सामान्य ज्ञान
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स रेगुलेशन एक्ट, 1952 अमेंडमेंट लंबे समय से अटका हुआ है। दोनों सदनों से पास होने के बाद यह बिल कमोडिटी फ्यूचर्स मार्कटे रेगुलेटर फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) को कैपिटल माकेर्ट रेगुलेटर सेबी के बराबर खड़ा कर देगा।
देश में अभी नैशनल लेवल के पांच कमोडिटी एक्सचेंज हैं। इन एक्सचेंजों का टर्नओवर 50 हजार करोड़ रुपए है। 2003 के मुकाबले इसमें मामूली इजाफा हुआ है। ऐसे में निगरानी के लिए एक मजबूत रेगुलेटर और फैसिलिटेट करने के लिए म्यूचुअल फंड्स, एफआईआई और बैंकों जैसी संस्थाओं की जरूरत है। फिलहाल इसकी इजाजत नहीं है।
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स रेगुलेशन एक्ट बन जाने से सेबी की तरह एफएमसी को भी एक्सचेंज से फंड जुटाने उन्हें मान्यता देने या खारिज करने का अधिकार होगा। एफएमसी अभी कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया पर निर्भर है। एक बार यह बिल पास हो जाए, तो वह एक्सचेंज पर होने वाले डील और ब्रोकरों से भी फंड जुटा सकता है। एफएमसी को पेनाल्टी लगाने का भी अधिकार होगा, जो अभी नहीं है। एक मजबूत रेगुलेटर के तौर पर एफएमसी, इंस्टीट्यूशनल प्लेयर्स की एंट्री का फ्रेमवर्क तैयार कर सकेगा, जो बड़े कॉरपोरेट्स के लिए काउंटरपार्टीज का काम करेंगे।
इस बिल को सबसे पहले 2003-2004 में राज्यसभा में पेश किया गया था, लेकिन तब लोकसभा भंग हो जाने के कारण यह पास नहीं हो पाया था। जनवरी 2008 में पास अध्यादेश की अवधि खत्म होने के बाद इसे संसद में पेश नहीं किया जा सका।