सामान्य ज्ञान
पटसन भारत के कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने क्षेत्रों में से एक है। भारत कच्चे पटसन और इससे तैयार माल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वर्ष 2012-13 के दौरान पटसन क्षेत्र से निर्यात 38 करोड़ 30 लाख अमरीकी डॉलर मूल्य का था। इस वर्ष 50 करोड़ अमरीकी डॉलर मूल्य के निर्यात का लक्ष्य तय किया गया है। निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में फर्श पर बिछाने की पटसन से बनीं दरी, वॉल हैंगिंग, सजावटी वस्त्र जैसी विभिन्न चीजें शामिल हैं।
देश में कुल मिलाकर 83 मिली-जुली पटसन मिलें हैं, जिनमें 16 लाख मीट्रिक टन माल तैयार किया जाता है। यह उद्योग कृषि-आधारित और श्रम बहुल है और इस क्षेत्र में लगभग 2.48 लाख लोगों को सीधे और परोक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है।
पटसन से सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पर्यावरण हितैषी उत्पाद है। पटसन को स्वर्णिम रेशा कहा जाता है और यह उन सभी मानकों पर खरा उतरता है, जो पैकेजिंग के काम आने वाली चीजों को प्राकृतिक, फिर से इस्तेमाल होने वाली, प्राकृतिक रूप से समाप्त हो जाने वाली और पर्यावरण हितैषी हैं। पटसन का रेशा प्राकृतिक होता है और यह अब सारी दुनिया में पर्यावरण हितैषी उत्पाद के रूप में मंजूर किया जाता है, क्योंकि इससे बनी चीजें पर्यावरण अनुकूल हैं और खुद ही समय के साथ क्षय होकर नष्ट हो जाती हैं।
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले नेशनल जूट बोर्ड ने पटसन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किये हैं। यह बोर्ड उत्पादकों, श्रमिकों और निर्यातकों के हित-रक्षण में काम कर रहा है। यह बोर्ड पटसन और पटसन से बनी चीजों के देश में प्रयोग को बढ़ावा देता है और निर्यात की भी व्यवस्था करता है। इस बोर्ड के लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप इससे जुड़ा अनौपचारिक क्षेत्र और उद्यमिता में वृद्धि हुई है और इस क्षेत्र में लोगों को रोजगार के लगातार अवसर मिल रहे हैं। नेशनल जूट बोर्ड पटसन उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए लगातार सक्रिय है।