राजपथ - जनपथ
घोटाले के तनाव से हार्टअटैक
दवा खरीदी घोटाले में उलझे आईएफएस अफसर वी रामाराव हार्टअटैक आया है और वे एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। वैसे तो रामाराव को हार्ट प्रॉब्लम था, लेकिन बीमारी को अनदेखा किया। बाद में बीमारी बढ़ गई। सुनते हैं कि दवा निगम में एमडी रहते उन्होंने पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों के दबाव-सिफारिश पर सैकड़ों करोड़ की दवा खरीदी की थी, जिसमें अनियमितता की शिकायत सामने आई।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने इन शिकायतों में प्रारंभिक दौर पर अनियमितता की पुष्टि होने पर जांच के लिए प्रकरण ईओडब्ल्यू को सौंप दिया। इन सबके चलते रामाराव टेंशन में चल रहे थे। एमडी पद से हटने के बाद अपने मूल वनविभाग में आने के बाद साथी अफसरों ने उनके तनाव को दूर करने की पूरी कोशिश की। उनके साधन सुविधाओं में कमी न हो, इसका भी ध्यान रख रहे थे। उन्हें पात्रता के मुताबिक वाहन और अन्य सुविधाएं तुरंत मुहैय्या भी कराई। अब जब वे बीमार हैं, तो विभाग के अफसर लगातार चिकित्सकों के संपर्क में हैं और उनका कुशल क्षेम पूछ रहे हैं। वैसे भी आईएफएस अफसर अन्य कैडरों के बाकी अफसरों की तुलना में अपने साथियों के लिए ज्यादा संवेदनशील रहते हैं।
सीपीआई से कांग्रेस को राहत
आखिरकार दंतेवाड़ा में सीपीआई ने भीमसेन मंडावी को प्रत्याशी घोषित कर दिया। भीमसेन को प्रत्याशी घोषित करने से कांग्रेस ने थोड़ी राहत की सांस ली है। दरअसल, यहां से पूर्व विधायक मनीष कुंजाम भी टिकट के दावेदार थे। वर्ष-2008 के चुनाव में कुंजाम यहां दूसरे स्थान पर रहे और उनकी वजह से दिग्गज नेता महेन्द्र कर्मा तीसरे स्थान पर चले गए थे। कुंजाम को काफी मजबूत माना जाता रहा है। पिछला चुनाव उन्होंने कोंटा सीट से लड़ा था जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन भीमा मंडावी की हत्या के बाद उपचुनाव की स्थिति बनी, तो दंतेवाड़ा में काफी सक्रिय दिख रहे थे।
सुनते हैं कि सीपीआई की राज्य इकाई मनीष और भीमसेन में से प्रत्याशी तय नहीं कर पा रही थी और दोनों को ही नामांकन भरने के लिए कह दिया था, लेकिन आखिरी क्षणों में मनीष खुद ही पीछे हट गए और भीमसेन के नाम पर राजी हो गए। भीमसेन जिला इकाई के सदस्य हैं। मनीष के चुनाव नहीं लडऩे से कांग्रेस नेता अब फायदे की उम्मीद लगाए बैठे हैं। मनीष को अंदरूनी इलाकों में अच्छा समर्थन मिल सकता था, लेकिन अब उनके चुनाव मैदान में नहीं रहने से सीपीआई उम्मीदवार को उतना समर्थन मिल पाएगा, इसकी उम्मीद कम है।
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