुछ शिकारी गिरफ्तार कर लिये गये। अब भी कुछ लोग फरार हैं। जंगल और वन्य प्राणियों को बचाने के लिये दबाव के बीच अगर कुछ लोग ईमानदारी से काम कर रहे हैं तो उन्हें साथ दिया जाना चाहिये।
लता की अधिकारिक जीवनी का अनुवाद किया राज्य के पत्रकार ने
विख्यात गायिका लता मंगेशकर की जिंदगी पर लिखी गई अंग्रेजी की पहली किताब जिसे उनकी खुद की मंजूरी थी, उसके हिन्दी अनुवाद का काम छत्तीसगढ़ के पत्रकार डी.श्यामकुमार ने किया है। भारतरत्न लता मंगेशकर पर यह किताब ब्रिटेन में बसीं एक जानीमानी पत्रकार और डाक्यूमेंट्री मेकर नसरीन मुन्नी कबीर ने लता मंगेशकर की सहमति से लिखी थी- लता इन हर ओन वॉइस। यह किताब नसरीन के दो बरस के दौर में कई बार लता मंगेशकर से की गई सीधी बातचीत पर आधारित है।
अब डी.श्यामकुमार ने इस किताब का हिन्दी अनुवाद-लता मंगेशकर अपने खुद के शब्दों में, किया है। उनका कहना है कि जब इस काम के लिए उन्हें चुना गया तो उन्हें एकबारगी भरोसा नहीं हुआ, और उन्हें कुछ संदेह भी था कि क्या वे ऐसी महत्वपूर्ण किताब का हिन्दी रूपांतरण अच्छे से कर पाएंगे। अब यह किताब प्रकाशित होकर आ चुकी है, और छत्तीसगढ़ की एक पत्रकार-अनुवादक के लिए सचमुच ही यह बड़ी कामयाबी की बात है। किताब में दी गई जानकारी के मुताबिक डी.श्यामकुमार पिछले 23 बरस से पत्रकारिता और लेखन में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में सक्रिय हैं। इन्हें राज्य शासन का पत्रकारिता अलंकरण भी मिल चुका है, और दूसरे राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
रेप के फरार आरोपी पर सरकार मेहरबान
महिला स्वास्थ्य कर्मी से रेप के आरोपी डॉ. एसएल आदिले पर स्वास्थ्य महकमा मेहरबान है। रेप का प्रकरण दर्ज होने के बाद जिस अंदाज में डॉ. आदिले के खिलाफ कार्रवाई का हल्ला मचा था, उसकी असलियत अब सामने आ रही है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने तो जोर-शोर से डॉ. आदिले को पद से हटाने का ऐलान किया। वे यही नहीं रूके, उन्होंने मीडिया से यहां तक कहा कि डॉ. आदिले के खिलाफ कई गंभीर मामले हैं, जिसकी जांच चल रही है।
दिलचस्प बात यह है कि डॉ. आदिले को हटाने का आदेश ही नहींं निकला है। विभाग ने सतर्कता बरतते हुए यह आदेश निकाला कि डीएमई की अनुपस्थिति में अतिरिक्त प्रभार रायपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. विष्णुदत्त को सौंपा गया है। रेप के आरोपी पर विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय ने सरकार के जिम्मेदार लोगों से पूछताछ की।
सुनते हैं कि उन्होंने सीएस को फोन लगा कार्रवाई को लेकर जानकारी चाही, तो सीएस ने उन्हें टका सा जवाब दे दिया कि कार्रवाई की अनुशंसा कर फाइल भेज दी गई है। स्वास्थ्य विभाग की एसीएस रेणु पिल्ले का जवाब था कि कार्रवाई प्रक्रियाधीन है, इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कह सकती हैं। रेणु पिल्ले की साख बहुत अच्छी है और उन्हें बेहद कर्मठ और ईमानदार अफसर माना जाता है। डॉ. आदिले की संविदा अवधि 30 सितंबर को खत्म हो रही है। और चर्चा है कि संविदा अवधि पूरी होने से पहले प्रभावशाली लोग उन्हें हटाने देना नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि डॉ. आदिले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
शैलेश पांडेय से कौन-कौन मिले?
छत्तीसगढ़ में राजधानी के बाद कोरोना पीडि़तों की संख्या सबसे ज्यादा बिलासपुर में हैं। एक जज के अलावा महापौर, नगर निगम सभापति, कलेक्टर, नगर निगम आयुक्त के बाद अब तो शहर विधायक शैलेश पांडेय भी इसकी चपेट में आ गये। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि खतरा उनको ज्यादा है जो अपनी ड्यूटी के कारण भीड़ में होते हैं। बाकी सब नेता तो शहर में ही रहे और कोरोना संक्रमित हो गए। विधायक का कहना है कि उनको ये वायरस विधानसभा में चिपका होगा। उन्होंने ये भी कहा है कि जो लोग उनके सम्पर्क में आये हैं वे टेस्ट करा लें। क्या मंत्री, विधायक जिनसे वे रायपुर में चार दिन रहकर मिले उनकी बात सुन रहे हैं?
नामकरण में पति-पत्नी में एका नहीं
बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू होने में अभी देर है। बस नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी के एक ट्वीट के बाद सबमें श्रेय लेने की होड़ लग गई है। अभी एयरपोर्ट का काम ना केवल अधूरा है बल्कि फंड नहीं आने के कारण रुका हुआ भी है। यदि सचमुच प्लान के मुताबिक हवाई सेवा दो माह बाद शुरू हो गई तो इसका श्रेय आम लोगों को ही जाएगा जो हाईकोर्ट से लेकर सडक तक लडाई लड़ते आ रहे हैं।
बिलासपुर में अब कुछ दिनों से एक नई बहस शुरू हो गई है कि एअरपोर्ट किसके नाम से हो। प्रसिद्ध रतनपुर महामाया मंदिर की ट्रस्ट कमेटी ने महामाया का नाम सुझाते हुए सीएम को पत्र लिखा है। इधर जिले के दोनों कांग्रेस विधायक विधानसभा में अशासकीय संकल्प पेश कर चुके हैं कि इसे बिलासा का नाम दिया जाये। दोनों ही नाम बिलासपुर की पहचान हैं, ऐसे में इनमें से कोई एक नाम तय करना मुश्किल है। दिलचस्प यह भी है कि महमाया ट्रस्ट कमेटी के चेयरमैन विधायक रश्मि सिंह के पति हैं। दौनों का प्रस्ताव अलग-अलग है। वैसे आम लोग इस बात से हैरान हैं कि बिलासपुर से आखिर भोपाल के लिए फ्लाइट क्यों शुरूकी जा रही है, जबकि मांग तो दूसरे बड़े शहरों के लिए थी।
अस्पताल में उम्मीद से...
प्रदेश के कई अफसर-नेता कोरोना संक्रमित हो गए हैं। सभी का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। एम्स में तो न सिर्फ रायपुर बल्कि दूसरे जिले के कई नेता एडमिट हैं। इन सभी की हालत भी ठीक है। कांग्रेस के नेताओं में दौलत रोहरा, शारिक रईस खान, शांतनु और एनएसयूआई अध्यक्ष आकाश शर्मा सहित कई अन्य का इलाज चल रहा है। कांग्रेस के नेता आपस में एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं और मोबाइल से घंटों एक-दूसरे से बतियाते हैं। अब निगम-मंडलों की दूसरी सूची जारी होनी है। ऐसे में सूची के नामों को लेकर ही ज्यादा चर्चा होती है। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी नेता निगम-मंडल के दावेदार भी हैं। खुद सीएम और अन्य बड़े नेता भी उनका कुशलक्षेम पूछ चुके हैं। अस्पताल से तो देर सवेर छुट्टी हो जाएगी, ऐसे में आगे को लेकर सोचना गलत भी नहीं है।
महिला अफसर हटाने में लगे विधायक...
विपक्ष के एक प्रमुख विधायक अपने इलाके की महिला डीएफओ को हटाने के अभियान में जुटे हैं। डीएफओ की छवि साफ-सुथरी और तेजतर्रार अफसर की है। वे छत्तीसगढिय़ा भी हैं। वे बिना किसी दबाव के अपने इलाके में अवैध गतिविधियों के खिलाफ सख्त अभियान चला भी रहीं हैं। मगर यह सब विधायक को रास नहीं आ रहा है। दरअसल, विधायक महोदय चाहते हैं कि उनके इलाके में किसी तरह के अभियान शुरू करने से पहले उन्हें विश्वास में लिया जाए।
इससे पहले के डीएफओ इस तरह की परम्परा निर्वाह करते थे, लेकिन महिला डीएफओ बिना किसी भेदभाव के वन कानून तोडऩे वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं। इलाके में सालभर से अधिक हो गया है, लेकिन उन्होंने विधायक को पूछा तक नहीं। इससे विधायक खफा हैं। कई बार अच्छे काम पर भी शिकवा-शिकायतें होती रहती हैं। कुछ ऐसा ही महिला डीएफओ के साथ हो रहा है। ये अलग बात है कि सरकार ने अभी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया है। क्योंकि अच्छे काम के बावजूद अचानक तबादले से अफसरों-कर्मियों के मनोबल पर असर पड़ता है।
भूतपूर्व पुलिस की बददिमागी!
लोगों को कानून तोडऩे की कीमत पर भी अटपटा काम करना सुहाता है। और खासकर तब जब पुलिस इन पर तगड़ा जुर्माना न करती हो, तब तो यह अटपटापन स्थायी हो जाता है। आज सुबह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में दिखी यह गाड़ी नंबर प्लेट से कुछ ऐसा बता रही है कि यह भूतपूर्व छत्तीसगढ़ पुलिस की गाड़ी है। नंबर प्लेट पर तो वर्तमान को भी लिखने की छूट नहीं है, लेकिन यह भूतपूर्व होने के साथ-साथ नियमों के खिलाफ नंबर प्लेट पर लिखा गया दावा है। सब कुछ हिन्दी में, अक्षर भी, और अंक भी। अब यह सुबूत पुलिस के सामने है, देखें कि वह अपने इस भूतपूर्व साथी का क्या करती है।
फेसबुक पर दर्द छलका...
श्रीचंद सुंदरानी के शहर जिला की कमान संभालते ही भाजपा में जंग शुरू हो गई है। सुंदरानी के पूर्ववर्ती राजीव अग्रवाल ने शंकर नगर मंडल की कार्यकारिणी को मंजूरी क्या दी, सुंदरानी समर्थक खफा हैं। सुंदरानी ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन मीडिया के जरिए छोटी सी बात को लेकर विवाद खड़ा करने से राजीव अग्रवाल खफा हैं। उन्होंने फेसबुक के जरिए अपना दर्द और गुस्सा जाहिर किया। भाजपा की गुटीय राजनीति में वैसे भी श्रीचंद और राजीव अग्रवाल एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं।
राजीव ने किसी का नाम तो नहीं लिखा, लेकिन इसको श्रीचंद के खिलाफ माना जा रहा है। राजीव अग्रवाल ने लिखा है-अगर कोई व्यक्ति आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो वह इस बात को अवश्य जानता है कि वह आप से कमजोर है। इसलिए अपनी कमियों को छुपाने के लिए वह हमें नीचा दिखाना चाहता है, ताकि वह कुछ देर के लिए अपने आपको संतुष्ट कर सके। ऐसे लोग हमारे समाज में भरे पड़े हैं जिनका काम सिर्फ दूसरों की बुराई करना एवं उन्हें नीचा दिखाना होता है। इससे उनके मन को शांति मिलती है। भगवान उन्हें बुद्धि प्रदान करें। संकेत है कि आने वाले दिनों में विवाद और बढ़ सकता है।
कोरोना की नौबत गंभीर, लोग नहीं...
अब छत्तीसगढ़ में कोरोना देश में शायद सबसे अधिक रफ्तार से बढ़ते जा रहा है। अब तक जांच कम हो रही थीं, तो लोग नावाकिफ रहते हुए दूसरों को प्रसाद बांट रहे थे, और खुद ठीक हो जा रहे थे। जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी, कोरोना उनके सिर पर चढक़र बोलता था, और जांच में वे पॉजिटिव निकलते थे। लेकिन बहुत से मामलों में जिससे उन्हें कोरोना मिला, वे बिना पकड़े रह जाते थे।
अब जब कोरोना छलांग लगा-लगाकर बढ़ रहा है, जिस तरह से चीन से आई हुईं रबर की रंगीन गेंदें जो कि कोरोना जैसी दिखती हैं, उछल-उछलकर दूर तक टप्पे खाती हैं, उसी तरह कोरोना फैल रहा है। अब लोग अस्पताल की सोच रहे हैं, खर्च की सोच रहे हैं, बिस्तर खत्म हो रहे हैं, और लोगों के खत्म होने की गिनती भी बढ़ती चल रही है। शहर के एक नामी-गिरामी और महंगे अस्पताल, जो कि शहर से थोड़ा परे कमल विहार के पास है, उसमें कोरोना मरीज से किस तरह पांच लाख रूपए ले लिए गए, और डॉक्टर देखने तक नहीं आए, इसका एक ऑडियो तैर रहा है। वॉट्सऐप पर मिले इस ऑडियो में बहुत सी बातचीत छापने लायक भी नहीं है, लेकिन कोरोना मरीज रहते हुए किसी ने अगर अस्पताल को, डॉक्टरों को मां-बहन की गालियां दी हैं, तो उस पर सभी को सोचना चाहिए।
आज ही उत्तरप्रदेश का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वहां की एक सरकारीकर्मी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बरामदे में बैठी है, और वहीं पर उसे ऑक्सीजन दिया जा रहा है क्योंकि अस्पताल में कोई बिस्तर खाली नहीं है, और वहीं पर उसके मर जाने की बात भी वीडियो में कही गई है। छत्तीसगढ़ में लोगों को अगर अब तक यह समझ नहीं आ रहा है कि उनकी जिंदगी पर सचमुच का एक खतरा मंडरा रहा है, तो कम से कम उन्हें कॉल कनेक्ट होने के पहले की सरकारी घोषणा सुन लेना चाहिए कि उसी हालत में बाहर निकलें जब निकलना बहुत जरूरी हो। आज छत्तीसगढ़ में बड़े लोगों की मिसालों का इस्तेमाल करके आम लोग धड़ल्ले से भीड़ बना रहे हैं, मजे से बिना मास्क घूम रहे हैं। इन लोगों को यह भी समझना चाहिए कि अब एक-एक घर से पांच-दस लोग भी पॉजिटिव निकल रहे हैं, और अधिक वक्त नहीं है कि यहां भी बरामदे में फर्श पर बिठाकर ऑक्सीजन दिया जाएगा।
कांग्रेस के विकल्पहीन लोग...
प्रदेश कांग्रेस संगठन में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है। खुद प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम कह चुके हैं कि संगठन में अहम पदों पर काबिज कुछ नेताओं को निगम-मंडलों में दायित्व सौंपा गया है। ऐसे नेताओं को संगठन के दायित्व से मुक्त कर किसी दूसरे को जिम्मेदारी दी जाएगी। वैसे तो मरकाम ने किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन पार्टी हल्कों में चर्चा है कि गिरीश देवांगन, रामगोपाल अग्रवाल और शैलेष नितिन त्रिवेदी का विकल्प ढूंढा जा रहा है। मगर वस्तुस्थिति इससे अलग है।
गिरीश खनिज निगम के चेयरमैन का दायित्व संभाल रहे हैं, साथ ही उन पर जिलों में पार्टी दफ्तर बनवाने की जिम्मेदारी भी है। उन्हें राजीव भवन बनवाने का अनुभव है। ऐसे में उनकी जगह किसी और को जिम्मेदारी दी जाएगी, इसकी संभावना कम है। कुछ इसी तरह की स्थिति रामगोपाल अग्रवाल की भी है। रामगोपाल पार्टी का कोष संभालते हैं और सबसे ज्यादा टर्नओवर वाले नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन भी हैं।
रामगोपाल की खासियत यह है कि विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी को संसाधनों की कमी नहीं होने दी। सुनते हैं कि एक बार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी के दौरे के समय डेढ़ करोड़ की जरूरत पड़ गई थी। उन्होंने एक दूसरे राजनीतिक दल के दफ्तर से राशि मंगवाकर जरूरतों को पूरा किया। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि रामगोपाल का विकल्प सिर्फ रामगोपाल ही हैं। कुछ इसी तरह की शख्सियत शैलेष नितिन त्रिवेदी की है। वे पाठ्य पुस्तक निगम चेयरमैन के साथ-साथ संचार विभाग का दायित्व बखूबी संभाल रहे हैं। ये अलग बात है कि कई और नेता उनकी जगह लेने को उत्सुक हैं, और इसके लिए भरपूर मेहनत भी कर रहे हैं। शैलेश ने कांग्रेस की विचारधारा को जितने अच्छे से समझा है, और जितने अच्छे से वे मीडिया के सामने बोल सकते हैं, वैसे लोग कम ही हैं।
दो दिन पहले संचार विभाग के ताला लगा हुआ दफ्तर का फोटो मोहन मरकाम को भेज दिया गया। उन्हें बताया गया कि मीडिया वाले बाइट लेने आने वाले हैं, लेकिन संचार विभाग के दफ्तर में ताला लगा हुआ है। मरकाम उस समय विधानसभा में थे। उन्होंने तुरंत शैलेष से बात की, शैलेष उस समय पापुनि दफ्तर में थे। शैलेष मीडियावालों के पहुंचने के पहले ही बाइट देने के लिए हाजिर हो गए। ऐसी तत्परता का विकल्प ढूंढना कठिन है।
डिमांड के पहले सप्लाई के खतरे...
सरकार के एक विभाग ने अपने यहां संचालित योजनाओं में पारदर्शिता के बढ़-चढ़कर दावे किए। अफसरों का सुझाव था, कि पारदर्शिता के लिए संस्थान के अधीन सरकारी दूकानों में कैमरे लगवाए जाने चाहिए। फिर क्या था, सप्लायर दौड़ पड़े। एक को काम मिल गया और उन्होंने सभी जगह कैमरे लगवा दिए और बिल पास होने की प्रत्याशा में साढ़े सात फीसदी राशि ऊपर छोड़ आए। बिल विभाग में पहुंचा, तो पता चला कि वर्क ऑर्डर ही नहीं किया गया है। फाइल ज्यों की त्यों पड़ी है, क्योंकि जिन्हें हिस्सा मिलना था वे अब इसमें रूचि नहीं ले रहे हैं। अब हाल यह है कि सप्लायर महीनेभर से इधर-उधर भटक रहा है, लेकिन अभी तक हाथ कुछ नहीं आया है।
जो जीता वही सिकंदर
आखिरकार पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी को शहर जिले की कमान सौंप दी गई। पूर्व सीएम रमन सिंह की पसंद पर श्रीचंद के नाम पर मुहर लगी। श्रीचंद का नाम तय कराने में पूर्व मंत्री राजेश मूणत की अहम भूमिका रही है। जबकि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सांसद सुनील सोनी, पार्षद रमेश सिंह ठाकुर अथवा जयंती पटेल को अध्यक्ष बनाने की कोशिश में थे। रमन सिंह और सौदान सिंह की जोड़ी ने सच्चिदानंद उपासने जैसे संगठन के बड़े नेताओं को भी झटका दिया है, जो पिछले कई दिनों से पार्टी नेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर आग उगल रहे थे।
उपासने और श्रीचंद के बीच तो खुले तौर पर वाकयुद्ध चल रहा था। श्रीचंद के नाम की घोषणा के बाद पार्टी में अंदरूनी खींचतान बढ़ गई है। सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता ने सीधे केन्द्रीय नेतृत्व को फोन कर श्रीचंद की नियुक्ति से पहले किसी तरह की रायशुमारी नहीं करने की शिकायत की। कुल मिलाकर रमन और सौदान की जोड़ी एक बार फिर असंतुष्टों के निशाने पर आ गई है। अब देखना है आगे-आगे होता है क्या? फिलहाल तो जो जीता वही सिकंदर।
अपर हाउस का दबदबा
प्रदेश भाजपा में लोकसभा सदस्यों के बजाए राज्यसभा सदस्यों को ज्यादा तवज्जो मिल रही है। कम से कम जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से तो यही लगता है। इससे परे राज्यसभा सदस्य सुश्री सरोज पाण्डेय और रामविचार नेताम अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे हैं।
रामविचार अपने करीबी गोपाल मिश्रा को बलरामपुर का जिलाध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। जबकि आरएसएस और स्थानीय बड़े नेताओं ने ओमप्रकाश जायसवाल का नाम सुझाया था। जायसवाल को जिला महामंत्री बनाकर संतुष्ट किया गया। सरोज के समर्थक तो पूरे मंडलों में छा गए हैं। यह करीब-करीब तय माना जा रहा है कि दुर्ग और भिलाई के जिलाध्यक्षों के चयन में भी उनकी राय को महत्व मिलेगा।
भाजपा के नौ लोकसभा सदस्यों का हाल देखिए, केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह तो अपने गृह जिले सूरजपुर में भी पसंद का अध्यक्ष नहीं बनवा पाईं। यही हाल मोहन मंडावी का रहा। मोहन की जगह विक्रम उसेंडी की पसंद पर कांकेर जिलाध्यक्ष का नाम तय किया गया। इसी तरह बिलासपुर में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की पसंद पर अध्यक्ष और बाकी पदाधिकारियों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की चली है।
रायगढ़ और जशपुर में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय की चलनी ही थी। रायपुर के जुझारू सांसद सुनील सोनी और आरएसएस के पसंदीदा माने जाने वाले संतोष पाण्डेय भी अपने संसदीय क्षेत्र के जिलों के अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया में कहीं नजर नहीं आए। कुल मिलाकर निर्वाचित भाजपा सांसद मायूस बताए जा रहे हैं।
ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में राज्य सभा को उच्च सदन कहा जाता है, यहां वह उच्च साबित हो भी रहा है।
सरकार की जांच क्षमता, और ठगी
जैसे-जैसे फोन स्मार्टफोन होते जा रहे हैं, टीवी स्मार्टटीवी होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे तरह-तरह की जालसाजी भी बढ़ रही है, और यह साबित हो रहा है कि इंसानों के ये औजार ही स्मार्ट हो रहे हैं, इंसान खुद स्मार्ट नहीं हो रहे हैं।
अब जालसाज आए दिन लोगों के नंबर जुटाकर उन्हें तरह-तरह के झांसे के मैसेज भेजते हैं। जिन्होंने किसी कर्ज की अर्जी नहीं दी है, उन्हें भी कर्ज मंजूर होने का संदेश आता है और साथ में एक लिंक भी आता है जो कि जाल में फंसने का एक न्यौता रहता है।
अब सवाल यह है कि झारखंड के गांव जामताड़ा जैसी जगहें देश भर में साइबर-ठगी के लिए इतनी कुख्यात हो गई हैं कि वहां मानो पूरा गांव ही ठगी में लगा है। ऐसे में सरकार अपनी सारी जांच की क्षमता के चलते हुए भी संगठित अपराध पर काबू नहीं पा रही है। एक-एक टेलीफोन नंबर से रोज सैकड़ों लोगों को फोन करके कोई ईनाम मिलने की खबर देकर ठगते हैं, तो कोई बैंक एटीएम का नंबर या पासवर्ड पूछकर ठगते हैं, और सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं कर पातीं। सरकार की तकनीकी क्षमता के बावजूद रात-दिन ऐसी ठगी चलना हैरान करता है क्योंकि टेलीफोन और सिमकार्ड से लोगों की लोकेशन भी आसानी से पता लग जाती है, फिर ऐसे जुर्म करने वाले जालसाजों की ही क्यों खबर नहीं होती?
आज सुबह ही इस अखबार के संपादक को जालसाजी का ऐसा न्यौता मिला। अब यह संदेश तो बताता है कि यह बल्क एसएमएस तकनीक से भेजा गया है, सरकार की जांच सीमा के भीतर ऐसी जालसाजी थोक में हो रही है।
सूखी जगह की तलाश में...
बारिश का वक्त जानवरों के लिए खासी मुश्किल का होता है। वे गीली जगह पर बैठ नहीं पाते, और सूखी जगह बचती नहीं है। इसी के चलते गाय, सांड सडक़ों पर बैठे दिखते हैं जहां से पानी सूख चुका रहता है। दूसरी तरफ बिलासपुर के फोटोग्राफर सत्यप्रकाश पांडेय को एक ऑटोरिक्शा में बैठे ये कुत्ते दिखे, जब तक ऑटो मालिक आ जाए, तब तक तो एक सूखी जगह हासिल है ही।
गालियां नोट कर लेना...
विधानसभा सत्र के पहले दिन दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी को श्रद्धांजलि दी गई। और सत्ता व विपक्ष के कई सदस्यों ने उनसे जुड़े संस्मरण भी सुनाए। संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे ने उनके मुख्यमंत्रित्वकाल की कुछ घटनाओं को याद किया। चौबे ने कहा कि वे उस समय संसदीय कार्यमंत्री थे। तब विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाया। उस समय विपक्ष आज से थोड़ा ज्यादा ताकतवर था।
जोगीजी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया, तो उन्होंने कहा कि हम खुद सदन की कार्रवाई का बहिष्कार करेंगे। मैंने कहा आप कैसे बहिष्कार कर देंगे? अविश्वास प्रस्ताव का सामना तो करना पड़ता है। जोगीजी ने कहा सामना करना पड़ता है ये सामूहिक जिम्मेदारी है। आप संसदीय कार्यमंत्री हो, आप अपनी जगह बैठना। मैंने कहा कि मैं अकेले कैसे बैठूंगा, मुझे पानी पीने भी जाना पड़ सकता है। उस समय रामलाल भारद्वाज कांग्रेस विधायक दल के सचेतक हुआ करते थे। जोगी ने कहा कि भारद्वाज को भी साथ रख लिए रहना। सारे सदन में उस समय सीएम जोगी सहित पूरी सरकार सदन से बाहर थी।
चौबे ने बताया कि विपक्षी सदस्य पता नहीं कितना पढक़र आए थे। पूरे छत्तीसगढ़ी के शब्दों में, मुहावरों में गालियां हुआ करती थीं। मैंने अपने जीवन में पहली बार इतना सुना था। सारे विपक्ष के लोगों ने सुबह साढ़े 10 बजे विधानसभा शुरू हुई थी और रात्रि ढाई-पौने 3 बजे तक नंदकुमार साय से लेकर आखिरी मोर्चे तक हर कोई गाली देते रहा। मैं यहां बैठा सुनता रहा। मैंने जोगीजी से पूछा कि इनकी खाली गाली सुनना भर है? तो वह बोले की उसको नोट भी कर लेना। चौबे ने कहा कि अब गाली को मैं कैसे नोट करता। मगर जोगीजी में क्षमता थी।
छोटा सा रोजगार...
सडक़ किनारे वजन की मशीन लेकर बैठे लोग जमाने से रोजी-रोटी कमाते आए हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक भूतपूर्व आईएएस अफसर और भाजपा के एक विधानसभा उम्मीदवार रहे ओ.पी. चौधरी ने सुबह की सैर के वक्त खींची फोटो पोस्ट की है कि रोजी कमाने की बहुत से तरकीबें ढूंढी जा सकती हैं। अब तस्वीर से तो यह बच्ची अपनी मां के साथ बैठी दिख रही है, इन दिनों शहरों में संपन्नता के चलते घर-घर वजन की मशीन रहने लगी है, फिर भी सुबह की सैर के जागरूक लोग अपना वजन तो जांच ही सकते हैं। हजार रूपए के आसपास की ऐसी मशीन किसी को रोजगार दे सकती है, ऐसा सोचकर भाजपा के कार्यकर्ता नरेन्द्र शर्मा ने इन्हें यह मशीन और बोर्ड दिलवाकर यहां बिठाया और स्वरोजगार की एक संभावना पैदा की।
निहारिका की जगह रेणु?
स्वास्थ्य सचिव सुश्री निहारिका बारिक सिंह अगले हफ्ते दो साल की छुट्टी पर जा रही हैं। निहारिका के जाने के बाद छोटा सा प्रशासनिक फेरबदल होगा। कोरोना संक्रमण के चलते स्वास्थ्य महकमा काफी अहम हो चला है। हालांकि दो महीने पहले ही निहारिका से चिकित्सा शिक्षा विभाग लेकर एसीएस रेणु पिल्ले को दे दिया गया था। चर्चा है कि स्वास्थ्य महकमा भी रेणु पिल्ले को सौंपा जा सकता है। रेणु पिल्लै की साख अच्छी है और काफी मेहनती भी हैं। ऐसे में रेणु को कोरोना से निपटने की जिम्मेदारी दी जाती है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वे वैसे भी चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रमुख के नाते आधा काम देख ही रही थीं।
निहारिका के पति जयदीप सिंह इंटेलिजेंस ब्यूरो के सीनियर अफसर हैं, और उन्हें जर्मनी में भारतीय दूतावास पोस्ट किया गया है. फि़लहाल वे दिल्ली में हैं और एक पखवाड़े बाद जर्मनी रवाना होने वाले हैं।
लेट पोस्टिंग
कोरोना के दौर में स्वास्थ्य विभाग में अहम नियुक्तियों में देरी की काफी चर्चा हो रही है। मसलन, डायरेक्टर महामारी का पद दो महीने से खाली पड़ा था। कई बार फाइल चली। आखिरकार नेत्र विशेषज्ञ डॉ. सुभाष मिश्रा को डायरेक्टर महामारी बनाया गया। इसी तरह डॉ. एसएल आदिले को हटाने के बाद से डीएमई का पद खाली है। डॉ. आदिले रेप के आरोप के बाद से फरार हैं। गंभीर आरोपों के बाद भी उन्हें संविदा नियुक्ति दे दी गई थी। अब जब वे हट गए हैं, उनकी जगह नई पदस्थापना में देरी समझ से परे है।
अब फिर एक साथ !
राज्य पुलिस सेवा के डेढ़ दर्जन अफसर इधर से उधर किए गए। इस तबादले में सबसे ज्यादा चर्चा वायपी सिंह की हो रही है, जिन्हें पीएचक्यू से हटाकर बीजापुर पोस्टिंग की गई है। वैसे तो वायपी सिंह बीएसएफ के अफसर थे और उनकी पोस्टिंग राजनांदगांव में हुई थी। पांच साल के भीतर उनका छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग में संविलियन हो गया। उन्हें 97 बैच आबंटित किया गया।
पिछली सरकार में राज्य पुलिस सेवा के अफसरों ने इसका विरोध भी किया क्योंकि वे राज्य पुलिस सेवा में आते ही आईपीएस अवार्ड के लिए पात्र हो गए। मगर वायपी सिंह के पैरोकारों ने उन्हें नक्सल मोर्चे पर बेहतर काम करने वाले अफसर के रूप में प्रचारित किया। चूंकि उपनाम सिंह भी था इसलिए राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के विरोध का कोई बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ, लेकिन अब सरकार बदल दी गई है। वायपी सिंह को धुर नक्सल प्रभावित जिले बीजापुर में भेजा गया है।
एक संयोग यह भी है कि बीजापुर के मौजूदा एसपी कमल लोचन कश्यप और वायपी सिंह, दोनों ही राजनांदगांव में काम कर चुके हैं। चर्चा तो यह भी है कि दोनों के बीच बोलचाल तक नहीं थी। खैर, अब वायपी सिंह को कमल लोचन के अधीन नक्सल मोर्चे पर जौहर दिखाना होगा। विभाग के कुछ लोग चुटकी ले रहे हैं कि वायपी सिंह के काम का सही मूल्यांकन अब होगा।
पीएचक्यू की भैंस गई पानी में...
पुलिस विभाग में सबसे बड़े कुछ अफसरों के प्रमोशन पर राहू-केतू की मिलीजुली दशा चलती दिख रही है। एडीजी से डीजी बनाने की एक और मीटिंग पिछले दिनों हुई, जिसमें डीजीपी डी.एम.अवस्थी के विरोध के बाद मामला गड्ढे में चले गया। दरअसल यह पूरा सिलसिला निलंबित चल रहे एडीजी मुकेश गुप्ता की वजह से खटाई में पड़ा हुआ है। सरकार मुकेश गुप्ता को किसी भी हाल में प्रमोशन देना नहीं चाहती क्योंकि उनके खिलाफ कई मामलों की जांच चल रही है, मामले अदालत में भी गए हुए हैं। ऐसे में पता लगा है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी वकील से ली गई सलाह यह थी कि प्रमोशन किया जा सकता है, और मुकेश गुप्ता के बारे में जो भी तय हो, उनका लिफाफा बंद रखा जाए, और जब उनके बारे में फैसला हो जाए तब लिफाफा खोला जाए, और डीपीसी की जो सिफारिश उनके बारे में हो उसे माना जाए। ऐसा पता लगा है कि अवस्थी ने यह बात सामने रखी कि किसी प्रमोशन के खिलाफ मुकेश गुप्ता ने अदालत से स्टे ले रखा है, और प्रमोशन करना अदालत के आदेश के खिलाफ होगा। अभी कोई अफसर इस बारे में खुलकर कुछ कहने को तैयार नहीं हैं।
लेकिन डी.एम. अवस्थी आज अकेले डीजीपी बने हुए हैं, और यह नौबत उनके लिए निजी रूप से बहुत अच्छी है। अब संजय पिल्ले, आर.के.विज, केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए हुए रवि सिन्हा, और अशोक जुनेजा के दिन ही नहीं फिर पा रहे हैं। अगर यह मीटिंग हो जाती, तो राज्य में कुछ और डीजीपी स्तर के अफसर बन जाते। अब कमेटी के भीतर क्या बातें हुईं, यह तो नहीं मालूम लेकिन फिलहाल तो भैंस पानी में चली गई है, और वह कब निकलेगी इसका कोई ठिकाना नहीं है।
दुबली पार्टी पर मैसेज की मार...
सच्चिदानंद उपासने के बाद वाट्सएप ग्रुप में भाजपा के एक पुराने नेता ने सौदान सिंह, रमन सिंह की कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाज उठाई, तो नाराज कार्यकर्ताओं ने मैसेज को हाथों-हाथ लिया। यह मैसेज पूरे प्रदेशभर में वायरल हो रहा है। दिलचस्प बात यह है कि मैसेज को फैलाने में पार्टी के बड़े नेता भी पीछे नहीं हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि इस मैसेज को हजारों लोग देख चुके हैं।
वायरल मैसेज में यह कहा गया कि वर्ष-2013 से 18 तक प्रदेश में भाजपा के नाम पर जो सरकार बनी थी, उसमें भ्रष्टाचार चरम सीमा पर था। जनता और आम कार्यकर्ता जानते हैं कि किस-किस ने अपार संपत्ति अर्जित की और भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया। यह सबके सामने है। इसकी पुनर्रावृत्ति न हो, इस बात को ध्यान में रखकर पार्टी हित में खुलकर उपरोक्त बातों को रखा जाए, तभी हमारा और पार्टी का अस्तित्व है। यह भी लिखा गया आप चुप रहेंगे, डरेंगे, तो गलत लोग जिले से लेकर प्रदेश तक हावी हो जाएंगे। वर्तमान में ऐसे लोग हावी हो गए हैं, जिसका नुकसान पार्टी को लगातार उठाना पड़ रहा है।
एक अन्य मैसेज में तीजा के मौके पर रमन सिंह के अखबारों में विज्ञापन पर भी कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की गई। विज्ञापन में सिर्फ रमन सिंह की तस्वीर थी और भाजपा का चुनाव चिन्ह था। इसमें प्रदेश अध्यक्ष का फोटो नहीं डाला गया। भाजपा नेता ने वाट्सएप ग्रुप में लिखा कि रमन सिंह यह साबित करने की कोशिश में लगे हैं कि उनके बिना पार्टी का प्रदेश में कोई अस्तित्व नहीं है। कुछ इसी तरह की राय दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की भी थी। जोगी खुले तौर पर कहते थे कि कांग्रेस के बिना जोगी नहीं, और जोगी के बिना कांग्रेस नहीं। मगर जोगी के बिना कांग्रेस रिकॉर्ड विधायकों के साथ सत्ता में आई। नेताजी ने सलाह दी कि रमन सिंह को ऐसी कोशिश से बचना चाहिए। क्योंकि विधानसभा, निकाय और पंचायत चुनाव का हाल सबके सामने है। मजे की बात यह है कि पार्टी के जो असंतुष्ट नेता खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे हैं, वे इस तरह के मैसेज को फैलाकर समर्थन कर रहे हैं।
काम करते पॉजिटिव, ठीक होकर फिर...
वैसे तो प्रदेश में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। मगर संक्रमण ढूंढने, इलाज के लिए कोरोना वारियर्स जितनी जोखिम उठाकर मेहनत कर रहे हैं, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। कुछ कोरोना वारियर्स का स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सम्मान भी किया गया। इन्हीं में से एक अंबेडकर अस्पताल के लैब असिस्टेंट प्रदीप बोगी भी हैं। अस्पताल में कोरोना की जांच के लिए लैब शुरू हुआ था तो प्रदीप को इंचार्ज बनाया गया। वे अलग-अलग स्थानों से सैंपल लेकर खुद आते थे और फिर लैब में जांच सहयोग करते थे। तब उनके पास स्तरीय मास्क भी नहीं था। एक बार तो सैंपल लेकर अंबेडकर अस्पताल जा रहे थे तो उनकी गाड़ी का चालान कर दिया गया।
तब सीएमओ ने खुद वहां पहुंचकर प्रदीप की गाड़ी का चालान पटाया। पुलिस कर्मियों ने उनका यह कहकर चालान कर दिया था कि उन्होंने हेलमेट नहीं पहना है। बाद में पुलिस कर्मियों के इस व्यवहार की स्वास्थ्य मंत्री और डीजीपी तक शिकायत हुई थी। पुलिस कर्मियों को मामूली डांट-फटकार के बाद छोड़ दिया गया। बाद में प्रदीप खुद संक्रमित हो गए। इलाज के बाद ठीक भी हो गए और वे फिर से जोखिम उठाकर कोरोना संदिग्ध के सैंपल की जांच में जुटे हैं। इसकी काफी सराहना भी हो रही है।
लखेश्वर बघेल से सीखें...
कुछ जनप्रतिनिधियों ने भी बिना प्रचार के जन जागरूकता फैलाने और लोगों को सेहतमंद बनाने की दिशा में अच्छा काम किया है। इन्हीं में से एक लखेश्वर बघेल भी हैं, जो कि बस्तर के विधायक हैं और बस्तर आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी हैं। लखेश्वर ने अपने पूरे विधानसभा क्षेत्र में आदिवासियों को काढ़ा वितरित कराया। लोगों को कोरोना से लडऩे के लिए इम्युनिटी मजबूत रहे, इसके लिए काफी काम किया है। इसकी भी काफी सराहना हो रही है। जबकि कई अरबपति जनप्रतिनिधि तो कुछ मोहल्लों में कपड़े का मास्क बंटवाकर मीडिया में इतनी जगह पा चुके हैं कि मानो कोरोना के खिलाफ लड़ाई उन्हीं की अगुवाई में लड़ी जा रही है। ऐसे नेताओं को लखेश्वर बघेल जैसों से सीख लेनी चाहिए।
अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है...
कवर्धा में होमगार्ड भवन के लिए आरक्षित जमीन पर कांग्रेस भवन के निर्माण-भूमिपूजन के पूर्व सीएम रमन सिंह के आरोपों पर कांग्रेस ने तीखा पलटवार किया है। सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर ने पहले तो रमन सिंह के आरोपों को तथ्यहीन और गुमराह करने वाला बताया। वे यही नहीं रूके, उन्होंने रमन सिंह से ही पूछ लिया कि रमन सिंह अपने मकान से सटी सरकारी जमीन पर किए गए कब्जे पर कुछ क्यों नहीं कहना चाहते। कांग्रेस के लोग बताते हैं कि रमन सिंह-परिवार ने मंडी की कुछ जमीन को घेरा हुआ है। बात अब आगे बढ़ चुकी है। कांग्रेस अब इस पर भाजपा को ही घेरने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस के कुछ लोगों ने भाजपा दफ्तर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर की जमीन के दस्तावेज निकाले हैं, और इसमें भारी गड़बड़ी का दावा किया जा रहा है।
बताते हैं कि डुमरतराई स्थित कुशाभाऊ ठाकरे परिसर करीब पांच एकड़ जमीन में फैला हुआ है। इसमें से एक एकड़ जमीन धमतरी के एक दवा कारोबारी की थी। सुनते हैं कि दवा कारोबारी से जमीन की अदला-बदली की गई। रमन सरकार ने दवा कारोबारी को बदले में एक एकड़ से अधिक सरकारी जमीन आबंटित कर दी। बात यहीं खत्म नहीं हुई। हाउसिंग बोर्ड की जमीन को भी दफ्तर तक जाने के लिए ले लिया गया। जानकार लोग बताते हैं कि उस समय के हाउसिंग बोर्ड अध्यक्ष इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन बाद में वे खामोश हो गए। अब जमीन से जुड़े सारे दस्तावेज निकाले गए हैं, और अब रमन सिंह-भाजपा पर तीखा पलटवार की तैयारी है। उत्साही कांग्रेसी कह रहे हैं कि रमन सिंह ने बर्रे के छत्ते में हाथ डाल दिया है। वाकई में ऐसा कुछ है, यह देखना है।
नए नेता और घाघ अफसर...
छत्तीसगढ़ के निगम-मंडलों में बहुत से नेताओं को लीडरशिप मिल गई है, लेकिन जो लोग पहली बार सरकारी कामकाज में आए हैं उनमें से अधिकतर को निगम-मंडल के और विभाग के अधिकारी घुमा रहे हैं। किसी को बताया जा रहा है कि उनके दफ्तर की साज-सज्जा का कोई बजट नहीं है, किसी को बताया जा रहा है कि उनके लिए कोई नई कार नहीं ली जा सकती, कोई अपने पसंद का पीए रखना चाहते हैं, तो उसके खिलाफ नियम गिना दिए जा रहे हैं। यहां पर नेताओं की दबंगई काम आती है, या फिर मुख्यमंत्री तक उनकी सीधी पहुंच से अफसर वाकिफ हों, तो अफसर दबते हैं। आने वाले दिनों में तालमेल ठीक बैठने लगेगा, लेकिन तब तक मनोनीत नेता कुछ खिन्न घूम रहे हैं।
कोरोना से अधिक जांच से डर...
छत्तीसगढ़ में कोरोना तेजी से फैल रहा है, लेकिन कोरोना टेस्ट कराने से विधायक ना-नुकुर कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने 23 तारीख को विधानसभा में सभी विधायकों का कोरोना टेस्ट कराने की व्यवस्था की थी। मगर अब यह स्थगित कर दिया गया है। वजह यह है कि ज्यादातर विधायक कोरोना टेस्ट कराने से मना कर रहे हैं।
यही नहीं, सभी विधानसभा अधिकारी-कर्मचारियों को भी कोरोना टेस्ट कराने की व्यवस्था की गई थी। मगर 12 अधिकारी-कर्मचारियों ने ही इसमें रूचि दिखाई। आखिरकार कोरोना टेस्ट कराने का फैसला ही टाल दिया गया। खास बात यह है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, दलेश्वर साहू और शिवरतन शर्मा कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। कौशिक और दलेश्वर तो ठीक हो चुके हैं, लेकिन शिवरतन अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं।
बृजमोहन अग्रवाल के बेटे और स्टॉफ के कुछ लोगों को कोरोना हो गया था, लेकिन बृजमोहन की रिपोर्ट निगेटिव आई है। अजय चंद्राकर का गार्ड भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। कुल मिलाकर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत चाहते हैं कि जो विधायक कोरोना पीडि़त रहे हैं अथवा जिनके परिवार के लोग संक्रमित हैं। वे सदन की कार्रवाई में हिस्सा न लें। ऐसा अनौपचारिक चर्चा में संदेश भेजा गया है। मगर विधायक कितनी गंभीरता से लेते हैं, यह देखना है।
बेनामी की तेज तलाश
केन्द्र सरकार ने आयकर विभाग के नियमों में फेरबदल करके कुछ दफ्तरों के अधिकार सीमित किए हैं, तो कुछ दफ्तरों के अधिकार बढ़ा भी दिए हैं। अब आयकर का एक अमला लोगों की बेनामी संपत्ति की तलाश में लगा हुआ है क्योंकि प्रधानमंत्री ने अपने पिछले कुछ भाषणों में ऐसी कार्रवाई की बात कही थी। सबसे बड़ी बेनामी संपत्ति जमीन-जायदाद की शक्ल में रहती है, और एक बार यह किसी नाम पर चढ़ जाती है तो वह नाम तो सरकारी रिकॉर्ड से खत्म होता नहीं है। ऐसे में आने वाले दिन दो-नंबरी से लेकर दस-नंबरी लोगों तक के लिए परेशानी के रहने वाले हैं। केन्द्र और राज्य के हर विभाग का किसी भी किस्म का टारगेट इस बरस किसी किनारे नहीं पहुंच रहा है, केन्द्र सरकार के पास राज्यों को जीएसटी का हिस्सा देने के लिए भी पैसे नहीं है, इसलिए हर विभाग जहां से हो सके वहां से टैक्स और जुर्माना वसूली करने वाले हैं। आयकर विभाग बेनामी संपत्ति की खबर मिलने पर, और उसके बेनामी साबित हो जाने पर 15 फीसदी ईनाम भी देता है, और दो-नंबरी लोगों के यहां बरसों से नौकरी कर रहे छोटी-छोटी तनख्वाह और बड़ी-बड़ी जानकारी वाले लोगों को भी यह आकर्षित कर सकता है। एक बार इंकम टैक्स के मददगार हो गए, तो फिर मालिक कितने ही दबंग और रंगदार क्यों न हों, वे खबरिया कर्मचारी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
हर विधायक को ओहदा
छत्तीसगढ़ देश का संभवत: पहला राज्य है जहां सत्तारूढ़ दल के हर विधायक को सरकार में पद मिलेगा। विधानसभा के 90 सदस्यों में से 69 सदस्य कांग्रेस के हैं। सीएम-विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और मंत्रियों समेत 54 विधायकों को पद मिल चुका है। 15 विधायक बाकी रह गए हैं। दो-तीन विधायकों को हाऊसिंग बोर्ड में जगह मिलेगी। सरकार ने पांच आयोगों में उपाध्यक्ष का पद बनाया है। यहां भी विधायकों को एडजस्ट किया जा सकता है। इसके अलावा एक-दो निगमों में भी विधायक को चेयरमैन बनाया जा सकता है।
कुल मिलाकर हर किसी को कुछ न कुछ मिलेगा। विधायकों से परे निगम-मंडल में जगह पाने वाले ज्यादातर नेता सिर्फ विजिटिंग कार्ड के भरोसे हैं। क्योंकि कई निगम-मंडलों में ऑफिस स्टाफ का अता-पता नहीं है। ऐसे ही एक नवनियुक्त चेयरमैन पदभार संभालने के लिए दो-तीन दिनों तक अपने संस्था के दफ्तर की तलाश करते रहे। उन्हें बताया गया कि संस्था का कोई अस्तित्व नहीं है। यह सिर्फ कागजों में ही है। मंत्रीजी को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने उदारतापूर्वक चेयरमैन को बुलवाया और मान रखने के लिए उन्हें अपने घर में ही तामझामपूर्वक पदभार ग्रहण करवाया।
सत्र में विधायक रहेंगे कितने?
भाजपा के विधायक सरकार की इस बात के लिए कड़ी आलोचना कर रहे थे, कि चार दिन का सत्र सिर्फ खानापूर्ति के लिए बुलाया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और बृजमोहन अग्रवाल सहित अन्य विधायक सत्र की अवधि बढ़ाने के लिए दबाव बना रहे थे। मगर अब जब सत्र शुरू हो रहा है, तो कुल 14 भाजपा विधायकों में से कई विधायकों की उपस्थिति ही संदिग्ध हो चली है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कोरोना से उबर चुके हैं, लेकिन वे क्वॉरंटीन पर हैं। ऐसे में सदन में उपस्थित रहेंगे या नहीं, यह तय नहीं है।
इसी तरह पूर्व सीएम रमन सिंह भी क्वॉरंटीन हैं। उनकी पत्नी के अलावा कुछ नजदीकी रिश्तेदार कोरोना के चपेट में आ गए हैं। ऐसे में उनकी भी मौजूदगी को लेकर संशय कायम है। भाजपा विधायक दल के सचेतक शिवरतन शर्मा कोरोना संक्रमित हैं, और वे रामकृष्ण केयर में भर्ती हैं। तेज तर्रार विधायक बृजमोहन अग्रवाल का बेटा भी कोरोना पॉजिटिव हो गया है। यही नहीं, उनके ऑफिस स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों में से कई कोरोना संक्रमित हो गए हैं। बृजमोहन खुद क्वॉरंटीन हैं। ऐसे में वे सदन की कार्रवाई में हिस्सा ले पाएंगे इसकी संभावना कम है। क्योंकि कम से कम सात से लेकर चौदह दिन तक क्वॉरंटीन में रहने का नियम है। भाजपा विधायकों की तुलना में कांग्रेस के लोग चुस्त-दुरूस्त हैं। सिर्फ वन मंत्री मोहम्मद अकबर के ही सदन में उपस्थित होने की संभावना कम है। वजह यह है कि अकबर के परिवार के ज्यादातर लोग कोरोना के चपेट में आ गए हैं और इस वजह से वे क्वॉरंटीन हैं। अब सत्र को चार दिन बाकी हैं। देखना है कि उस समय तक कितने लोग कोरोना से दूर रह पाते हैं।
कोरोना जांच में फर्क...
प्रदेश में कोरोना कहर बरपा रहा है। चिकित्सकों का मानना है कि चूंकि टेस्ट ज्यादा संख्या में हो रहा है। इसलिए पॉजिटिव भी ज्यादा निकल रहे हैं। कई लोग टेस्ट के नतीजे को लेकर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। वैसे तो तीन तरह के टेस्ट हो रहे हैं। जिनमें से आरटीपीसीआर टेस्ट को सबसे ज्यादा प्रमाणिक माना जाता है। मगर अलग-अलग लैब से आरटीपीसीआर टेस्ट के नतीजे भी अलग-अलग आ रहे हैं।
कुछ इसी तरह का मामला पूर्व सीएम के ओएसडी रहे विक्रम सिसोदिया से भी जुड़ा है। रमन सिंह के परिवार के कई सदस्य कोरोना के चपेट में आए, तो विक्रम ने भी अपना कोरोना टेस्ट कराया। उन्होंने पहले एक निजी अस्पताल के लैब से कोरोना जांच करवाई, जहां उनकी आरटीपीसीआर जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद उन्होंने मेकाहारा में फिर से आरटीपीसीआर कराई, वहां उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई है। विक्रम सिसोदिया को कोई लक्षण नहीं है। मजबूत कदकाठी के विक्रम, खिलाड़ी रहे हैं। चिकित्सकों की सलाह पर वे होमआइसोलेशन पर हैं।
दिल का दर्द फेसबुक पर?
केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह की उस फेसबुक पोस्ट की जमकर चर्चा है, जिसमें उन्होंने लिखा - गलत तरीके अपनाकर सफल होने से बेहतर है, सही तरीके के साथ काम करके असफल होना। पार्टी के कुछ लोग रेणुका सिंह के इस पोस्ट को सरगुजा और सूरजपुर जिलाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद चल रही अंदरूनी खींचतान से जोडक़र देख रहे हैं। चर्चा है कि रेणुका सिंह दोनों जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से नाखुश हैं। सूरजपुर के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष बाबूलाल अग्रवाल तो रेणुका सिंह के धुर विरोधी माने जाते हैं। रेणुका सिंह, शशिकांत गर्ग को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहती थी, लेकिन उनकी नहीं चली।
सरगुजा जिलाध्यक्ष पद पर भी रेणुका सिंह की पसंद को दरकिनार कर लल्लन प्रताप सिंह की नियुक्ति कर दी गई। जबकि रेणुका सिंह ने भारत सिंह सिसोदिया का नाम बढ़ाया था। दोनों जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में स्थानीय सांसद रेणुका सिंह की पसंद को दरकिनार किए जाने की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है। दोनों ही जिलाध्यक्ष आरएसएस की पसंद के बताए जाते हैं। बाबूलाल अग्रवाल तो आर्थिक रूप से काफी सक्षम हैं, और उन्होंने जिले में संघ का भवन बनवाने में काफी सहयोग किया था। सूरजपुर, रेणुका सिंह का गृह जिला है और वहां उनके विरोधी माने जाने वाले नेता की नियुक्ति को बड़ा झटका माना जा रहा है।
दूसरी तरफ, न सिर्फ रेणुका सिंह बल्कि सुनील सोनी, संतोष पाण्डेय और विजय बघेल भी अपने संसदीय क्षेत्र में पसंद का जिलाध्यक्ष बनवा पाने में नाकाम रहे हैं। चर्चा है कि सुनील सोनी, बलौदाबाजार जिले में सुरेन्द्र टिकरिया को अध्यक्ष बनवाना चाहते थे। मगर पार्टी ने गौरीशंकर अग्रवाल और शिवरतन शर्मा की पसंद पर डॉ. सनम जांगड़े को जिले की कमान सौंप दी। इसी तरह राजनांदगांव में संतोष पाण्डेय की राय को अनदेखा कर मधुसूदन यादव की जिलाध्यक्ष पद पर नियुक्ति कर दी गई। विजय बघेल के दुर्ग-भिलाई में तो अभी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है, लेकिन वे अपनी पसंद से एक मंडल अध्यक्ष भी नहीं बनवा पाए हैं।
जितने निकले, उससे दस गुना होंगे...
छत्तीसगढ़ में कोरोना के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। और अब तक पॉजिटिव मिल चुके लोगों से दस गुना अधिक ऐसे लोग होंगे जो कि पॉजिटिव हो चुके होंगे, लेकिन जो अब तक जांच तक नहीं पहुंचे हैं। अधिक खतरनाक हालत अस्पतालों के कर्मचारियों के पॉजिटिव निकलने से खड़़ी हो रही है। एक-एक कर्मचारी के संपर्क वहां दर्जनों दूसरे कर्मचारी आते ही हैं, और लोगों को होमआइसोलेशन पर भेज दिया जा रहा है, लेकिन हर किसी की जांच नहीं हो पा रही है। जांच बढ़ेगी तो पॉजिटिव बढ़ेंगे, और किसी के लिए बिस्तर नहीं रह जाएंगे। आज समझदारी इसमें हैं कि लोग अपने घर-दफ्तर में किसी के पॉजिटिव निकलने की नौबत सोचकर दिमाग में तमाम तैयारियां बिठाकर रखें कि वैसी नौबत आने पर क्या किया जाएगा। आज तो हालत यह है कि लोग खाने-पीने के सामानों की दुकानों पर भीड़ लगाकर छककर खा रहे हैं, न शारीरिक दूरी, और न ही मास्क।
कोरोना के बीच हसरतें
अभी जिन परिवारों में लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा रहे हैं, वे अगर संपन्न परिवार या अधिक संपर्क वाले हैं, तो उसके लोगों का टेलीफोन पर बुरा हाल हो रहा है। चारों तरफ से सेहत पूछने को फोन आ रहे हैं, और लोगों ने नंबर बंद करना शुरू कर दिया है। इस बीमारी के इलाज में अस्पताल और डॉक्टर छोड़ किसी की कोई मदद तो है नहीं, और वैसे में हर किसी से हमदर्दी कोई झेले भी तो कितना झेले। वैसे कई ऐसे दुस्साहसी लोग हैं जो आपसी बातचीत में यह हसरत जाहिर करते हैं कि बिना लक्षणों वाला संक्रमण उन्हें हो जाए, और चले जाए, तो उससे बढिय़ा कोई बात नहीं हो सकती, उसके बाद वे आगे संक्रमण के खतरे से आजाद रहेंगे। यह कुछ उसी किस्म का होगा कि जिस वक्त घर और कारोबार में झाड़ू लगा हुआ हो, उस वक्त इंकम टैक्स का छापा पड़ जाए, कुछ भी हासिल न हो, और अगले तीन बरस किसी छापे का खतरा भी टल जाए।
संसदीय सचिव, तब और अब...
वैसे तो संसदीय सचिव न तो संबंधित विभाग के फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, और न ही विधानसभा में सवालों का जवाब दे सकते हैं। कुछ सरकारी सुविधाओं को छोड़ दें, तो संसदीय सचिव एक तरह से अधिकारविहीन हैं। रमन सरकार में तो पूनम चंद्राकर जैसे कई संसदीय सचिवों की कोशिश रहती थी कि फाइलों पर हस्ताक्षर करने के अधिकार भले ही न हो, कम से कम अवलोकन करने के अधिकार मिल जाए। मगर उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाई।
पिछली सरकार में संसदीय सचिवों को तो मंत्री, विभागीय बैठकों में भी नहीं बुलाते थे। आम विधायकों की तरह मंत्रियों से मिलने के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ता था। ऐसे ही तुनकमिजाजी संसदीय सचिव ने मंत्री से मुलाकात में देरी पर अपना गुस्सा उनके पीए पर निकाल दिया था। उन्होंने पीए की सबके सामने पिटाई कर दी थी। इसके बाद संसदीय सचिव ने मंत्री के बंगले में जाना भी छोड़ दिया था। मगर कांग्रेस सरकार में कुछ संसदीय सचिवों की स्थिति एकदम अलग है।
विकास उपाध्याय को ही लें, उनकी सक्रियता से विभागीय मंत्री के बंगले में हलचल मची हुई है। विकास उपाध्याय ने अफसरों की टीम ले जाकर एक्सप्रेस-वे सर्विस रोड खुलवा दिया। चर्चा है कि मंत्री तक को इसकी जानकारी नहीं थी। विकास को संसदीय सचिव बने कुछ ही दिन हुए हैं। पीडब्ल्यूडी और अन्य विभाग के अफसर उनके आगे-पीछे होते देखे जा सकते हैं। विकास की धमक को देखकर यह कहा जा सकता है कि संसदीय सचिवों को कोई लिखित अधिकार भले ही न हो, जुबानी जमा खर्च से काफी कुछ काम कराया जा सकता है।
मिजाजपुर्सी के दिन आये
भाजपा में असंतुष्ट नेताओं को मनाने की कवायद चल रही है। खुद सौदान सिंह इस मुहिम में जुटे हैं। असंतुष्टों की नाराजगी सौदान सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर ज्यादा रही है। वे पिछले दो दिनों में अब तक धमतरी-कांकेर और अन्य जिलों के नेताओं के साथ-साथ पूर्व विधायकों से फोन पर बात कर चुके हैं। सौदान सिंह का अंदाज बदला-बदला सा है। वे पार्टी गतिविधियों पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं करते। वे पहले हालचाल पूछते हैं।
परिवार के लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हैं। फिर कहते हैं कि प्रदेश में कोरोना लगातार बढ़ रहा है। हमारे बड़े नेता भी इसकी चपेट में आ गए हैं। इससे बचने के लिए सामाजिक दूरी बनाकर रखें। सौदान से चर्चा करने वाले एक नेता ने अनुभव सुनाया कि 15 साल सत्ता में रहते किसी भी नेता ने हालचाल जानने की कोशिश नहीं की। अब जब नाराज लोगों का गुस्सा फूट रहा है, तो घर परिवार तक की सुध लेने लग गए हैं। दो दिन पहले सच्चिदानंद उपासने ने कहा था कि कार्यकर्ता पद नहीं, सम्मान के भूखे हैं। लगता है कि सौदान सिंह ने उपासने की बातों को गंभीरता से ले लिया है।
अब तक चीन से बचे पोला के बैल
कुछ देसी त्यौहार अभी तक चीन की पहुंच से बाहर हैं। जैसे बैलों की पूजा का पोला, अब तक हिन्दुस्तान के गांव-गांव में बच्चे इस दिन मिट्टी के बने हुए बैल मिट्टी के ही चक्कों पर रस्सी बांध खींचते हुए चलते हैं। कुछ लोगों के घरों में पीढिय़ों से लकड़ी के ऐसे बैल चले आ रहे हैं जिन्हें पहले चमकीले कागज चिपकाकर सजाया जाता था, और अगले बरस फिर नए कागज लगाए जाते थे।
पिछले कुछ महीने हिन्दुस्तान में सभी मजदूरों और कारीगरों के लिए तकलीफ के रहे, जिनमें कुम्हार भी शामिल थे। कारोबार, दफ्तर, सरकार सभी कुछ बंद रहे, तो पूरी गर्मी बिना घड़ों के निकल गई। सिर्फ घर के लिए लोगों ने घड़े लिए, लेकिन न प्याऊ खुले, और न ही दुकानों के बाहर घड़े रखे गए। छोटे-छोटे चाय ठेले भी जो घड़े रखते थे, उसकी भी संभावना पूरी गर्मी में खत्म हो गई। ऐसे में पोला के मौके पर मिट्टी के कुछ बैल बिके, और काम थोड़ा सा चला। जहां हिन्दुस्तानी त्यौहारों के अधिकतर सामान, और तो और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी चीन से बनकर आने लगी हैं, वहां पोला अब तक चीन से बचा हुआ है।
डरे-सहमे लोगों के लिए फोन
वैसे तो गोपनीय बातचीत की जरूरत वाले लोग मोबाइल फोन के सिम के बजाय वॉट्सऐप या दूसरे मैसेंजरों पर बात करने लगे हैं, लेकिन जिन्हें और ऊंचे दर्जे की बात करनी रहती है वे महंगे आईफोन पर ही उपलब्ध फेसटाईम पर ही बात करते हैं। प्रदेश में एक-दो कारोबार ऐसे हो गए हैं जिनमें दूसरे किसी फोन पर कोई बात ही नहीं होती। शायद बात करने वाले खुद भी इस पर रिकॉर्ड नहीं कर पाते, और सुना है कि खुफिया एजेंसियां भी आईफोन के इस एप्लीकेशन में घुसपैठ नहीं कर पा रही हैं।
लेकिन लोगों को यह याद रखना चाहिए कि इसी छत्तीसगढ़ में ऐसे स्टिंग ऑपरेशन होते आए हैं जिनमें लोगों ने वॉट्सऐप पर बात करते हुए उसकी स्क्रीन की रिकॉर्डिंग दूसरे फोन से की थी। ऐसा सुबूत अदालत में काम आए न आए, निजी और राजनीतिक जिंदगी में तो उसे हथियार बनाया ही जा सकता है। इसलिए सुरक्षित कुछ भी नहीं है, बुरी बातें अपने मन के भीतर-भीतर मार डालें, उसी में हिफाजत है।
उपेक्षित रोये तो रोये, उपासने भी !
छत्तीसगढ़ भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने के उस बयान से पार्टी में हलचल मची हुई है, जिसमें उन्होंने कहा कि पार्टी में परिश्रम से ज्यादा परिक्रमा करने वालों को महत्व मिला, जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। उपासने का बयान ऐसे समय में जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रायपुर में ही थे। उपासने के बयान के मायने निकाले जा रहे हैं। वैसे तो उपासने को 15 सालों में सब कुछ मिला, जिसकी हसरत आम कार्यकर्ताओं को रहती है। उन्हें मलाईदार ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया था।
विधानसभा हारने के बाद भी मेयर चुनाव की टिकट दी गई। हार के बाद भी उन्हें संगठन में अहम दायित्व मिला है। पार्टी के एक नेता याद दिलाते हैं कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद दोबारा विधानसभा की टिकट नहीं मिली, तो उपासने के भाई और कुछ करीबी लोगों ने एकात्म परिसर में जमकर हंगामा खड़ा किया था। वरिष्ठ नेताओं पर टिकट बेचने का आरोप तक मढ़ दिया था। इतना सब-कुछ होने के बावजूद उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए पार्टी हमेशा उन पर मेहरबान रही है और वे संगठन में महत्वपूर्ण बने रहे हैं।
अब पार्टी प्रवक्ता जैसे अहम पद पर रहते उपासने की खुले तौर पर बयानबाजी को एक खेमा अनुशासनहीनता करार दे रहा है, तो उनके करीबी लोग मानते हैं कि उपासने जिन्हें कुछ नहीं मिला, उनके लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। उपासने ने अपने बयान में किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि उनका निशाना सौदान सिंह की तरफ था।
सुनते हैं कि विष्णुदेव साय के अध्यक्ष बनने के बाद से सौदान के खिलाफ संगठन में हाशिए पर चल रहे बड़े नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है। पार्टी के भीतर सौदान के खिलाफ मुहिम चल रही है। असंतुष्टों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि जिलाध्यक्षों के चयन में गुट विशेष के लोगों को ही महत्व दे रहे हैं।
एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि, जो कि लॉकडाउन के कठिन समय में सौदान के लिए रजनीगंधा का बंदोबस्त करते थे, वे भी चुपचाप दिल्ली में सौदान सिंह के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से बड़े नेताओं के कान फूंककर आ गए। यह भी चर्चा है कि रायपुर और दुर्ग जिलाध्यक्ष पद को लेकर सौदान सिंह की अपनी पसंद है, जिसे पार्टी के दूसरे नेता पसंद नहीं कर रहे हैं। अगर सौदान की पसंद पर मुहर लगती है, तो पार्टी में असंतुष्टों का गुस्सा फूट सकता है। फिलहाल तो लोग नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
बड़े नेता की बड़ी जिद...!
कांग्रेस में निगम-मंडलों की दूसरी सूची तैयार है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि राजीव गांधी जयंती के मौके पर सूची जारी हो सकती है। चर्चा है कि पार्टी के एक बड़े पदाधिकारी इस बात से खफा हैं कि उनकी राय को तवज्जो नहीं दी गई। सुनते हैं कि पदाधिकारी अपने करीबी को एक मलाईदार निगम का चेयरमैन बनाने के लिए अड़ गए थे। उन्हें मनाने के लिए काफी तर्क ढूंढने पड़े। पुराने उदाहरण भी दिए गए, तब कहीं जाकर थोड़े नरम पड़े। अब पदाधिकारी के करीबी को दूसरा पद दिया जा रहा है।
अफसर कम रह गए हैं इसलिए... !
प्रदेश के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई है। इस वजह से जगदलपुर और बिलासपुर में दो एनीकट टूट गए। स्वाभाविक है कि एनीकट टूटने पर जिम्मेदारी तय होती है और उस समय के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है। एनीकट के टूटने पर विभाग के अफसरों को आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि दोनों एनीकट की गुणवत्ता खराब थी। दोनों निर्माण कार्यों के एवज में इतना कुछ निचोड़ लिया गया था कि गुणवत्ता अच्छी होने का सवाल ही नहीं था। फिर भी, टूट-फूट पर कार्रवाई तो होनी है। विभाग के एक बड़े अफसर ने विभाग के मुखिया तक खबर भिजवाई कि सीनियर लेवल पर अफसर बेहद कम रह गए हैं, और निलंबन जैसी कार्रवाई से चालू परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है। अफसर की सलाह के बाद अब कार्रवाई का दूसरा तरीका ढूंढा जा रहा है। ताकि कामकाज पर असर न पड़े।
सोशल मीडिया पर अफसरों की ताकत...
छत्तीसगढ़ के कई आईएएस और आईपीएस सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय हैं। इसमें से कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें फील्ड में या मंत्रालय में बड़ी जिम्मेदारी है। फिर भी उनकी सोशल मीडिया, खासतौर पर ट्वीटर पर सक्रियता देखते ही बनती है। अफसर न केवल अपने विभाग से जुड़ी जानकारियों को साझा करते हैं बल्कि सुविचार, जोक्स और व्यक्तिगत गतिविधियों के बारे में लिखते हैं और तस्वीरें शेयर करते हैं। उनकी पोस्ट पर लाइक्स और शेयर भी जमकर होते हैं। खैर, सोशल मीडिया का प्लेटफार्म चीज ही ऐसी है कि इसका नशा चढ़ जाए तो सिर चढक़र बोलता है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। अफसर हुए तो क्या सोशल मीडिया तो सभी के लिए है।
इस पर यहां पर चर्चा करने का कारण ये भी है कि अफसरों के इस शौक से सत्तारूढ़ नेताओं को तकलीफ हो रही है। उनको लगता है कि अफसरों का काम फाइल निपटाना और प्रशासन के कामकाज में ध्यान देने का है। सोशल मीडिया तो प्रचार-प्रसार का माध्यम है। इस पर तो सर्वाधिकार नेताओं का सुरक्षित है। कुछ माननीय तो इसके लिए गाइड लाइन बनाने के पक्ष में है। हालांकि पिछली सरकार में सोशल मीडिया में सक्रियता के कारण कई अफसरों को नुकसान भी उठाना पड़ा था, लकिन वह सोशल मीडिया की वजह से नहीं, उस पर राजनीतिक या विवादस्पद बातें लिखने की वजह से हुआ था । नई सरकार बनने के बाद अफसर कुछ ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। कोराना काल भी इसकी बड़ी वजह है। अफसर का मेल-जोल काफी कम हो गया है। लिहाजा वे बचे हुए समय का सोशल मीडिया में उपयोग कर रहे हैं। कुछ लोगों को यह बात भी खटकती है कि अफसर पूरे समय सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं तो काम कब करते हैं। इसका यह मतलब भी निकाला जा रहा है कि ऐसे अफसर काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे रहे हैं। अब मामला कुछ भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि अफसरों की सक्रियता ने माननीयों की नींद में खलल डाल दी है।
हकीकत यह है कि बिलासपुर आईजी दीपांशु काबरा अपनी खुद की फिटनेस के बारे में तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करके पूरे अमले के सामने रोजाना ही फिटनेस का एक बड़ा चैलेंज पेश करते हैं, जिसकी पुलिस विभाग को बहुत जरूरत है. दूसरी तरफ उन्होंने लॉकडाउन के पूरे दौर में चारों तरफ लोगों की जितनी मदद की, उसकी वाहवाही तो सरकार को ही मिली. एक और अफसर सोनमणि बोरा भी दीपांशु की तरह देश भर के अफसरों से बात करके लौटते मजदूरों की मदद करते रहे. सरकार को सोशल मीडिया और अफसरों की ताकत का आगे भी इस्तेमाल करना चाहिए।
पैसा है तो वैक्सीन लगना शुरू?
कोरोना के इलाज के लिए बाजार में अब तक कोई कारगर दवा नहीं आ पाई है। अलबत्ता देश-विदेश में वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। वैक्सीन को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। लोगों को उम्मीद है कि अगले दो-तीन महीनों में कोई न कोई वैक्सीन लॉच हो जाएगी। इससे ही बीमारी से बचाव हो पाएगा। देश की तीन कंपनियों और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा कोरोना वैक्सीन विकसित की जा रही है। भारत में भी सरकारी मंजूरी से इसका चुनिंदा अस्पतालों में मानव परीक्षण चल रहा है। सुनते हैं कि रायपुर के एक बड़े अस्पताल के डॉक्टरों ने अघोषित रूप से वैक्सीन मंगवाकर लगा भी ली है। डॉक्टरों ने किस कंपनी की वैक्सीन लगवाई है, यह साफ नहीं हो पाया है। मगर बताते हैं कि 15 हजार रूपए में अनाधिकृत तौर पर वैक्सीन मिल भी रही है। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कई लोग वैक्सीन के जुगाड़ में लग गए हैं। अब वैक्सीन से फायदा होगा या नहीं, इसका तो अभी परीक्षण ही चल रहा है। लेकिन इससे नुकसान नहीं है यह मानकर लोग लगवाने की कोशिश कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का भरोसा, और एमपी
वैसे तो प्रदेश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, लेकिन यहां अभी स्थिति नियंत्रण में है। छत्तीसगढ़ में सिर्फ सरकारी अस्पतालों के दम पर कोरोना को बेकाबू होने से रोका जा सका है। अभी कुछ दिनों से निजी अस्पतालों में भी कोरोना के इलाज की सुविधा उपलब्ध हो गई है। छत्तीसगढ़ के पड़ोसी मध्यप्रदेश की स्थिति अलग है। मध्यप्रदेश में लोग सरकारी अस्पतालों के बजाए निजी अस्पतालों में इलाज कराना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद कोरोना पीडि़त हैं और वे निजी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। जबकि भोपाल में एम्स जैसे उत्कृष्ट संस्थान हैं। रायपुर एम्स के डायरेक्टर डॉ. नितिन एम नागरकर, भोपाल एम्स के भी डायरेक्टर हैं। रायपुर एम्स के कोरोना इलाज को लेकर तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तारीफ हो रही है। छत्तीसगढ़ सरकार के सरकारी अस्पतालों में भी कोरोना अच्छे तरीके से इलाज हो रहा है, और बड़ी संख्या में लोग ठीक होकर लौट रहे हैं।
चूंकि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से अलग होकर बना है। इसलिए दोनों राज्यों में मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं की तुलना होते रहती है और यहां के पूर्व और वर्तमान अफसर एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। मध्यप्रदेश सरकार के एक बड़े चिकित्सक ने छत्तीसगढ़ के एक रिटायर्ड आईएएस अफसर से कहा कि मध्यप्रदेश के कोरोना पीडि़त बड़े लोगों को सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है। खुद सीएम निजी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था ठीक नहीं हो पा रही है। जबकि छत्तीसगढ़ में सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भ्रष्टाचार को लेकर स्वास्थ्य विभाग-अस्पताल भले ही कुख्यात रहा है, लेकिन कोरोना ने कुछ हद तक पुरानी छवि को बदलने में मदद की है।
तबादला तो हुआ, पर जाएँ कैसे?
पिछले दिनों सरकार ने राजनांदगांव एसपी जितेन्द्र शुक्ला और ईओडब्ल्यू एसपी सदानंद कुमार को बदल तो दिया, लेकिन वे नया कार्यभार संभाल नहीं पा रहे हैं। शुक्ल को कवर्धा स्थित 17 वीं और कुमार को नारायणपुर के 4वीं बटालियन का कमाडेंट बनाया गया है। जहां पहले से ही दोनों बटालियन में सीडी टंडन और धर्मेंद्र सवाई बतौर कमाडेंट पदस्थ हैं, और इनका तबादला नहीं हुआ है । शुक्ला और कुमार इस तकनीकी पेंच के चलते चाहकर भी पदभार नहीं ले पा रहे हैं। यानी दोनों जगहों पर कुर्सी एक और अफसर दो वाली स्थिति बन गई है। फिलहाल दोनों अफसर इधर-उधर समय काट रहे हैं। सुनते हैं कि दोनों ने डीजीपी को तबादले को लेकर त्रुटि से अवगत भी कराया है। मगर अब तक त्रुटि को ठीक नहीं किया जा सका है। हल्ला तो यह भी है कि दोनों को कामकाज को लेकर नाराजगी के चलते हटाया गया था। और त्रुटि भी अनजाने में नहीं हुई है। ऐसे में इन त्रुटियों को ठीक करने में समय तो लगता है।
गोबर-गणित
छत्तीसगढ़ सरकार जब से गोबर खरीदना शुरू किया है। इसको लेकर तरह-तरह के गुणा-भाग सुनने को मिल रहे हैं। पिछले दिनों ने सरकार ने गोबर संग्राहकों को भुगतान किया। इसके बाद से तो गोबर का गणित अच्छे-अच्छों को पल्ले नहीं पड़ रहा है। दरअसल, भुगतान के बाद संग्राहकों की कहानी को सफलता की कहानी के लिहाज से सरकारी महकमे ने प्रचारित किया। उसमें गोबर से आमदनी से लेकर खरीद-बिक्री के आंकड़े दिए गए थे। ऐसे ही चंद्रखुरी और महासमुंद के संग्राहकों को जिक्र था चंद्रखुरी की एक महिला के बारे में बताया गया कि केवल 10 दिन का गोबर बेचकर 31 हजार कमा लिए। उसके पास 70 गायें है। सोशल मीडिया के विशेषज्ञों ने गुणा-भाग लगाया तो पता चला कि उसकी एक गाय रोजाना 22-23 किलो गोबर दे रहे है, लेकिन महासमुंद के संग्राहकों के गोबर से कमाई का जबकि जमाया गया तो गणित के रोचक आंकड़े सामने। इस संग्राहक ने 13 दिन में 221 क्विंटल गोबर 44 हजार से ज्यादा की कमाई की। जबकि उसके पास 25 गायें है। ऐसे में एक गाय का रोजाना का गोबर 59 किलो के आसपास का आ रहा है। इस तरह के आंकड़े से आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है। संभव है कि संग्राहकों ने काफी पहले से गोबर इक_ा करना शुरू कर दिया हो, लेकिन सरकारी आंकड़ों ने कुछ समय के लिए लोगों को उलझा जरुर दिया था। सोशल मीडिया में कई दिनों तक गोबर गणित को समझने और समझाने का खेल चलता रहा।
हवा देना जारी है, और...
पूर्व सीएम रमन सिंह को पनामा पेपर्स पर एक बार फिर सफाई देनी पड़ रही है। कांग्रेस के लोग रमन सिंह-परिवार की संपत्ति की जांच के लिए दबाव बना रहे हैं। वैसे तो ये आरोप कोई नए नहीं हैं। रमन सिंह सीएम थे, तब सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील प्रशांत भूषण ने पनामा पेपर्स के हवाले से रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का विदेश में खाता होने का आरोप लगाया था। पनामा पेपर्स में अभिषाक सिंह नाम है। खैर, रमन सिंह-अभिषेक इस पर कई बार सफाई भी दे चुके हैं।
रमन सिंह ने तो अपने खिलाफ आरोपों पर एक बार कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी। बात पुरानी हो गई। उस समय चर्चा थी कि प्रशांत भूषण, रमन सिंह से इसलिए नाराज थे कि उनके सहयोगी जूनियर अधिवक्ताओं के खिलाफ बस्तर में पुलिस ने कार्रवाई कर दी थी। अब प्रशांत भूषण तो खामोश हैं, लेकिन कांग्रेस के लोग थोड़े-थोड़े दिनों में पुराने आरोपों को हवा देते रहते हैं। इससे पूर्व सीएम और भाजपा के लोगों का हलाकान होना स्वाभाविक है।
इससे ज्यादा रमन सिंह के विरोधी एक भाजपा नेता परेशान हैं। उनकी परेशानी की वजह यह है कि जब भी रमन सिंह पर आरोप लगते हैं, मीडिया वाले बाइट लेने उनके घर पहुंच जाते हैं। पार्टी के भीतर के समीकरण भले ही कुछ हो, लेकिन सार्वजनिक तौर पर बचाव करना ही पड़ता है। मीडियावालों के लिए सहूलियत यह रहती है कि भाजपा नेता का बंगला कांग्रेस भवन से कुछ ही दूरी पर है। ऐसे में प्रतिक्रिया के लिए भाजपा दफ्तर के बजाए नेताजी के घर पहुंचना ज्यादा आसान रहता है।
आवभगत में जुटे रहने वाले
कांग्रेस के निगम-मंडलों की दूसरी सूची में कई नामों का हल्ला है। सुनते हैं कि दूसरी सूची में प्रोटोकाल से जुड़े दूसरी पंक्ति के सभी नेताओं के नाम हैं। इनमें अजय साहू, सन्नी अग्रवाल, शिव सिंह ठाकुर और आरपी सिंह प्रमुख हैं। चर्चा है कि प्रोटोकाल से जुड़े नेताओं को पद देने की सिफारिश प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने की थी। और उनकी सिफारिश पर राष्ट्रीय नेताओं की आवभगत में जुटे रहने वाले सभी नेताओं का नाम जोड़ा गया है। अब सूची का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
दरबार से जुड़े लोग तैयार नहीं
शदाणी दरबार हॉटस्पाट बन गया है। दरबार और इससे सटी कॉलोनी में डेढ़ सौ से अधिक कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिरलाल और उनके परिवार के आधा दर्जन सदस्य भी कोरोना की चपेट में आ गए थे। सभी अब स्वस्थ हैं। युधिष्ठिरलाल चाहते हैं कि शदाणी दरबार को फिर से खोलने की अनुमति दे दी जाए। चूंकि यह पूरा इलाका हॉटस्पाट बन चुका है। इसलिए प्रशासन ने यहां बैरिकेड्स लगाकर लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी है।
त्योहार का सीजन है, लिहाजा बैरिकेड्स हटाने के लिए कलेक्टर को आवेदन भेजा गया है। आवेदन लेकर खुद श्रीचंद सुंदरानी गए थे। सुनते हैं कि प्रशासन तो बैरिकेड्स हटाने के लिए तैयार है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इसके पक्ष में नहीं है। सीएमओ ने कह दिया कि वे दरबार और आसपास के लोगों की पूरी जांच कराएंगे। इसके बाद ही विभाग की तरफ से बैरिकेड्स हटाने की अनुमति दी जा सकती है। मगर दरबार से जुड़े लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं। कुछ लोगों को शंका है कि एक साथ जांच होने पर कई और पॉजिटिव निकल सकते हैं। इससे प्रशासनिक अफसर उलझन में हैं।
अगली लिस्ट तैयार...
छत्तीसगढ़ में निगम-मंडलों की दूसरी सूची फाइनल हो चुकी है और यह जल्द जारी हो सकती है। सुनते हैं कि सूची में नेताओं के अलावा सामाजिक संगठन के एक-दो लोगों के साथ ही एक रिटायर्ड आईएएस का भी नाम है। चर्चा है कि इस अफसर के नाम पर पहले ही सहमति बन चुकी थी। पहली सूची में नाम भी था, लेकिन टाइपिंग की चूक की वजह से नाम छूट गया। साफ छवि के इस रिटायर्ड अफसर के अनुभवों का सरकार पूरा लाभ उठाना चाहती है। और उन्हें आयोग में अहम दायित्व सौंपा जा सकता है।
कल्लूरी के तमाम लोग स्थापित...
पुलिस महकमे के मौजूदा प्रशासनिक ढांचे में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में पावरफुल रही, बस्तर के तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी की टीम की फील्ड फिर से वापसी हो गई है। बस्तर में कल्लूरी के करीबी अफसर प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद महीनों तक लूपलाईन में रहे। अब पौने दो साल बाद कल्लूरी की टीम फिर से मैदान में दिख रही है। आईजी रहते कल्लूरी ने अपनी पसंद के अफसरों के जरिए नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया था, जिस पर उंगलियां भी उठी थी। कुछ मुठभेड़ की अभी भी जांच चल रही है। कल्लूरी के वक्त एसपी रहे डी. श्रवण, अभिषेक मीणा, आईके ऐलसेला, कमलोचन कश्यप और बीएल ध्रुव को फिर से पोस्टिंग मिल गई है। श्रवण और मीणा को तो राजनांदगांव और कोरबा जैसे बड़े जिलों की कप्तानी मिली है।
ऐलसेला की भले ही दोनों अफसरों की तुलना में बलौदाबाजार जैसे छोटे जिले तैनाती हुई लेकिन वह औद्योगिक नजरिए से तुलनात्मक रूप से बेहतर है। कमलोचन कश्यप की कल्लूरी की टीम में गिनती जरूर होती है, लेकिन वे उनके बाकी अफसरों की तुलना में ज्यादा विवादित नहीं रहे। कांग्रेस सरकार ने कश्यप को बीजापुर भेजकर उन पर भरोसा जताया है। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस सरकार आने के कुछ दिनों बाद एसआरपी कल्लूरी को पहले ईओडब्ल्यू-एसीबी का चीफ बनाया गया था। बाद में उन्हें परिवहन विभाग में भेजा गया। अब वे पीएचक्यू में हैं, लेकिन पहले जैसे पॉवरफुल नहीं रह गए हैं। अलबत्ता, उनकी टीम के लोग अब सेट हो गए हैं।
चौधरी या जूदेव?
खबर है कि भाजपा में युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद के लिए काफी खींचतान चल रही है। भाजयुमो अध्यक्ष के लिए पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी का नाम प्रमुखता से उभरा है। चर्चा है कि पूर्व सीएम रमन सिंह, चौधरी को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं। वैसे भी चौधरी को आईएएस छोडक़र भाजपा में लाने में उनकी भूमिका रही है। मगर रमन विरोधी खेमा दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव के छोटे पुत्र प्रबल प्रताप सिंह को युवा मोर्चा की कमान सौंपने के पक्ष में है। प्रबल प्रताप ने अपने पिता के निधन के बाद ऑपरेशन घर वापसी कार्यक्रम को आगे बढ़ाया और पूरे प्रदेश के जूदेव परिवार से जुड़े लोगों के लगातार संपर्क में भी हैं। अब तक तो सभी नियुक्तियों में हाईकमान ने रमन सिंह की पसंद को तवज्जो दी है। देखना है कि युवा मोर्चा अध्यक्ष के लिए हाईकमान किसकी सुनता है।
लोग हॉटस्पॉट बनाकर ही मानेंगे...
रायपुर में कोरोना संक्रमण गंभीर रूप ले रहा है। आम लोगों की लापरवाही की वजह से यह तेजी से फैल रहा है। यहां एक पॉश कॉलोनी में कोरोना के चार पॉजिटिव मिले हैं। एसिम्टोमैटिक होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती न कर होमआइसोलेशन के लिए कहा गया था। मगर कोरोना पीडि़त रोज सुबह-शाम वॉक पर निकल जा रहे हैं। उन्हें देखते ही कॉलोनी के बाकी लोग दहशत में घर के अंदर घुस जा रहे हैं। कई बार कोरोना मरीजों को समझाइश देने की कोशिश भी की गई, लेकिन वे मान नहीं रहे हैं। चारों की वजह से पूरी कॉलोनी में डर का माहौल है। कुछ लोगों को आशंका है कि कोरोना मरीजों की लापरवाही रोकने के लिए प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए, तो कॉलोनी के हाटस्पॉट बनने में देर नहीं लगेगी।
कुछ कॉलोनियों में तो पॉजिटिव निकले लोग आस-पास के लोगों के बीच प्रवचनकर्ता का दजऱ्ा पा चुके हैं, लोग उनसे सुनते रहते हैं कि कैसा लगा था, क्या-क्या इलाज हुआ..!
गुठली के दाम सरीखे, बीज के दाम
छत्तीसगढ़ में सरकार ने केन्द्र सरकार की कोशिशों से बहुत आगे बढक़र लोगों से वनोपज खरीदने का काम किया है। पहले तेंदूपत्ता ही सबसे अधिक कमाई जंगल के आदिवासियों को और वहां बसे हुए लोगों को देता था, लेकिन राज्य सरकार ने धीरे-धीरे इमली और दूसरे कई किस्म के लघु वनोपज कहे जाने वाले सामान इस लिस्ट में जोड़े, और देश में सबसे अधिक दाम पर सरकार इन्हें खरीद रही है। इनमें इमली भी शामिल है, इसे सरकार तो खरीदती ही है, लेकिन बस्तर में व्यापारी भी इमली में इतनी दिलचस्पी लेते हैं कि उनमें से एक तो वहां के इमली किंग कहलाते थे।
अब एक वैज्ञानिक खबर यह आई है कि इमली का बीज बहुत फायदेमंद होता है, और यह कैल्शियम और खनिजों से भरपूर होता है, हड्डियों को मजबूत करता है। इमली महिलाओं को अधिक पसंद रहती है, और उसका यह बीज भी महिलाओं की उम्र के साथ कमजोर होने वाली हड्डियों को मजबूती दे सकता है। इसके अलावा इमली के बीज से कमर का दर्द कम होता है, और यह वजन कम करने में भी मदद करता है।
अब सरकार अगर चाहे तो इमली के बीज के इन्हीं दो-तीन गुणों की वैज्ञानिक जानकारी जुटाकर बीज की मार्केटिंग भी कर सकती है, और आम के आम, गुठली के दाम की तरह इमली तो इमली, बीज से भी कमाई जैसी बात हो सकती है।
रमन का विधानसभा सीट पर मुकाम
राजनांदगांव के विधायक और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह का राजनांदगांव में नया आशियाना तैयार हो गया है। अच्छा मुहुर्त देखकर अगले दो-तीन दिन में पूर्व सीएम शहर के मध्य स्थित बंगले के कार्यालय का उद्घाटन कर लोगों से मेल-मुलाकात का सिलसिला शुरू करेंगे। सुनते है कि डॉ. सिंह ने यह बंगला किराए पर लिया है। इससे पहले सीएम रहते उनका सरकारी निवास था, वह अब डीआईजी निवास बन चुका है। इसके बाद से रमन सिंह सर्वसुविधायुक्त बंगले की तलाश में थे।
चर्चा है कि पूर्व सीएम को उनके करीबियों ने नांदगांव में एक स्थाई कार्यालय खोले जाने की सलाह दी थी। विधायक होने की वजह से उन पर नांदगांव में ही रहने का दबाव है। पार्टी के कुछ कारोबारी नेताओं ने पूर्व सीएम के लिए उपयुक्त बंगला ढूंढने में मदद की। हालांकि यह पहले जैसा आलीशान तो नहीं है, लेकिन सुविधाओं में कोई कमी नहीं है। इस बंगले के रंगरोगन के बाद इसे शानदार रूप दिया गया है। कोरोना संक्रमण निपटने के बाद पूर्व सीएम ज्यादातर समय यहां रहकर सरकार के खिलाफ व्यूह रचना तैयार करेंगे, साथ ही विधानसभा सीट भी देखेंगे. कई नेता बड़े होने के बाद चुनाव क्षेत्र को थोड़ा सा भूलते हैं, तो अगले चुनाव में वह हाथ से निकल जाता है।
याददाश्त का राज
दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में पीयूष गोयल की इस बात की तारीफ होती है कि वे महापुरूषों-राजनेताओं को जन्मदिन की बधाई देना नहीं भूलते हैं। उनका बधाई संदेश ट्विटर-फेसबुक पर देखा जा सकता है। कुछ लोग आश्चर्य करते हैं कि इतने लोगों का जन्मदिन उन्हें कैसे याद रहता है। मगर इसमें अचरज वाली कोई बात नहीं है। विज्ञापन का डिजाइन तैयार करने वाले कई लोग इस काम में जुटे हुए हैं और उन्हें इस एवज में थोड़ी सी आमदनी भी हो रही है।
रायपुर में बधाई संदेश का डिजाइन तैयार करने का सालाना 15 हजार रूपए का पूरा पैकेज है। इसमें किसी नेता को अपनी पार्टी के बड़े नेताओं-महापुरूषों का जन्मदिन याद रखने की जरूरत नहीं है। डिजाइनर सुबह-सुबह बधाई संदेश वाला विज्ञापन तैयार कर आपको भेज देगा, जिसे आप फेसबुक- ट्विटर और इंस्टाग्राम व वॉटसएप में शेयर कर सकते हैं। रायपुर के कई भाजपा नेता इस तरह की सेवाएं ले रहे हैं। कुछ बड़े नेताओं ने तो अपना फेसबुक और ट्विटर एकाउंट हैंडल करने के लिए कर्मचारी तक नियुक्त कर रखा है।
आरएसी कन्फर्म करने की कोशिश
छत्तीसगढ़ में निगम-मंडलों में मनोनयन से हर कोई खुश हो, ऐसा नहीं है। कुछ लोग मनोनीत होने के बाद भी नाखुश हैं कि उन्हें उनके योगदान या उनके महत्व के मुताबिक कुर्सी नहीं मिली। ऐसे ही एक व्यक्ति ने अभी से एक दूसरी कुर्सी के लिए मुहिम छेड़ दी है, और उसका कहना है कि अभी मिली कुर्सी रेलवे की आरएसी जैसी है, बर्थ मिलने के पहले तक किसी और के साथ मिल-बांटकर बैठने के लिए मिली एक बर्थ। अब यह तो हाथ आ गई है, इसके बाद अब आरएसी को कन्फर्म करने को लेकर कोशिश जारी है।
नई जरूरत, नई फैशन, नई शब्दावली
समय के साथ-साथ भाषा में कुछ नए शब्द भी आ जाते हैं। अभी जिस बड़े पैमाने पर लोगों की जिंदगी में मास्क आ गया है, और पहले से खासकर महिलाएं जिस तरह स्कार्फ का इस्तेमाल करती थीं, तो अब फैशन की एक जरूरत आ गई कि इनको मिलाकर एक बनाया जाए। और जाहिर है कि जब कोई सामान नया बनता है, तो उसका नाम भी नया पड़ सकता है। मास्क और स्कार्फ मिलाकर कुछ ब्रांड मास्कार्फ बनाकर बाजार में उतार चुके हैं और कुछ दूसरी कंपनियों ने माफर््स नाम रखा है। चेहरा भी ढंक जाए, और गला भी।
हिन्दुस्तान में बहुत से फैशन ब्रांड अब मर्दों के शर्ट के साथ मिलते-जुलते या उसी कपड़े के मास्क देने लगे हैं, महिलाओं के कुर्तों के साथ तो मास्क तुरंत इसलिए भी आ गए कि उनमें सिलाई करते समय कतरनें बचती हैं, और कतरनों का इससे बेहतर और कोई इस्तेमाल नहीं हो सकता कि उनके मैचिंग मास्क बना दिए जाएं, और बिक्री बढ़ाने के लिए- मैचिंग मास्क फ्री, जैसा नारा लगा दिया जाए।
पश्चिम में अभी एक नई फैशन ऐसी चली है कि लोग टाई और मास्क एक ही कपड़े का पहनना शुरू कर रहे हैं ताकि अलग-अलग रंग और डिजाइन की मैचिंग का रोज का सरदर्द न रहे। हो सकता है कि इस जोड़े का नाम मास्क और टाई मिलाकर मास्टाई हो जाए, या टाई और मास्क मिलाकर टास्क हो जाए। आज किसी के पास इतना वक्त तो है नहीं कि सारे शब्दों को अलग-अलग लिखें, इसीलिए तो हिन्दुस्तान में एक नया शब्द मोशा शुरू हुआ है। जिन्हें न मालूम हों, उन्हें बता देना ठीक है कि यह मोदी और शाह को मिलाकर बनाया गया है।
सरकारी स्कूली किताब की गलत जानकारी
छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग की पांचवीं कक्षा की हिंदी की किताब में हरिवंश राय बच्चन की एक कविता, हार नहीं होती, बड़ी प्रमुखता से छपी है। अब इसके साथ एक छोटी सी दिक्कत यह है कि यह कविता हरिवंश राय बच्चन की लिखी हुई नहीं है और यह एक दूसरे कवि सोहनलाल द्विवेदी की लिखी हुई है। भारतीय हिन्दी साहित्य की एक प्रमुख वेबसाईट कविताकोष में इस कविता के साथ यह साफ किया गया है कि इसे बहुत से लोग हरिवंश राय बच्चन की लिखी मानते हैं, लेकिन उनके बेटे अमिताभ बच्चन ने ही अपनी फेसबुक पोस्ट में यह साफ किया है कि यह कविता सोहनलाल द्विवेदी की है। द्विवेदीजी 1906 से 1988 तक रहे, और उन्होंने खूब साहित्य सृजन किया है।
अमिताभ बच्चन ने कोई पांच बरस पहले, 4 दिसंबर 2015 को फेसबुक पर यह लिखा था- एक बात आज स्पष्ट हो गई, ये जो कविता है, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, ये कविता बाबूजी की लिखित नहीं है, इसके रचयिता हैं सोहनलाल द्विवेदी। कृपया इस कविता को बाबूजी, डॉ. हरिवंश राय बच्चन के नाम पर न दें, ये उन्होंने नहीं लिखी है।
कुछ ऐसा ही अमिताभ बच्चन से अभी-अभी तीन दिन पहले हुआ, उन्होंने प्रसून जोशी की लिखी एक कविता अपने पिता के नाम से पोस्ट कर दी थी, और लोगों ने जब उनकी गलती पर टोका, तो फिर अमिताभ ने तुरंत ही इस पर माफी मांग ली।
उम्मीद पे दुनिया कायम है...
निगम-मंडलों की एक और सूची जल्द जारी हो सकती है। चर्चा है कि सभी प्रमुख नेता अपने समर्थकों को एडजस्ट कराने में जुटे रहे। सीएम भूपेश बघेल मंत्रियों से अनौपचारिक चर्चा कर उनसे राय ले चुके हैं। इसके अलावा पीसीसी से भी नाम लिए गए हैं। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया सिर्फ नियुक्तियों पर चर्चा के लिए ही आए थे। सुनते हैं कि उन्होंने अपनी तरफ से कुछ नाम जुड़वाए हैं। दूसरी सूची में टीएस सिंहदेव के कुछ और समर्थक जगह पा सकते हैं। हल्ला है कि दूसरे मंत्रियों की तुलना में उन्हें ज्यादा महत्व मिला है।
पार्टी के एक और बड़े नेता ने तो अपनी तरफ से दो दर्जन से अधिक नामों की लिस्ट सौंपी है। ये अलग बात है कि ज्यादातर नामों को नजर अंदाज कर दिया गया है। पिछले दो दशक से सक्रिय राजनीति से बाहर रहे अरविंद नेताम भी अपने करीबियों को निगम-मंडल में जगह दिलाने के लिए मेहनत करते नजर आए। उनकी पुनिया से एकांत में मंत्रणा भी हुई है। चर्चा है कि दूसरी सूची में दो दर्जन से अधिक नेताओं के नाम होंगे। नए जिले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के भी कुछ नेताओं को निगम-मंडलों में जगह मिल सकती है। इस बात के संकेत हैं कि सीएसआईडीसी, ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन, मार्कफेड और दुग्ध महासंघ जैसे मलाईदार संस्थानों में फिलहाल नियुक्तियां नहीं होंगी। इन संस्थानों में मरवाही उपचुनाव के बाद नियुक्तियांं होने की बात कही जा रही है।
कोरोना प्रसन्न भये...
पीएल पुनिया के इस बार के दौरे में सामाजिक दूरी की जमकर धज्जियां उड़ी। पुनिया वीआईपी रोड स्थित जिस होटल में ठहरे थे वहां रेलमपेल भीड़ रही। कार्यकर्ता पुनिया से मिलकर अपनी दावेदारी पेश करने की कोशिश करते देखे गए। कोरोना के खतरे के बीच कार्यकर्ताओं की भीड़ देखकर पुनिया का मूड बिगड़ गया। कुछ लोगों को उन्होंने फटकार भी लगाई।
सांसदों की नाराजगी दिल्ली में निकली...
विष्णुदेव साय की ताजपोशी के बाद भी भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के दो सांसदों ने पिछले दिनों दिल्ली में संगठन की कार्यप्रणाली की हाईकमान से शिकायत की है। खास बात यह है कि दोनों ही सांसद पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष से अलग-अलग मिले थे।
एक का दुख यह था कि विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारे एक नेता ने अपने जिले में पसंद की कार्यकारिणी पर मुहर लगवा ली। सांसद को पूछा तक नहीं गया। दूसरे सांसद की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि उनके जिले में अभी तक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई है। कुछ बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन कोई चर्चा करने वाला नहीं है। उन्होंने इस पूरे मामले में हाईकमान से हस्तक्षेप का आग्रह किया है।
विधानसभा कोरोना रोकने कमर कस रही...
कोरोना संक्रमण के बीच विधानसभा के मानसून सत्र की व्यवस्था को लेकर माथापच्ची चल रही है। इस सिलसिले में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत सीएम भूपेश बघेल और संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे के साथ बैठक कर चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से भी पहले उनकी बात हो चुकी है।
कौशिक जो कि मात्र चार दिन का सत्र रखने पर गुस्साए हुए थे। वे खुद कोरोना की चपेट में आ गए हैं और उनके सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने की संभावना नहीं है। इससे पहले कांग्रेस विधायक दलेश्वर साहू भी संक्रमित हुए थे। रायपुर में कोरोना के तेजी से फैलाव को देखते हुए सामाजिक दूरी का कठोरता से पालन करने का फैसला लिया गया है।
सुनते हैं कि इस बार दर्शक दीर्घा, अध्यक्षीय दीर्घा और पत्रकार दीर्घा पूरी तरह बंद रहेंगे। बैठक व्यवस्था कुछ इस तरह की जा रही है कि सभी सदस्य एक साथ सदन में मौजूद न रहें, यानी प्रश्नकाल में जिस सदस्य का सवाल हो चुका है, वे सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लेंगे। जिनका ध्यानाकर्षण है, या अन्य विषयों पर चर्चा है वे प्रश्नकाल में अनुपस्थित रहेंगे। कुल मिलाकर सदन में सामाजिक दूरी का पालन हो , यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए जाएंगे।
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